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इस श्राप के कारण घटता-बढ़ता है चंद्रमा! (The Curse on the Moon!)

सूरज डूबने के बाद जब अंधेरा छाता है तो चाँद अपनी चांदनी बिखेरना शुरू कर देता है। पर क्या आप जानते हैं कि जो चाँद शीतलता प्रदान करता है उसे भी एक श्राप प्राप्त है। चंद्र का घटता बढ़ता रूप उसी श्राप के कारण है। इस प्रसंग में बहुत सी पौराणिक कथाएं सुनने को मिलती हैं, किसने दिया उन्हें ये श्राप? आइये जानते हैं-

कुबेर जी का निमंत्रण :-

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कुबेरजी भगवान शिव तथा माता पार्वती के पास भोजन का निमंत्रण लेकर कैलाश पर्वत पहुंचे। किन्तु उनका स्वाभाव जानते हुए शिवजी समझते थे की वे केवल अपनी धन सम्पत्ति का दिखावा करने के लिए कुबेर उन्हें भोजन पर बुला रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपनी साधना में व्यस्त होने का कारण दिया और जाने से मना कर दिया। पार्वती जी भी अकेले नहीं जाना चाहती थीं इसलिए उन्होंने भी मना कर दिया। कुबेर जी अपनी सारी व्यवस्था को व्यर्थ समझ के दुखी हो गए और शिवजी से दुबारा आग्रह करने लगे। तब उन्होंने उनका मान रखते हुए कहा की आप गणेश को अपने साथ ले जाएँ। गणेश आपको सेवा का पूर्ण अवसर देंगे।

गणेश जी की दावत :-

गणेश जी भी दावत की बात सुनकर प्रसन्न हो गए और कुबेर जी के साथ चले गए। गणपति ने खूब चाव से भोजन किया और भरपेट स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया। अंत में मिठाइयां पेश की गयी, जो गणेश जी ने चट कर दी। इसके बाद और मिठाइयां लाई गयीं, गणेश जी ने वह भी खूब खाई किन्तु बाद में उन्हें संकोच होने लगा।​ अतः वे भोजन से उठ गए, किन्तु उठने के बाद वह सोचने लगे की कुछ मिठाइयां अपने साथ कैलाश ले चलते तो वहां अपने भ्राता के साथ उन मिठाइयों का लुत्फ़ उठाते। उन्होंने ये बात कुबेर जी से कही तो कुबेर जी ने ढेर सारी मिठाइयां उन्हें दीं। गणेशजी भी ढेर सारी मिठाइयों को अपनी गोद में रख कर अपने मूषक में सवार हो गए।​

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गणेश जी का संतुलन बिगड़ा :-

रात्रि हो चुकी थी और चन्द्रमा का रोशनी चारों ओर फैली हुई थी। तभी मार्ग में गणेश जी के मूषक का पैर किसी पेड़ की जड़ से उलझ गया और वह गणेश जी समेत गिर गया। गणेश जी की सारी मिठाइयां वहां पर बिखर गयीं। उन्हें बहुत दुःख हुआ, फिर सोचा किसी ने देखा नहीं तो वह उन मिठाइयों को समेटने में लग गए। तभी चन्द्रमा जो उन्हें दूर से देख रहा था, ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। गणेश जी ने आकाश की तरफ देखा तो चन्द्रमा उन्हीं की तरफ देख के हंस रहे थे।​

चन्द्रमा को दिया श्राप :-

यह देख गणेश जी को बहुत लज्जा आई, उन्हें दुःख हो रहा था की एक तरफ उनकी सारी मिठाइयां खराब हो गयीं और दूसरी तरफ उन्हें गिरते हुए चन्द्रमा ने देख लिया। उन्हें चंद्रदेव पर क्रोध आने लगा, उन्होंने कहा हे निर्लज्ज! मेरी सहायता करने के स्थान पर तुम मेरा उपहास कर रहे हो। यह न केवल मेरा अपितु मेरे पिता का भी अपमान है। तुम्हे अपने इस सुन्दर रूप पे बहुत घमंड है न, जाओ मैं तुम्हे श्राप देता हूँ आज के बाद तुम्हारा सुन्दर रूप कुरूप हो जायगा। आज के बाद तुम्हारी रौशनी खतम हो जायगी और तुम्हे कोई नहीं देख पाएगा।​

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गणेश जी से मांगी क्षमा :-

गणेश जी श्राप के प्रभाव से उसी समय चन्द्रमा की रोशनी चली गयी और सम्पूर्ण जगत में रात्रि का अँधेरा छा गया। चंद्रदेव घबराकर उनकी शरण में आगये और उनके पाँव पकड़ के क्षमा याचना करने लगे। वे बोले, हे देव मुझ पापी को क्षमा करें, मैं अनजाने में ऐसा कृत्य कर बैठा। यदि अपने अपना श्राप वापस नहीं लिया तो उनके होने का कोई महत्व नहीं रहेगा, जो कार्य उन्हें सौंपा गया है वो नहीं कर पायंगे। और इस से सृष्टि का भी नियम भंग होगा देव, अतः मुझे क्षमा करें।​

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गणेश जी हुए शांत :-

फिर गणेश जी ने भी स्थिति देखि तो उनका क्रोध शांत हुआ। उन्होंने कहा चंद्रदेव आपको अपनी गलती का भान हुआ यह अच्छी बात है। किन्तु दिया हुआ श्राप वापस नहीं हो सकता ये आप भी जानते हैं। हाँ इसका उपाय किया जा सकता है, अतः श्राप के अनुसार तुम्हारी रोशनी खो जायगी किंतु माह में केवल एक दिन, इसके बाद तुम धीरे धीरे अपनी पूर्ण रोशनी वापस पा लोगे। और जो सुंदरता खोने का श्राप है उसके कारण तुम पूर्णतया अपना रूप नहीं खोओगे, किन्तु तुम्हारे चेहरे पर कुछ दाग रह जायँगे जो तुम्हे तुम्हारी गलती की याद भी दिलाते रहेंगे।​

इसी श्राप के कारण अमावस्या पर चंद्र देव की पूर्ण चांदनी चली जाती है और पूर्णिमा पर वो अपनी रौशनी पूर्णतया पा लेते हैं। और चंद्रदेव के ऊपर धब्बे आज भी दिखाई देते हैं। इस प्रकार आज भी गणेश जी का दिया हुआ श्राप काम कर रहा है।​

चतुर्थी पर अशुभ होगा चंद्र दर्शन :-

गणेश जी की कृपा से चंद्रदेव प्रसन्न हुए और उनका आभार प्रकट करने लगे किन्तु गणेश जी ने कहा की मेरा ये श्राप मैंने कम अवश्य कर दिया है, किन्तु तुमने जो मेरा अपमान किया है उसके कारण मैं दुखी हूँ।  आज चतुर्थी के दिन तुमने मेरा अपमान किया है तो अब से कोई भी मेरा  भक्त चतुर्थी पर तुम्हारा दर्शन नहीं करेगा। और जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा यह उसके लिए अशुभ होगा।​

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प्रजापति दक्ष का श्राप :-

एक और पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से करवाया था। किन्तु चंद्रदेव को उनमे से एक रोहिणी से अत्यधिक लगाव था, अन्य पत्नियां उनके इस व्यवहार से क्रोधित हो गयीं। उन्होंने इस बात की जानकारी दक्ष को दे दी, और दक्ष ने क्रोध में आकर अपने दामाद को क्षय होने का श्राप दे दिया। इस कारण चंद्रदेव की कलाएं क्षीण पड़ने लगीं, उन्होंने इस से मुक्ति के लिए भोलेनाथ की तपस्या की। उनसे प्रसन्न हो शिवजी ने उन्हें अपने मस्तक पर धारण कर उनका रक्षण किया। चूँकि दक्ष का श्राप भी उनको है इसलिए वे धीरे धीरे क्षीण होते हैं और शिव जी के आशीर्वाद से धीरे धीरे पुनः अपने स्वरुप में आ जाते हैं। इसी कारण से उनका आकार घटता बढ़ता रहता है।

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