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शिव का वह पुत्र जिसे शिव ने स्वयं मार दिया! (Who Was Shiva's Third Son?)

हम सभी जानते हैं कि शिव और पार्वती के दो पुत्र थे गणेश और कार्तिकेय, किन्तु पुराणों में शिव के एक और पुत्र का जिक्र मिलता है जिसे स्वयं शिव ने ही मार दिया था। कौन था ये पुत्र और क्यों शिव ने उसे मारा? आइये जानते हैं इस कहानी के द्वारा –

जगत हुआ अंधकारमय :-

कथा के अनुसार एक बार शिव जी और पार्वती जी काशी घूमने गए, शिव काशी का शांत वातावरण व प्राकृतिक सौंदर्य देख रहे थे कि तभी माता पार्वती ने ठिठोली करते हुए चुपके से आ कर उनकी दोनों आँखे बंद कर दी। जैसे ही शिव की आँखे बंद हुई वैसे ही सारी सृष्टि में अन्धकार छा गया। सारा वातावरण भयानक हो गया। संसार में प्रकाश करने के लिए शंकर ने अपनी तीसरी आँख खोल दी, इससे इतनी रोशनी हुई कि जगत तो प्रकाशमान हो गया पर भयंकर गर्मी के कारण पार्वती जी पसीने में भीग चुकी थी।

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हुई एक बालक की उत्पत्ति :-

माता के दिव्य पसीने की बुँदे जैसे ही पृथ्वी पर पड़ी उस से एक बालक की उत्पत्ति हुई जो दिखने में दैत्य के समान भयानक मुख वाला था। माँ पार्वती ने जिज्ञासा पूर्वक शिवजी से इसकी उत्पति के बारे में पूछा। शिवजी ने इसे अपना पुत्र बताया और अंधकार की वजह से इसका जन्म होने के कारण उसका नाम अंधक रख दिया।

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कुछ वर्ष बाद असुरराज हिरण्याक्ष ने पुत्र प्राप्ति के लिए शिवजी की घोर तपस्या की और वरदान स्वरुप एक बलशाली पुत्र की कामना की। भगवान शिव ने अन्धक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया। बालक अन्धक अब दैत्यों के बीच ही पला और बड़ा होने पर असुरो का राजा बना।

प्राप्त हुआ ब्रह्मा का वरदान :-

अन्धक यह भूल चुका था कि शिव और पार्वती ही उसके माता पिता है। शिव जी का पुत्र होने के कारण अन्धक पहले ही बहुत बलवान था, किन्तु इतने से उसका मन नहीं भरा। उसने और शक्ति प्राप्त करने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की। ब्रह्मा जी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। हर असुर की भाँती अंधक भी अमर होना चाहता था, किन्तु वो जनता था की ब्रह्मा जी किसी को अमरता का वरदान नहीं देते। इस कारण उसने चालाकी दिखते हुए कहा कि उसकी मृत्यु उस दिन हो जब वो स्वयं अपनी माता को काम वासना की नजर से देखे ।

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ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया। चूँकि अंधक नहीं जनता था कि वो पार्वती का पुत्र है, उसे लगता था वह शिव का दिया हुआ कृपा प्रसाद है, और उसकी कोई माता नहीं। इस प्रकार वह कभी अपनी माता को काम दृष्टि से नहीं देख सकता, और न ही उसकी मृत्यु हो सकती है। इस प्रकार अपनी दृष्टि में वह अमर ही हो गया।

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माता पार्वती को भेजा विवाह का प्रस्ताव :-

वरदान पाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने स्वर्ग में आक्रमण कर उसे जीत लिया। सभी देवता उसके आतंक से त्रस्त थे। तीनों लोको में विजय प्राप्त कर के उसकी इच्छा हुई की विश्व की सबसे सुन्दर स्त्री उसकी पत्नी बने। जब उसने सुना कि माता पार्वती ही तीनो लोको में सबसे अधिक सुन्दर हैं तो उसने उन्हें विवाह प्रस्ताव भेज दिया। विवाहित होते हुए भी विवाह प्रस्ताव मिलने से माता अत्यंत कुपित हो गयीं, और उन्होंने क्रोध से उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

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अब अंधक स्वयं उनको विवाह के लिए मनाने कैलाश पहुंच गया, और माता पार्वती को देखते ही कामना वश उनसे विवाह हठ करने लगा। जब माता नहीं मानी तो वह ज़बरदस्ती उनका अपहरण करने लगा। इस से कुपित माता ने शिव शंकर को सहायता के लिए पुकारा और शिव ने प्रकट हो कर अंधक का वध कर दिया।

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