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इच्छा पूर्ति के लिए आवश्यक है नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ !

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ विधि :-

श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ करने से पूर्व श्री गणेशजी, माता जगदंबा, नवग्रह आदि का स्मरण एवं पूजा कर लेनी चाहिए। सर्वप्रथम हाथ जोड़कर गणेशजी का ध्यान करें और आवाहन करें -

  गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |

  उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||

  आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |

  यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करने से पूर्व पुस्तक का पूजन करना न भूलें। पूजा स्थल पर इस्तेमाल होने वाली हर चीज़ शुद्ध तथा पवित्र होनी चाहिए। पुस्तक का पूजन निम्नलिखित मन्त्र द्वारा करें -​

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम।

नम प्रकृत्यै भद्रायैनियताप्रणतास्मताम्॥

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माता दुर्गा की पूजा :-

सर्वप्रथम माता दुर्गा की वह मूर्ति जिसकी पूजा की जानी है, उसमें माता दुर्गा का आवाहन करें। माता के लिए आसन बिछाएं। अब माता दुर्गा को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर शहद से फिर पंचामृत से और अंत में वापिस जल से कराएं। अब माता दुर्गा को वस्त्र पहनाएँ। वस्त्रों के बाद आभूषण तथा पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें, तिलक करें। तिलक के लिए कुमकुम, अष्टगंध का प्रयोग करें, और प्रसाद रखे। श्रृंगार की सभी वस्तुएं तथा वस्त्र आदि को पहले गंगा जल छिड़क कर पवित्र करना न भूलें।​

अब माता के नाम की ज्योत जलाएं तथा धूप व दीप अर्पित करें। माता को लाल पुष्प, गुलाब, कमल अथवा गुड़हल के फूल अर्पित करें। चावल के दाने अर्पित करें। माता दुर्गा की आराधना के समय 'ऊँ दुं दुर्गायै नमः' मंत्र का जप करते रहें। अब दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ करें।

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प्रतिदिन पाठ करने वाले मनुष्य एक दिन में पूरा पाठ न कर पाएं, तो वे एक, दो, एक, चार, दो, एक और दो अध्यायों के क्रम से सात दिनों में पाठ पूरा कर सकते हैं। संपूर्ण दुर्गासप्तशती का पाठ न करने वाले मनुष्य देवी कवच, अर्गलास्तोत्र, कीलकम का पाठ करके देवी सूक्तम पढ़ सकते हैं।

मार्कण्डेय पुराण में माँ के देवी कवच के लाभ तथा इसके महत्व का वर्णन किया गया है। ब्रह्मा जी ने मनुष्यों के लिए सरल तथा योग्य उपाय मनोरथ प्राप्ति के लिए बताये हैं। कहा जाता है दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मनुष्य को सभी तरह की सिद्धियां प्राप्त हो जाती थी, अर्थात सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह की सिद्धियां। जिससे कि सुर और असुर दोनों ही इसका दुरूपयोग करने लगे थे। इसलिए ऋषि मार्कण्डेय ने इसे कीलक कर दिया था। अर्थात इसके प्रभाव को मन्त्रों से बाँध दिया था। इसलिए इसका पाठ करने से पूर्व इसका निष्कीलन करना आवश्यक होता है।​

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प्रथम अध्याय- प्रथम अध्याय से भय, क्रोध तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। घर में सुख शांति का निवास होता है।​

द्वितीय अध्याय- द्वितीय अध्याय घर के कलेश, भूमि विवाद आदि में सहायता करता है। अपना छिना हुआ अधिकार प्राप्त होता है।​

तृतीय अध्याय- तृतीय अध्याय के पाठ से कानूनी पचड़े, शत्रुओं तथा ईर्ष्या करने वालों से छुटकारा मिलता है।​

चतुर्थ अध्याय- चौथा अध्याय धन, सुन्दर जीवन साथी एवं माँ की भक्ति प्राप्त करने में सहायता करता है।​

पंचम अध्याय- पंचम अध्याय के पाठ से भूत प्रेत बाधा, जादू टोना तथा मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।​

छठा अध्याय- इस अध्याय के पाठ से नकारात्मकता दूर होती है और समस्त मनोवांछित फलो की प्राप्ति होती है।​

सातवाँ अध्याय- इस अध्याय के पाठ से जो असंभव सा लगता है संभव हो जाता है। यदि आपकी कोई गुप्त मनोकामना है तो वह पूरी हो सकती है।​

आठवाँ अध्याय- अष्टम अध्याय के पाठ से घर पर दरिद्रता का नाश होता है, लक्ष्मी जी आती हैं तथा सद्गुणों का विकास होता है।  ​

नौवां अध्याय- यह अध्याय जीवन में किसी भी तरह की कमी की पूर्ति करता है तथा पाठक को मानसिक शांति प्रदान करता है।​

दसवाँ अधयाय- दसवां अध्याय पाठक को गृहस्त तथा संतान सुख का सौभाग्य देता है।​

ग्यारहवाँ अध्याय- ग्यारहवें अध्याय के पाठ से किसी भी प्रकार की चिंता, व्यापार में सफलता एवं सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।​

बारहवाँ अध्याय- बारहवां अध्याय समाज में मान सम्मान तथा प्रतिष्ठा बढ़ाता है। किसी सालों पुरानी मनोकामना को पूरा करती है।​

तेरहवां अध्याय- तेरहवें अध्याय के पाठ से माता की भक्ति एवं सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।

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