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हर संप्रदाय की पहचान है उसका तिलक !

हिन्दू धर्म के अनुसार तिलक माथे पर या शरीर के अन्य हिस्सों जैसे हथेली या गर्दन पर लगाया जाने वाला एक विशेष प्रकार का चिन्ह होता है, तिलक किसी मेहमान के स्वागत सत्कार व सम्मान के रूप में भी लगाया जाता है, आपने कई बार साधु संतों को देखा होगा परन्तु क्या आपको यह जानकारी है कि साधु संतों की पहचान उनके लगाये हुए तिलक से होती है, हमारी संस्कृति में तिलक लगाने की परम्परा आज की नहीं है यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, हिन्दू संस्कृति की पहचान माने जाते हैं ये तिलक, यह तिलक 80 से भी ज़्यादा प्रकार के होते हैं, सबसे ज्यादा 64 प्रकार के तिलक वैष्णव साधुओं में लगाये जाते हैं, हिन्दू धर्म में जितने भी संतों के पंथ, मत व संप्रदाय हैं उन सभी के अलग अलग तिलक होते हैं।​

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शैवः-
शैव तिलक में ललाट पर चंदन की तिरछी रेखा बनाई जाती है, इसके अलावा त्रिपुंड भी लगाया जाता है, लगभग सभी शैव साधु इसी प्रकार का तिलक लगाते हैं।​

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शाक्तः-
जो साधु शक्ति की आराधना करने वाले होते हैं वह कुमकुम या चंदन का तिलक न लगाकर सिंदूर का तिलक लगाते हैं, मान्यता है कि सिंदूर से साधक की शक्ति बढ़ती है और यह उग्रता का भी प्रतीक होता है, जानकारी के अनुसार ज्यादातर आराधक तिलक लगाने के लिये कामाख्या देवी के सिद्ध सिंदूर का प्रयोग करते हैं।

वैष्णवः- 
वैष्णवों में तिलक लगाने के सबसे ज्यादा प्रकार मिलते हैं, वैष्णवों में तकरीबन 64 प्रकार के तिलक लगाये जाते हैं, उनमें से कुछ प्रमुख तिलक निम्न प्रकार से हैं-​

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1. लालश्री तिलक- इस तिलक के आसपास चंदन का तिलक लगाकर उसके बीच में हल्दी या कुमकुम की रेखा बनाई जाती है।
2. विष्णुस्वामी तिलक- अपने माथे पर इस तिलक को लगाने के लिये भौहों के बीच में दो चौड़ी रेखाएं बनाई जाती हैं।
3. रामानंद तिलक- इस तिलक से पहले विष्णु तिलक लगाया जाता है इसके बाद उनके बीच में कुमकुम से एक खड़ी रेखा बनाई जाती है।
4. श्यामश्री तिलक- भगवान श्री कृष्ण के उपासक श्यामश्री तिलक को लगाते हैं, इस तिलक को लगाने के लिये आसपास गोपीचंदन की व बीच में एक काले रंग की मोटी रेखा बनाई जाती है।
5. अन्य तिलक- इन सबके अलावा भी और भी प्रमुख तिलक हैं जो केवल साधु संत लोग लगाते हैं, बहुत से साधु संत भस्म का भी तिलक लगाते हैं।​

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मान्यता है कि तिलक वैष्णवों और शैवों में एकता का भी प्रतीक माना जाता है, माना जाता है कि वैष्णव भगवान शंकर का त्रिशूल उध्र्वपुण्ड्र रूप में मस्तक पर लगाया जाता है और शैव सम्प्रदाय के लोग भगवान श्री राम के धनुष को तिलक के रूप में धारण करते हैं।
शाक्त सम्प्रदाय के उपासक श्री कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती जी का यह कहना है कि भारतीय स्त्रियों के लिये उनका सुहाग ही सर्वप्रिय, सर्वोच्च होता है, महिलायें सुहाग की निशानी के लिये अपनी मांग लाल रंग की रोली से भरती हैं वैसे ही हम लोग लाल रंग का तिलक एक सीधी खड़ी लकीर के रूप में लगाते हैं, कहते हैं जो यह तिलक लगाता है वह कभी अभागा नहीं होता।
भक्ति और पूजा का एक प्रमुख अंग है तिलक, भारतीय संस्कृति में संस्कार विधि, पूजा-अर्चना, यात्रा गमन, मंगल कार्य जैसे शुभ कार्यों के प्रारम्भ में ही माथे पर तिलक लगाकर अक्षत से विभूषित करते हैं, यह तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाये जाते हैं यह हमारे चिंतन मनन का स्थान होता है, चेतन अवचेतन अवस्था में भी यह जागृत व सक्रिय रहता है, इसे ही आज्ञा चक्र कहते हैं

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