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द्रोणागिरी: आखिर क्यों वर्जित है यहां पवनसुत की पूजा? (Dronagiri Parvat)

चिरंजीवी भक्त शिरोमणि परम पूज्य हनुमानजी को सनातनधर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। कहते हैं श्री राम की भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति होती है, किन्तु श्री राम को हनुमान जी के बिना प्राप्त करना आसान नहीं। किन्तु जो हनुमान जी की भक्ति करता है उस से श्री राम सदैव ही प्रसन्न रहते हैं। इसीलिए हनुमान जी को भक्त बहुत श्रद्धा से पूजते हैं। लेकिन यहां एक जगह ऐसी भी है जहाँ हनुमान जी की पूजा पर प्रतिबन्ध है। आखिर किस बात से नाराज़ हैं ये लोग हनुमान जी से आइये जानते हैं इस लेख द्वारा-

रामायण प्रसंग :-

हम सभी गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस की यह कथा जानते हैं जिस के अनुसार मेघनाद द्वारा शक्ति बाण चलाने से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे। हनुमानजी लक्ष्मण को उसी अवस्था में श्री राम के पास ले आये। लक्ष्मण को इस अवस्था में देखकर श्री राम दुःख में विलाप करने लगे। हनुमान जी से उनकी यह अवस्था देखी नहीं गयी, उन्होंने विभीषण जी से कोई उपाय पूछा। विभीषण जी ने बताया की लंका नगर के अंदर राजवैद्य सुषेण रहते हैं, केवल वो ही इसका उपाय कर सकते हैं। हनुमान जी ने यह सुनते ही सुषेण वैद्य को लाने के लिए उड़ान भरी और उन्हें अपने शिविर में ले आये। वैद्य जी ने लक्ष्मण की जांच करके कहा केवल संजीवनी द्वारा ही इनका उपचार हो सकता है। 

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हनुमान जी के सिवा इस कार्य को और कौन कर सकता था, अतः संजीवनी की पहचान पूछ कर वे उस स्थान पर पहुंच गए जहां यह औषधि थी। किन्तु वहां पहुंच कर हनुमान जी ने देखा की सारी ही औषधियां एक सामान प्रतीत होती थी। कुछ समझ न आने पर उन्होंने पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया और शिविर में पहुंच गए।​

गाँव वाले हुए रुष्ट :-

इस घटना से वानर सेना तो प्रसन्न हुई किन्तु जिस जगह से हनुमान जी उस पर्वत को ले गए उस गाँव के लोग हनुमान जी से रुष्ट हो गए। वर्तमान में ये जगह उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ प्रखण्ड में जोशीमठ नीति मार्ग पर है और इस गाँव का नाम है द्रोणागिरि गांव।​

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14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित यह गाँव अत्यंत दुर्गम है, और इसका दोषी वे हनुमान जी को मानते हैं। यहां पर लोगों का मानना है कि जिस संजीवनी पर्वत को हनुमान जी उठाकर ले गए थे वो यही स्थित था। यहां लोग उस पर्वत की पूजा करते थे क्योकि इसी से उस गाँव की समृद्धि और खुशहाली थी। किन्तु पर्वत के जाने के बाद यहां से इस गाँव की खुशहाली भी चली गयी। इसी कारण इस गाँव के लोग हनुमान जी की पूजा नहीं करते और उनसे रुष्ट हैं। और तो और इस गांव में हनुमान जी का प्रिय माना जाने वाला लाल रंग का झंडा लगाने पर भी पाबंदी है।​

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चली गयी गाँव की समृद्धि :-

जनश्रुति है कि जब हनुमान जी बूटी लेने इस गाँव पहुंचे तो वे उलझन में पड़ गए, क्योकि यहां हर बूटी चमकदार थी। और वह पहचानने में असमर्थ थे की संजीवनी कौन सी हो सकती है। तब वह तलहटी पर बसे गाँव में लोगों से पूछने पहुंचे, उन्हें वहां एक वृद्धा दिखाई दी। उन्होंने उस वृद्ध महिला से संजीवनी बूटी के विषय में पूछा, तो उसने एक पर्वत की तरफ इशारा कर दिया। क्योकि स्पष्ट वो भी नहीं जानती थी कि कौन सी बूटी संजीवनी की है। हनुमान जी इशारा पाते ही समय काम होने के कारण पूर्ण पर्वत ही उखाड़ कर ले गए।

जिस महिला ने बूटी का पता बताया था उस महिला का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। आज के समय में भी आराध्य के पूजन में महिलाओं के हाथ का भोजन न भगवान को चढ़ता है और न ही कोई और उस भोजन को खाता है। न ही महिलाएं उस पूजन में भाग ले सकती हैं।

*किन्तु हमे लगता है उस महिला का कोई दोष नहीं था, क्योकि पर्वत में से बूटी लेना सागर में से एक गिलास पानी लेने के बराबर है। और कोई पूरा पर्वत ही उठा ले जायगा ये तो कोई सोच भी नहीं सकता। यही सोच के महिला ने बूटी का पता दिया होगा।

श्रीलंका में है संजीवनी पर्वत :-

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किन्तु यह द्रोणागिरी का पर्वत आज के समय में कहाँ है? इसका जवाब है श्रीलंका, जी हाँ , श्री लंका में एक पर्वतीय इलाका है जहां एक पर्वत श्रीपद नाम से जाना जाता है। कहा जाता है यही वो पर्वत है जो हनुमान जी उठाकर ले आये थे। इस पर्वत को एडम्स पीक भी कहा जाता है जिसकी ऊचाई  2200 मीटर है। इस पर्वत की खासियत ये है की यहां का वातावरण बहुत अद्भुत है, यहां की जलवायु आसपास के इलाकों से काफी अलग है। यहां के वृक्ष भी हरे भरे और स्वस्थ हैं। इस पर्वत पर एक मंदिर भी स्थित है और यह प्राकृतिक रूप से बहुत समृद्ध है। माना जाता है कि इस गांव में कई चमत्कारी जड़ी-बूटियां भी है।

 

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