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एक ही पिता की संतान थे नाग और गरुड़! (Naag aur Garud)

विष्णु जी के वाहन गरुड़ और नागों की उत्तपत्ति के विषय में एक पौराणिक कथा है जिसका वर्णन महाभारत के आदि पर्व में मिलता है। महर्षि कश्यप की वैसे तो तेरह पत्नियां थी, किन्तु अपनी दो पत्नियों विनता और कद्रू से उन्हें विशेष लगाव था। वे दोनों ही ऋषि की बहुत सेवा करते थीं। एक दिन ऋषि ने उन दोनों से कहा- तुम दोनों मुझे सभी में सबसे ज़्यादा प्रिय हो, इसलिए आज तुम मुझ से जो मांगना चाहो मांग सकती हो।  ​

महर्षि कश्यप ने दिया माँ बनने का वरदान :-

कद्रू ने तुरंत बोला कि वह एक हज़ार शक्तिशाली पुत्रों की माँ बनना चाहती है। ​विनता ने भी माँ बनने की इच्छा जताई, किन्तु उसने कहा की उसे केवल दो पुत्र चाहिए। जो इतने शक्तिशाली हो की कद्रू के हज़ार पुत्रों पर भारी पड़े। महर्षि ने उन्हें बताया की वे एक यज्ञ करने जा रहे हैं, जिससे उनकी ये इच्छाएं पूर्ण हो जायँगी। महर्षि ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसके बाद तप करने चले गए। उसके कुछ समय पश्चात् कद्रू ने हज़ार अंडे दिए और विनता ने दो अंडे। और कुछ समय बाद कद्रू के अण्डों में से अत्यंत शक्तिशाली और खूबसूरत नाग निकले। कद्रू ने विनता को बुलाया और कहा देखो कितने सुन्दर बच्चे हैं। विनता भी उन्हें देख के अत्यंत प्रसन्न हुई और कद्रू को बधाई दी। ​

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विनता को मिला उसी के पुत्र से श्राप :-

कद्रू की संतानों को देख कर विनता अपने पुत्रों को देखने के लिए अधीर हो गयी, विनता अपने दोनों अंडो के पास गई और एक अंडा फोड़ दिया, लेकिन अंडे के अंदर से एक बच्चे का आधा विकसित शरीर देखकर वह भयभीत हो गई और दुःख में पश्चाताप करने लगी। बालक पूर्ण विकसित नहीं हो पाया था, और वह अपने अविकसित शरीर को देखकर क्रोध और दुःख से भर गया। ​

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उसने अपनी माँ को क्रोध में बोला- "अपनी अधीरता से आपने बहुत बड़ा पाप किया है अतः मैं आपको  श्राप देता हूँ की आपको इस अपराध के लिए अपनी ही बहन कद्रू की दासी बनना पड़ेगा। "
विनता बोली पुत्र भूल तो मुझ से हो गयी है किन्तु मुझे इसका दुःख है, इस श्राप से मुक्ति का कोई उपाय बताओ पुत्र। अपनी माता पर उस बालक को दया आ गयी और वह उससे बोला की दूसरे अंडे को मत फोड़ना, वह अपने समय पर परिपक्व होकर खुद ही टूट जायगा। उसमे से जो शक्तिशाली पुत्र निकलेगा वही आपको दासता से मुक्त कराएगा। यह कहकर वह उड़ गया और एक पर्वत पर जाकर तप करने लगा। इस बालक का नाम अरुण था तथा अपने तप से वह शक्तिशाली हुआ और सूर्य के रथ का सारथि बन गया।  ​

विनता और कद्रू में लगी शर्त :-

विनता दूसरे अंडे के पकने तक इंतजार करने लगी और समय आने पर अंडा फूटा और उसमे से एक महान तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गरुड़ रखा गया। जैसा की वरदान था गरुड़ अत्यधिक शक्तिशाली था, वह सभी नागों पर भारी था। जिसके परिणाम स्वरुप विनता और कद्रू के सम्बन्ध भी खराब होते जा रहे थे। ​

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एक दिन विनता और कद्रू भ्रमण पर निकले। कद्रू को दूर सागर के तट पर एक अश्व दिखाई दिया, वह उज्जवल रंग का चमक रहा था। कद्रू ने विनता का ध्यान भी उस ओर आकर्षित किया और कहा कितना सुन्दर अश्व है, पूर्ण श्वेत, किन्तु इसकी काली पूछ इसकी शोभा बिगाड़ रही है। विनता ने देखा और कहा, नहीं कद्रू ध्यान से देखो उसकी पूछ भी श्वेत है। कद्रू ने शर्त लगा ली की यदि उसकी पूछ श्वेत निकली तो वह विनता की दासी बन जायगी और यदि पूछ काली हुई तो विनता उसकी दासी बनेगी। विश्वास से भरपूर विनता ने भी हाँ कर दी। और सुबह अश्व के निकट जाने का निर्णय हुआ। 
किन्तु कद्रू ने छल करते हुए अपने पुत्रो को बोल दिया की रात्रि में तुम उस अश्व की पूछ में लिपट जाना, जिससे उसकी पूछ काली ही लगे। और जब सुबह दोनों ने पास से देखा तो उसकी पूछ काली ही नज़र आई। और इस प्रकार अरुण का शाप सत्य हो गया और वह कद्रू की दासी बन गयी। ​

मुक्ति के बदले माँगा अमृत :-

माता को दासी बना हुआ देखकर गरुड़ को बहुत दुःख होता था, उसने अपनी माता से पूछा - "क्या कोई उपाय है जिससे मैं आपको इस दासता से मुक्त कर सकू।" विनता ने कहा "यदि कद्रू मुझे स्वयं अपने वचन से मुक्त कर दे तो ही मुझे इस बंधन से मुक्ति मिलेगी।"
गरुड़ अपनी माता की मुक्ति हेतु कद्रू के पास गया और उस से पुछा की क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे आप प्रसन्न होकर मेरी माँ को मुक्ति दे दें। कद्रू बोली अवश्य, यदि तुम मेरे पुत्रों के लिए अमृत ले आओ तो मैं तुम्हारी माँ को मुक्त कर दूंगी। ​

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यह सुनकर गरुड़ प्रसन्न हो गया और कद्रू को बोला आप निश्चिन्त रहें मैं आपके पुत्रों के लिए अमृत ले आऊंगा। और गरुड़ अमृत का पता पूछने अपने पिता के पास चला गया और हाथ जोड़कर उनसे पुछा अमृत किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। ऋषि कश्यप ने बताया की अमृत स्वर्ग में देवताओं की कड़ी निगरानी में रखा गया है, उसे वहां से लाना असंभव है। किन्तु गरुड़ को विश्वास था कि वह अमृत ले आएगा।​

गरुड़ ने चुराया अमृत :- 

गरुड़ पिता के बताये हुए मार्ग से स्वर्ग में उस गुप्त स्थान तक पहुंच गए जहाँ अमृत रखा हुआ था। और जैसे ही वह वहां पहुंचे उन्होंने देखा की एक अमृत कलश के लिए महाकाय देवों का और एक चक्र का तगड़ा पहरा था।​

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किन्तु गरुड़ तनिक भी न डरे और विद्युत् की गति से सारे पहरे तोड़ कर अमृत कलश तक पहुंचे और कलश उठा लिया। सभी देवता चकित रह गए और उन्हें कोई असुर समझ कर मारने के लिए टूट पड़े। किन्तु गरुड़ के मजबूत पंख और शक्तिशाली काया बिना किसी अस्त्र शस्त्र के उन सब पर भारी पड़ रही थी। उन्होंने सभी को घायल कर दिया और कलश लेकर पृथ्वी की ओर उड़ चले।  सभी पहरेदार देव दौड़े दौड़े इंद्र के पास गए और सुचना दी की कोई शक्तिशाली असुर अमृत चुरा कर भाग गया। ​

इंद्र हुए गरुड़ से प्रभावित :-

इंद्र ने जब यह सुना तो क्रोध से भरकर उसे मारने के लिए अपने ऐरावत हाथी पर निकले। उन्हें गरुड़ तीव्र वेग से जाते हुए दिख गए और उन्होंने उस पर अपना वज्र चला दिया। शक्तिशाली वज्र, जिसके प्रहार से पहाड़ भी चूर्ण बन जाते थे, गरुड़ के विशाल पंखों से टकरा कर वापस इंद्र के पास आ गया। वह गरुड़ का एक पर भी नहीं गिरा सका। इंद्र समझ गए की यह कोई साधारण पक्षी नहीं बल्कि कोई दिव्य पक्षी है। उन्होंने उनसे मित्रता करने में ही समझदारी समझी। 
और वे उसके पास मित्रता का प्रस्ताव ले कर चले गए। जिसे गरुड़ ने सहर्ष स्वीकार किया। इंद्र ने कहा तुम यह अमृत पी कर कलश स्वर्ग में सुरक्षित रख दो। किन्तु गरुड़ ने कहा वे इसे अपने लिए नहीं अपनी माता के लिए लाये हैं। फिर गरुड़ ने इंद्र को सारी बात बताई तब इंद्र गरुड़ से बहुत प्रसन्न हुए। ​

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नागों को नहीं मिला अमृत :-

इंद्र ने कहा तुम अवश्य अपनी माता को मुक्त कराओ किन्तु नागों को यह अमृत उपयोग न करने देना क्योकि इससे वे दुष्ट अमर हो जायँगे और सृष्टि में कोहराम मचा देंगे। गरुड़ ने पुछा की उसे क्या करना चाहिए। इंद्र ने उसे बताया की वह कलश कद्रू को दे और कहे इस अमृत को ब्रह्मस्नान के बाद ही पीना नहीं तो यह असर नहीं करेगा। गरुड़ ने ऐसा ही किया और अमृत पाकर कद्रू ने विनता को मुक्त कर दिया। फिर कद्रू उस कलश को रखकर सोने चली गयी और मौका पाकर इंद्र ने वह कलश वहां से उठा लिया। इस प्रकार नागों को अमृत नहीं मिल पाया। और गरुड़ को उसकी मात्र भक्ति और अमृत का मोह न होने के कारण भगवान विष्णु ने उसे अपनी सेवा में  ले लिया। 

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