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कौन हैं हनुमान जी से भी बड़े राम भक्त?

हम जब भी किसी परम भक्त का स्मरण करते हैं तो निःसंदेह हमारे ज़हन में केवल राम भक्त हनुमान का ही नाम आयेगा परन्तु श्री हनुमान जी का यह मानना है कि कोई और भी है इस संसार में जो उनसे भी बड़े राम भक्त हैं, अब आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर कौन हैं वो भगवान के परम भक्त जिन्हें बजरंग बली खुद से भी बड़ा राम भक्त मानते हैं।​

राम जी मानते हैं हनुमान जी को अपना परम भक्तः-​

रामायण काल में जब हनुमान जी संजीवनी पर्वत को अपने साथ लेकर लौटते हैं तब वैद्य संजीवनी द्वारा मूर्छित लक्ष्मण को स्वस्थ कर देते हैं, उसके बाद भगवान श्री राम हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए गौरान्वित महसूस करते हैं और कहते हैं कि अगर इस जगत में कोई मेरा प्रिय परम भक्त है तो वो केवल तुम ही हो, परन्तु हनुमान जी श्री राम के इस कथन में हामी नहीं भरते वह कहते हैं कि प्रभु मैं आपका परम भक्त नहीं हूँ मैं भी पहले यही सोचता था कि मैं ही आपका परम भक्त हूँ परन्तु अब मेरी मूर्छा टूट गई है मुझे ये ज्ञात हो गया है कि इस संसार में मुझसे भी बड़ा कोई आपका भक्त हो सकता है।​

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श्री राम रह गये आश्चर्यचकितः-​
श्री राम ने आश्चर्यचकित स्वर में पूछा- यह तुम क्या कह रहे हो ऐसा कौन है जो तुमसे बढ़कर मेरा स्मरण करता है, हनुमान कहते हैं- आपके परम भक्त कोई और नहीं आप ही के भाई भरत हैं, केवल वही हैं जो आपके परम भक्त हैं और उन्हीं ने आपकी महिमा को समझा और जाना है, क्योंकि जब लक्ष्मण को स्वस्थ करने के लिये मैं संजीवनी लेने गया था तब आकाश के मार्ग से जाते हुए भरत ने मुझे देख लिया और मुझे राक्षस समझ लिया एक ऐसा राक्षस जो उस वन को भी कोई नुकसान पहुँचा सकता है, उन्होंने मुझे देखते ही मुझे अपने बाण से घायल कर दिया और मैं धरती पर आकर गिर गया यह देखकर भी कि मैं घायल हो चुका हूँ भरत ने न वैध को बुलाया न ही संजीवनी मंगाई केवल हाथ जोड़कर कहने लगे-​
जौ मोरे मन बच अरू काया,
तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,
जौ मो पर रघुपति अनुकूला।
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा,
कहि जय जयति कोसलाधीसा।।
प्रीति राम पद कमल अमाया।​
अर्थात यदि मेरा श्री राम के चरणों में वचन कर्म और शरीर से निष्कपट प्रेम है तो प्रभु मुझपर प्रसन्न होकर इस वानर की पीड़ा व थकावट को दूर करें।​

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भरत का यह कथन सुनते ही मैं आपकी जय जयकार करने लगा और उठ खड़ा हुआ मैं आपकी भक्ति करता हूँ परन्तु आपके नाम पर भरत जैसा विश्वास नहीं करता क्योंकि अगर मैं विश्वास करता तो संजीवनी लेने जाता ही क्यूँ केवल आपका नाम लेता और सबकुछ ठीक हो जाता, जब मुझे बाण लगा तो मैं तो गिर गया परन्तु पर्वत नहीं गिरा क्योंकि उस पर्वत को मैंने नहीं स्वयं आपने उठाया हुआ था, हनुमान ने कहा प्रभु आपके पास भी ऐसा बाण नहीं है जैसा बाण भरत के पास है जब आपने अपना बाण सुबाहु मारीच को मारा था तो वह बहुत दूर जाकर गिरा था परन्तु भरत के बाण से तो मैं आपके और समीप आ गया अर्थात आपके बाण आपसे दूर ले जाते हैं परन्तु भरत के बाण आपके चरणों में ले आते हैं, उनके बाण से मैं सूर्य से भी तेज़ गति से आपके पास आ गया।

श्री राम ने हनुमान को हृदय से लगायाः-​

श्री राम ने कहा कि जब मैंने ताड़का को और भी अन्य राक्षसों को अपने बाण से मारा था तो वह सब मेरे ही तो चरणों में आ गये थे, इसपर हनुमान जी ने कहा प्रभु आपके बाण उन्हें मरणोपरान्त आपके पास लाये थे परन्तु भरत के बाण से मैं जीवित ही आपके श्री चरणों में आ गया, यह सुनते ही श्री राम भावुक हो उठे और हनुमान को अपने हृदय से लगा लिया और अपने भाई भरत को याद करते हुए आँसू बहाने लगे।​

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निष्कर्षः-​

यह हम नहीं जानते कि इन दोनों में से कौन श्री राम का परम भक्त था परन्तु इस कथा से ये तो ज्ञात हो जाता है कि ऐसी बातों व विचारों को हम अपने आचरण में ला सकते हैं और प्रभु के समीप आ सकते हैं, जैसे हनुमान जी श्री राम का नाम जपते थे परन्तु उनके नाम पर उतना विश्वास नहीं करते थे ऐसे ही मनुष्य भी ईश्वर की पूजा आराधना तो करता है परन्तु ईश्वर पर विश्वास नहीं कर पाता, हर मनुष्य बेटे की कामना करता है यही सोचकर कि बुढ़ापे में उसका बेटा ही उसकी सेवा करेगा वह यह भूल जाता है कि जिस ईश्वर की वह पूजा करता है वह बैठा है उसके लिये।​

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भरत का बाण एक संत की वाणी जैसा था जैसे हर मनुष्य संतों की वाणी को सुनता तो है पर उन बातों को अपने आचरण में नहीं लाता, क्योंकि कोई भी वाणी केवल सुनने मात्र के सफल नहीं होती जब तक आप उसे अपने आचरण में नहीं लाते। भरत ने जब हनुमान को अपने बाण पर बैठाया था तब हनुमान जी को थोड़ा सा अभिमान हो गया था कि उनके बोझ से यह बाण चल न सकेगा परन्तु जब उन्होंने श्री राम के नाम का प्रभाव देखा तो वह भरत के प्रशंसक बन गये, इसी प्रकार हम मनुष्य भी संतों पर विश्वास नहीं करते हैं हम सोचते हैं कि ये संत भला कैसे ईश्वर तक ले जायेगा परन्तु संत ही हमें यह बताते हैं कि प्रभु के श्री चरणों की धूल कैसे बना जाये जैसे भरत ने हनुमान को राम नाम का महत्व समझाया था वैसे ही संत भी अपने विचारों के द्वारा हमें भगवान के समीप ले जाते हैं हमें संतो की वाणी पर भरोसा करना चाहिये उसके आगे भगवान स्वयं हमारी रक्षा करने आयेंगे। 
  

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