Article

निर्जला एकादशी: इसके प्रभाव से होते हैं मनुष्य के पाप क्षीण (Nirjala ekadashi)

निर्जला एकादशी तिथि व मुहूर्त :-

वर्ष 2019 में निर्जला एकादशी 13 जून को है।
एकादशी तिथि आरंभ – 18:27 बजे (12 जून 2019)
एकादशी तिथि समाप्त – 16:49 बजे (13 जून 2019)

 

हिन्दू धर्म में भक्तजन एकादशी का पवित्र व्रत सदियों से करते आ रहे हैं। एक वर्ष में वैसे तो चौबीस (24) एकादशियाँ होती हैं, किन्तु मलमास (अधिकमास)में इनकी संख्या बढ़कर छब्बीस (26) हो जाती है। हर एकादशी का अपना ही एक महत्व है किन्तु मलमास में आने वाली एकादशी पद्मिनी और परमा एकादशी का महत्व अधिक है। 

हर मनुष्य के लिए एकादशी का व्रत रखना शुभ होता है, इस से मनुष्य के जीवन के दुःख कटते हैं तथा सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। क्योकि हर वर्ष में चौबीस एकादशी होती हैं, जिसका अर्थ है एक माह में दो एकादशी। किन्तु बहुत से लोग इस व्रत को किसी कारण से नहीं रख पाते, और इसके पुण्य से वंचित हो जाते हैं। लेकिन चिंता करने की कोई बात नहीं है, जो लोग इन सभी व्रतों को नहीं रख पाते उनके लिए भी एक उपाय है जिस से वो सब भी सारी एकादशी के व्रतों का  लाभ उठा सकते हैं। 

यह भी पढ़ें:- गायत्री जयंती: गायत्री मन्त्र से मिलती है गंगा स्नान जैसी पवित्रता !

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

केवल एक एकादशी है जो सभी एकादशी व्रतों का लाभ व्रती को दे सकती है, उसका नाम है निर्जला एकादशी। इस व्रत से मनुष्य के पाप क्षीण होने लगते हैं, और उनका मन धर्म में एकाग्र होने लगता है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है। नाम से ही विदित है कि इस एकादशी में पानी पीना भी वर्जित है। 

निर्जला एकादशी का महत्व :-

इसके व्रत से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है। यह अत्यंत कठिन व्रत है, किन्तु जिसने इसे सावधानीपूर्वक दृढ़ता से कर लिया, उसका बेड़ा भगवान् पार लगा देते हैं। इसका फल तीर्थों में जाने से तथा सभी प्रकार के दानों से अधिक पुण्य है। इस दिन अन्न जल का त्याग कर व्रत रखने वाले को जीवन में किसी प्रकार की चिंता नहीं रहती। उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। और उसके बैकुंठ धाम जाने का मार्ग प्रशिष्ठ होता है। 

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करें

निर्जला एकादशी के व्रत की विधि :-

एकादशी के व्रत भगवान विष्णु अर्थात सत्यनारायण को समर्पित होते हैं, क्योकि एक वही हैं जो जगत पालक हैं और केवल वही मनुष्य को उसके बुरे कर्मों से मुक्ति दे सकते हैं। निर्जला एकादशी की सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्मों के पश्चात् स्नान आदि करना चाहिए। इस दिन दातुन के लिए नीम की लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए (लकड़ी स्वतः गिरी होनी चाहिए, क्योकि इस दिन पेड़ काटना अथवा टहनी तोड़ना भी वर्जित होता है)। यदि नीम उपलब्ध न हो तो केवल जल से बारह बार कुल्ला कर लें, तथा उंगली के प्रयोग से दांत तथा मुँह साफ़ करें। स्नान के लिए किसी पवित्र नदी तक जा सकें तो उत्तम है, यदि न जा सकें तो घर पर पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर मिट्टी के प्रयोग से नहा लें। इसके पश्चात् मंदिर में धुप दीप  जलाकर भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें। इस दिन दिन भर मन को शांत रखने का प्रयास करें। तथा पुरे दिन मन में 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप करें। दिन में गरीबों को दान भी कर सकते हैं। इसके पश्चात् शाम को फिर से भगवान विष्णु की भजन कीर्तन करते हुए आरती करें। धरती पर ही विश्राम करें, किन्तु यदि संभव हो तो इस दिन सोएं नहीं। रात्रि जागरण कर कीर्तन तथा कथा करें। दूसरे दिन किसी ब्राह्मण को बुला कर उसे भोजन कराएँ तथा दक्षिणा भी दें। दक्षिणा में उसे एक सफ़ेद वस्त्र (धोती अथवा तौलिया), चावल, दाल, फल, कलश तथा रुपया आदि दान कर सकते हैं। ब्राह्मण को विदा करने के पश्चात् भगवान का नाम लेकर स्वयं भोजन ग्रहण करें। 
इस व्रत का महत्व व्यास जी ने भीमसेन को बताया था, भीम ने अन्य एकादशी के व्रत न करते हुए इस व्रत को विधिपूर्वक किया तथा अपने पापों से मुक्ति पाई। इसलिए इस एकादशी को पांडव एकादशी तथा भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

संबंधित लेख :​​​​