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योगिनी एकादशी: पूर्वजन्म के श्राप से मुक्त करती है ये एकादशी !

योगिनी एकादशी का मुहूर्त :-

योगिनी एकादशी तिथि : 29 जून शनिवार 2019

एकादशी तिथि प्रारम्भ : सांय 06:36 बजे (28 जून 2019)

एकादशी तिथि समाप्त :  सांय 06:45 बजे (29 जून 2019)

योगिनी एकादशी  का महत्व :-

सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित व्रत है। इसके करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा उसके जन्मों के बंधन कट जाते हैं। वैसे तो हर एकादशी का अपना अलग महत्व है, जिस कारण से सभी एकादशियों के नाम भी अलग अलग हैं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत के करने से मनुष्य को अनजाने में किये पापों से मुक्ति मिलती है तथा कर्म बंधनों से पीछा छूटता है।

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योगिनी एकादशी की व्रत कथा :-

एक बार युधिष्ठिर ने  कृष्ण जी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का महत्म्य पूछा, तब कृष्ण जी ने बताया की- "इस एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से योगियों सा बल, बुद्धि तथा धर्म की प्राप्ति होती है। अब मैं तुम्हे इस व्रत को करने वाले एक यक्ष की कथा सुनाता हूँ। एक बार स्वर्गलोक में अलकापुरी नाम के एक नगर में राजा कुबेर राज्य करते थे। वह शिव जी के महान भक्त थे और सदैव उनकी आराधना किया करते थे। उनकी पूजा के लिए हेम नामक एक यक्ष प्रतिदिन पूजा मुहूर्त से पहले उनके लिए फूल लाया करता था। हेम की एक बहुत सुंदर अप्सरा पत्नी थी, उसका नाम विशालाक्षी था। एक दिन हेम ने पूजा के लिए बाग़ से फूल तोड़े, किन्तु पूजन मुहूर्त में कुछ समय होने के कारण वह अपनी पत्नी के पास चला गया। अपनी पत्नी की सुंदरता देख वह उसके साथ रमण करने लगा, और समय पर फूल नहीं पंहुचा सका। इधर राजा प्रतीक्षा करते रहे और मुहूर्त निकल गया। तब राजा ने चिंतित होकर हेम के विषय में सैनिकों को पता लगाने के लिए कहा। सैनिकों ने वापस आकर बताया की हेम महापापी है, वह आपकी महत्वपूर्ण पूजा को छोड़ अपनी पत्नी के साथ रमण कर रहा है। यह सुनते ही कुबेर का क्रोध सातवे आसमान में पहुंच गया। उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि वह हेम को पकड़ कर लाये। कुछ समय पश्चात् हेम भयभीत होकर राजा के समक्ष खड़ा था। राजा ने कहा- हे पापी, हे नीच! आज तेरे कारण मेरे प्रभु बिना पूजा के रह गए। आज तेरे कारण जीवन में पहली बार मेरे प्रभु को कष्ट पंहुचा है। तुझ नीच के कारण देवों के देव को भी प्रतीक्षा करनी पड़ी। इसलिए आज मैं तुझे श्राप देता हूँ, जिस पत्नी के लिए तुमने मेरी पूजा खंडित की है उसी पत्नी से तुम्हारा वियोग हो जायेगा और तुम मृत्युलोक में कोढ़ ग्रस्त होकर अनेकों दुःख भोगोगे।"

राजा के श्राप के कारण हेम स्वर्ग से मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी में पहुंच गया और उसके सारे शरीर पर कोढ़ हो गया। उसने कई वर्ष लोगों से दूर जंगल में बिताये, क्योकि यदि वह किसी के पास जाता तो लोग उसका कुरूप शरीर देखकर उसे भगा देते थे। उसे कई-कई दिनों तक भोजन और जल नहीं मिल पाता था। वह भी एक शिव भक्त था, तथा राजा के साथ हर पूजा में सम्मिलित होता था। इसी कारण उसे अपने पूर्व जन्म की सारी व्यथा और श्राप याद था। एक दिन वह भटकते हुए ऋषि मार्कण्डेय के आश्रम पहुंच गया। वहां का दिव्य वातावरण देख कर वह अपने अंदर एक शांति अनुभव करने लगा। उसे लगा की यहीं उसका उद्धार हो सकता है। वह आश्रम में गया तो ऋषि अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। उसने ऋषि के पाँव पकड़ लिए और रोने लगा। महर्षि ने उसे उठाया और पूछा कि किस पाप के कारण उसे ऐसा कष्टकारी जीवन मिला है। हेम ने अपनी सारी कथा उनको सुना दी।

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महर्षि ने कहा की तुमने मुझे सब कुछ सत्य बता कर बहुत अच्छा किया। अब मैं तुम्हे इस श्राप से मुक्ति का एक उपाय बताता हूँ, यदि तुमने वो उपाय अच्छे से किया तो अवश्य ही नारायण प्रसन्न होकर तुम्हे इस श्राप से मुक्ति दे देंगे। हेम ने अधीर होकर उपाय पूछा तो महर्षि ने बताया कि तुम आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करो तो तुम्हे अवश्य फल की प्राप्ति होगी।

व्रत की विधि सुनकर हेम ने कई वर्षों तक व्रत का नियमपूर्वक पालन किया और एक दिन नारायण ने प्रसन्न होकर न केवल उसे ठीक कर दिया बल्कि उसे वापस स्वर्गलोक में स्थान दे दिया, जहाँ वो अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।  अतः हे युधिष्ठिर, इस व्रत के करने से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त कर जाता है तथा अपने मनुष्य बंधन से मुक्त होता है। यह व्रत 80 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान है। तुम भी इस व्रत का पालन करो तथा मुक्ति की प्राप्ति करो।

योगिनी एकादशी व्रत विधि :-

एकादशी के व्रत का पालन दशमी के दिन से करना शुरू कर देना चाहिए, जैसे गरिष्ठ भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए और रात्रि ज़मीन पर ही सोना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान आदि करना चाहिए। इसके पश्चात् मंदिर में कलश स्थापित कर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर के उनका विधि विधान से पूजन करना चाहिए। भगवान की भोग आदि लगाकर पुष्प तथा धूप दीप आदि से पूजा करें। अंत में आरती अवश्य करें। तथा रात्रि को भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना भी आवश्यक है। द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।

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