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गणेश चतुर्थी: स्वागत कीजिये बप्पा का पूर्ण विधि विधान से!

गणेश चतुर्थी :-

गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है, जो कि सम्पूर्ण भारत वर्ष में बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। किन्तु महाराष्ट्र में इस त्यौहार की एक अलग ही छटा है। पुराणों के अनुसार इस दिन गणपति बप्पा का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी की तैयारियां कई दिन पहले से ही होने लगती हैं, भक्त अपने घरों में गणेश जी की मूर्तियां लाते हैं। कई सोसाइटीज और मोहल्लों में लोग सामूहिक रूप से एक विशाल गणपति की मूर्ति ले आते हैं, जिसकी सभी लोग मिलकर पूजा करते हैं। यह उत्सव कुल १० दिनों तक चलता है, जिसके बाद गाजे बाजे के साथ लोग नाचते झूमते गणपति बप्पा को जल में विसर्जित कर देते हैं। वर्षभर में आने वाली चतुर्थियों में यही चतुर्थी सबसे अधिक बड़ी और महत्वपूर्ण होती है।

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प्रतिमा को कैसे लाएं घर? :-

गणेश चतुर्थी से पूर्व गणपति जी की प्रतिमा को घर लाने के लिए कुछ विशेष प्रक्रिया होती है-

*गणपति को कभी भी खुला नहीं लाना चाहिए। उनकी मूरत एक कपडे से ढक कर ही घर में लाई जाती है।

*गणपति घर के अंदर प्रविष्ट कराने से पहले द्वार पर उनका स्वागत अक्षत, धूप तथा आरती से कीजिये।

*गणेश जी को स्थापित करने के बाद कपडा हटाना चाहिए। जहाँ मूर्ति स्थापित की है वहां पर भी अक्षत बिछाने चाहिए।

*मूर्ति के समक्ष हल्दी, अक्षत, पान, सुपारी आदि भी रखनी चाहिए।

किस प्रकार करें पूजा:-

गणपति जी प्रथम पूज्य देवता हैं। किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले गणेश जी को ही आमंत्रित किया जाता है, वह विग्नहर्ता हैं। रिद्धि सिद्धि के दाता गणपति जी की पूजा निम्न लिखित प्रकार से करनी चाहिए-

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* गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने की जगह पर हल्दी में लिपटे हुए चावल रखिये, उसके ऊपर उनकी स्थापना कीजिये।

* गणपति पूजा में भी किसी भी पूजा की तरह कलश स्थापना की जाती है। इसके लिए भूमि पर चावलों से अष्टदल कमल बनाएं। उसके ऊपर कलश रखें, कलश में एक शुद्ध रुपया, सुपारी और कुछ अक्षत डालिये और फिर उसमे शुद्ध जल भर दीजिये। उसमे थोड़ा गंगाजल भी डालिये।

* इसके पश्चात् कलश में पांच पल्लव आम के पत्ते रखिये, और उसके ऊपर रक्षा धागे में बंधे नारियल को रखिये। अब सभी पत्तों को और कलश को तिलक लगाएं।

* अब कलश के निकट मिट्टी की गौरी और सुपारी के गणेश जी की स्थापना कीजिये। दोनों को पान के पत्ते पर स्थापित करें।

* अब घी का दीपक और धूप जलाएं, इसके पश्चात् सभी भगवानों का तिलक करें और साथ में ॐ गं गणपतये नमः का जाप भी करें।

* तिलक के बाद फूल चढ़ाएं और गणपति को दूर्वा घास अर्पित करें। और अंत में गणपति जी की आरती गाते हुए दीपक तथा कपूर से आरती उतारें।

* पूजा समाप्त होने के पश्चात् हाथ में अक्षत और फूल लेकर क्षमा याचना करें।

गणेश विसर्जन :-

गणेश महोत्सव जो कि चतुर्थी के दिन प्रारम्भ होता है, दस दिन बाद चतुर्दशी के दिन समाप्त हो जाता है। यह दिन अनंत चतुर्दशी के लिए भी प्रसिद्द है, और इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की उपासना की जाती है। चतुर्दशी के दिन बप्पा को घर से विदा देते हैं, इस समय भी उनका विधिवत पूजन अर्चन किया जाता है। और फिर सभी भक्त मंडली मिल कर गाजे बाजे के साथ नाचते झूमते और गणपति बप्पा के जयकारे, 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूरति मोरया' तथा 'गणपति बप्पा की जय' करते हुए हुए समुद्र अथवा नदी के तट पर पहुंचते हैं और वहां पर विधिवत गणेश जी को विसर्जित कर देते हैं। मराठा में लोग 'गणपति बप्पा मोरया, पुडचा वर्षी लवकर या' बोलकर गणपति को विदाई देते हैं, जिसका अर्थ है, ''गणपति बप्पा अगले वर्ष जल्दी आना''।

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