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रोज़ बोलें सिर्फ 1 गुप्त मन्त्र इतना बरसेगा धन की सम्भाल नहीं पाओगे, सम्पूर्ण रामायण का मिलेगा फल

भारतीय कहीं भी गये वहाँ अपने धार्मिक ग्रंथ रामायण को भी अपने साथ ले गये, उनके विश्वास का वृक्ष रामायण स्थानीय परिवेश में भी फलता-फूलता रहा, प्राकृतिक कारणों से उनकी आकृति में संशोधन और परिवर्तन अवश्य हुआ किन्तु उन्होंने शिला खंडों पर खोद कर जो उनका इतिहास छोड़ा था वह आज भी उनकी कहानी कहता है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रामायण का पाठ करने वाला पुण्य फल पाता है और पापों से कोसों दूर रहता है, आज के युग में संपूर्ण रामायण का पाठ करना हर किसी के लिये संभव नहीं है, परन्तु एक मंत्र ऐसा है जिसका जाप प्रतिदिन करने से संपूर्ण रामायण पढ़ने जितना पुण्य फल मिल सकता है, इस चमत्कारी मंत्र को एक श्लोकी रामायण के नाम से भी संबंधित किया जाता है।​

मंत्र

आदि राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।

रामायण में गृहस्थ जीवन, आदर्श पारिवारिक जीवन, आदर्श पतिव्रत धर्म, आदर्श स्त्री-पुरूष, बालक, वृद्ध और युवा सबके लिये समान उपयोगी एंव सर्वोपरि शिक्षा को प्रस्तुत किया गया है।
रामायण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन तथा परम अमृत रूप है अतः सदा भक्ति भाव से उसका श्रवण करना चाहिये।​

जो स्त्रियां अच्छे संस्कारों वाली होती हैं वह मनुष्य को अनंत और अनादि गहरे मोह से पार कर देती हैं, शास्त्र, गुरू और पुत्र आदि में से कोई भी संसार से पार उतारने में इतना सहायक नहीं है जितनी स्नेह से भरी हुई अच्छे कुलों की स्त्रियां अपने पतियों को पार उतारने में सहायक होती हैं, संस्कारवान स्त्रियां अपने पति की सखा, बंधु, सुह्मद, सेवक, गुरू, मित्र, धन, सुख, शास्त्र, मंदिर और दास आदि सभी कुछ होती हैं।

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गुरूजनों की सेवा करने से स्वयं, धन-धान्य, विद्या और सुख कुछ भी प्राप्त होना दुर्लभ नहीं है, वही पुत्र उत्तम संतान है जो पिता की हुई भूल को सुधार दे, जो पुत्र ऐसा नहीं करता वह श्रेष्ठ संतान नहीं है, अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करना पुत्र का परम धर्म है, पुत्र ’पुत्’ नामक नरक से पिता का उद्धार करता है, जो पितरों की सब ओर से रक्षा करता है, जो कल्याण पिता की सेवा करने से प्राप्त होता है वैसा कल्याण न सत्य से न दान से और न पर्याप्त दक्षिणा से प्राप्त होता है, माता पिता के समान अन्य कोई देवता इस पृथ्वी पर नहीं है क्योंकि इनकी सेवा करने से धर्म, अर्थ, काम और तीनों लोकों की प्राप्ति होती है।

सबसे बलवान उत्साह होता है, उत्साह से बढ़कर दूसरा कोई बल नहीं होता, उत्साही व्यक्ति के लिये इस संसार में कुछ भी प्राप्त करना कठिन नहीं है।
पापी, घृणित और क्रूर व्यक्ति ऐश्वर्य को पाकर भी सदैव नहीं रह पाते जैसे खोखली जड़ वाले पेड़ अधिक समय तक खड़े नहीं रहते हैं।
जैसे किसी नदी का प्रवाह पीछे नहीं लौट सकता उसी प्रकार ढ़लती हुई अवस्था भी पुनः नहीं लौटती, अतः अपनी आत्मा को कल्याण के साधन-भूत धर्म में लगाना ही अभिष्ट है, मनुष्य शुभ या अशुभ जो भी कर्म करता है उसी के फलस्वरूप वह सुख या दुख भोगता है।​

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जो भी प्राणियों को संकट में डालने वाला, क्रूर और पापकर्म में रत है वह यदि तीनों लोकों का ईश्वर भी हो तो अधिक समय तक नहीं टिक सकता, सब लोग उसे सामने आये हुए सर्प की भांति मार डालते हैं।

विषैले सांपों और शत्रुओं के साथ रहना पड़े तो रह लें परन्तु शत्रु की सेवा करने वाले मित्र के साथ कभी न रहें, मित्र अमीर हो या गरीब, सुखी हो या दुखी, निर्दोष हो या सदोष वह मित्र के लिये सबसे बड़ा सहायक होता है।

जिस कार्य को करने से मान सम्मान न हो और जो धर्म के विरूद्ध हो ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिये, मन की वास्तविक स्थिति एंव स्वरूप का जिन्हें ज्ञान हो गया है उनका चित्त शांत, सनातन ब्रह्म के रूप में अनुभूत होता है।

जप विधिः-

1. प्रातःकाल जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र धारण करके भगवान श्री राम का विधिवत पूजन करें।
2. रूद्राक्ष की माला लेकर श्री राम के चित्र के सामने आसन लगाकर इस मंत्र का जाप करें, पाँच माला प्रतिदिन जाप करने से उत्तम फल मिलता है।
3. कुश का आसन हो तो अच्छा रहता है।
4. आसन व माला एक ही समय हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।

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