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गुरु गोबिंद सिंह जयंती: क्यों कहा गया है गुरु गोबिंद सिंह जी को

गुरु गोबिंद सिंह जयंती :-

02 जनवरी 2020 (बृहस्पतिवार)

353 वीं जयंती

सप्तमी तिथि प्रारम्भ = 06:27 (01 जनवरी 2020)

सप्तमी तिथि समाप्त = 09:00 (02 जनवरी 2020)

तिथि: 22, पौष, शुक्ल पक्ष, सप्तमी, विक्रम सम्वत

गुरु गोविन्द सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे, उन्हें भारतीय इतिहास का सबसे प्रभावशील गुरु माना जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था। उन्हें उनके पिता, गुरु तेग बहादुर, की मृत्यु के पश्चात् 11 नवम्बर 1675 को सिखों का दसवां गुरु बनाया गया। वह एक महान योद्धा, भक्त, गुरु, कवी तथा मुखिया थे। गुरु गोविन्द सिंह जी ने सन 1699 में बैशाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी, यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' को पूरा भी किया था तथा अपने अंतिम समय में इसी ग्रंथ को गुरु का स्थान दिया।

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उन्होंने मुग़लों तथा उनके सहयोगियों के साथ कुल 14 युद्ध लड़े। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने समस्त परिवार का बलिदान दे दिया किन्तु फिर भी कभी पीछे नहीं हटे। इन बलिदानों के लिए ही उन्हें 'सर्वस्व दानी' भी कहा जाता है। गुरु गोबिंद जी न केवल बलिदानी में अद्वितीय थे परन्तु एक महान लेखक, विद्वान भक्त तथा सिपाही भी थे। उनका सम्पूर्ण बाल्यकाल बिहार में बीता था और केवल नौ वर्ष की उम्र में उन्हें गुरु की गद्दी पर बैठाया गया।

श्री श्री रवि शंकर के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह जी को ही आज के भारत में संस्कार और धर्म स्थापित करने का श्रेय जाता है। उनके अनुसार, सभी सिख गुरुओं ने भारत के लिए बहुत कुछ किया है, किन्तु गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो किया है, उसके लिए भारत की धरती सदैव ही उनकी कृतज्ञ रहेगी।

इस देश में वैसे तो बहुत साधु संत हुए किन्तु वे सदैव अपने मंदिरों, मठों आदि में रहे तथा सब भगवान पर छोड़ कर पूजा पाठ में ही रहे। उन्होंने समाज के लिए कुछ नहीं किया, जो लोग समाज की सेवा करते थे वे धर्म से दूर रहते थे। किन्तु गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा - ' मन से साधु बनो तथा भुजाओं से सिपाही बनो', उन्होंने संत-सिपाही का नारा दिया और स्वयं सबसे महान संत-सिपाही बने। 

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गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार :-

गुरु गोबिंद सिंह जी की माता का नाम गुजरी देवी तथा पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था। गुरु गोबिंद सिंह जी की तीन पत्नियां थीं, उनका पहला विवाह 10 साल की उम्र में माता जीतो के साथ हुआ था। माता जीतो से गुरु जी को तीन पुत्र प्राप्त हुए,  जिनका नाम था - जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह। फिर 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ किया गया, उनसे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम था - अजित सिंह। उनका तीसरा विवाह 33 वर्ष की आयु में माता साहिब देवन से हुआ, उनकी वैसे तो कोई संतान नहीं हुई किन्तु सिख धर्म में उनका दौर भी प्रभावशाली रहा।

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सिरहिंद के मुग़ल शासक वज़ीर ख़ान ने गुरु गोबिंद सिंह जी की माता तथा दो पुत्रों को बंदी बना लिया था, और उन्हें अपनी सभा में खड़ा कर इस्लाम धर्म कबूलने के लिए ज़बरदस्ती की। लेकिन दोनों ही पुत्रों ने अपना सर ऊपर रखा और इस्लाम धर्म कुबूलने से मना कर दिया। इस से बौखलाए वज़ीर खान ने उन दोनों को ज़िंदा दीवार में चिनवा दिया। अपने मासूम पोतों की मृत्यु से दुखी माता गुजरी भी ज़्यादा समय तक जी नहीं पाई और उनकी मृत्यु हो गयी। वहीं मुग़ल सेना के साथ युद्ध करते हुए  दोनों बड़े भाइयों की भी​ मृत्यु हो गयी।

लाला दौलतराय जी, जो की एक कट्टर आर्य समाजी थे, ने गुरु गोबिंदसिंह जी के बारे में कहा है, "मैं चाहता तो स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द, परमहंस आदि के बारे में कुछ लिख सकता था, परंतु मैं उनके बारे में नहीं लिख सकता जो कि पूर्ण पुरुष नहीं हैं। मुझे पूर्ण पुरुष के सभी गुण गुरु गोविंदसिंह में मिलते हैं।"

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