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रथ सप्तमी: इस पूजन से मिलती है शारीरिक रोगों से मुक्ति!

रथ सप्तमी मुहूर्त :-

12 फरवरी 2019 (मंगलवार)

रथ सप्तमी पर स्नान मुहूर्त = 05:22 से 07:05 (1 घंटा 42 मिनट)

अर्घ्यदान के लिए सूर्योदय का समय = 07:01

सप्तमी तिथि प्रारम्भ = 15:20 (11 फरवरी 2019)

सप्तमी तिथि समाप्त = 15:54 (12 फरवरी 2019)

तिथि: 22, माघ शुक्ल पक्ष, सप्तमी, विक्रम सम्वत

रथ सप्तमी:-

रथ सप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है, इसे "रथ सप्तमी" तथा "अचला सप्तमी" भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान सूर्य नारायण को अपना दिव्य रूप सप्तमी तिथि को ही प्राप्त हुआ था और उनकी संताने भी सप्तमी को ही जन्मी थीं, इसलिए सूर्यदेव को यह तिथि अत्यंत प्रिय है।

रथ सप्तमी की पूजन विधि:-

रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। स्नान करना इस दिन प्रमुख है और इसे केवल अरुणोदय के समय ही किया जाना चाहिए। मान्यता है की इस दिन किसी पवित्र स्थान पर सूर्य का ध्यान करके स्नान करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को शारीरिक बीमारियों से मुक्ति मिलती है तथा स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। 

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 स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है, अर्घ्य देने के लिए सूर्य भगवान की तरफ मुँह करके दोनों हाथों से सूर्य भगवान को कलश से धीरे धीरे जल अर्पण किया जाता है।

जल अर्पण करते हुए सूर्य के विभिन्न नामों का जाप करते रहना चाहिए, यह जाप बारह बार भी किया जा सकता है। जल अर्पण करने के बाद सूर्यदेव को प्रणाम करें। इसके बाद भगवान सूर्यनारायण की घी के दीपक से आरती करें उन्हें लाल पुष्प अर्पित करें व फल चढ़ाएं।

रथ सप्तमी व्रत विधि :-

माघ मास अत्यंत पवित्र माह माना जाता है, सूर्य सप्तमी की तिथि पर व्यक्ति को यदि व्रत रखना है तो पंचमी की तिथि से ही एक समय भोजन करना चाहिए। षष्ठी तिथि को उपवास रखकर भी भगवान सूर्य की पूजा करें और सप्तमी को प्रातःकाल पूजा कर के ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। कई जगहों में इस दिन सूर्य तथा उनके रथ का चित्र बनाया जाता है। सूर्य को मीठे फल तथा मीठे पकवान चढ़ाये जाते हैं।

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रथ सप्तमी की पौराणिक कथा :-

एक समय भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए। ऋषि शरीर से अत्यंत दुर्बल थे, शाम्ब उनकी दुर्बलता को देखकर जोर-जोर से हंसने लगा और अपने अभिमान के चलते उनका अपमान कर दिया। तब दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गए और शाम्ब की धृष्ठता को देखकर उसे कुष्ठ होने का श्राप दे दिया।

शाम्ब की यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना करना प्रारंभ किया, सूर्यदेव उसकी आराधना से प्रसन्न हो गए और उसे कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया।

इसलिए जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना विधिवत तरीके से करते हैं। शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है।

मान्यता है कि भगवान सूर्य की ओर अपना मुख करके सूर्य स्तुति करने से चर्म रोग जैसे गंभीर रोग भी नष्ट हो जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यदि विधि-विधान से यह व्रत किया जाए तो सम्पूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है।

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