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ऐसे मनाएं नवरात्रि का त्यौहार मिलेगा नवदुर्गा का आशिर्वाद !

नवरात्रि के समय को सबसे शुभ समय माना जाता है किसी भी शुभ कार्य को इस दिन बिना किसी शुभ मुहूर्त के आरम्भ किया जा सकता है नवरात्र के समय में दोनों ऋतुओं का मिलन होता है, हम मुख्य रूप से केवल दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं- चैत्र नवरात्र एंव शारदीय नवरात्र (आश्विन नवरात्र)

यह वह संधिकाल है जब ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं, चैत्र नवरात्रि के आरम्भ से ही माना जाता है कि गर्मियों के मौसम की शुरूआत हो चुकी है माता प्रकृति एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुज़रती है, धारणा है कि चैत्र नवरात्रि के उपवास का पालन करके शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिये तैयार होता है।

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चैत्र नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारम्भ होती है तथा रामनवमी पर समाप्त होती है, इस साल चैत्र नवरात्रि का आरम्भ 6 अप्रैल से और समापन 14 अप्रैल को है, नवरात्रि के नौ दिनों में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है, लोग इस समय में आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिये विशेष प्रकार के अनुष्ठान करते हैं, इसमें देवी माँ के सभी रूपों की साधना की जाती है।

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धार्मिक पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि होती है इसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती है, पुराणों की मानें तो भगवान श्री राम ने इसी महीने में देवी दुर्गा की उपासना करके रावण का वध किया था और विजय श्री प्राप्त की थी, इसी कारण चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है, चैत्र नवरात्रि हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है, यह त्यौहार महाराष्ट्र में ’गुड़ी पड़वा’ के साथ शुरू होता है, दक्षिणी राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश में यह त्यौहार ’उगादी’ से शुरू होता है।

नवरात्रि के अनुष्ठानः-

माता के भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं, इन दिनों का समय वह देवी माँ की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जाप करते हुए बिताते हैं, इस नवरात्रि के पहले तीन दिन दुर्गा माँ को समर्पित होते हैं, अगले तीन दिन धन की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित किये जाते हैं आखिरी के तीन दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती को समर्पित किये जाते हैं।

पूजन विधिः-

नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना बहुत आवश्यक है, जिसे ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना जाता है इसे घर के किसी पवित्र स्थान पर ही रखा जाता है ऐसा करने से घर की शुद्धि होती है और जीवन में खुशहाली आती है।

अखण्ड ज्योतिः-

नवरात्र में अखण्ड ज्योत जलाई जाती है जो कि घर परिवार के लिये शान्ति का प्रतीक मानी जाती है, नवरात्रि के दौरान घर में देसी घी से अखण्ड ज्योत जलाएं इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा कम होती है और भक्तों का मानसिक संतुलन बढ़ता है।

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नवरात्रि में माता के भक्त अपने घरों में जौ की बुवाई करते हैं, मान्यता है कि जौ सृष्टि की पहली फसल थी इसलिये जौ को हवन में भी चढ़ाया जाता है, वसंत ऋतु की पहली फसल जौ ही होती है इसे देवी माँ को चैत्र में अर्पण किया जाता है।

नव दिवस भोगः-

नवरात्रि के प्रत्येक दिन में एक देवी का प्रतिनिधित्व करते हैं और प्रत्येक देवी को भेंट के साथ साथ भोग भी चढ़ाया जाता है, नौ दिनों में नौ देवियों के लिये नौ प्रकार का भोग इस प्रकार है-

पहले दिन - केले का भोग
दूसरे दिन - देसी घी का भोग
तीसरे दिन - नमकीन मक्खन का भोग
चौथे दिन - मिश्री का भोग
पाँचवें दिन - खीर या दूध का भोग
छठे दिन - माल पोआ का भोग
सातवें दिन - शहद का भोग
आठवें दिन - गुड़ या नारियल का भोग
नौवें दिन - धान के हलवे का भोग

नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ सबसे शुभ माना जाता है यह शांति, समृद्धि और धन का प्रतीक है।

प्रत्येक दिन नया रंगः-

देवी के नौ दिनों में नौ अलग-अलग रंग पहने जाते हैं जिन्हें शुभकामना का प्रतीक माना जाता है -

पहले दिन - हरा रंग
दूसरे दिन - नीला रंग
तीसरे दिन - लाल रंग
चौथे दिन - नारंगी रंग
पाँचवें दिन - पीला रंग
छठे दिन - नीला रंग
सातवें दिन - बैंगनी रंग
आठवें दिन - गुलाबी रंग
नौवें दिन - सुनहरा रंग

कन्याओं का पूजनः-

कन्या पूजन में दुर्गा माता की प्रतिनिधियों की प्रशंसा करके उन्हें विदा किया जाता है, इन कन्याओं को फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, भोजन (हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।

चैत्र नवरात्रि का प्रतीक प्रार्थना और उपवास है, नवरात्रि आरम्भ होने से पहले घर में देवी के स्वागत के लिये साफ सफाई की जाती है, इन दिनों में सात्विक जीवन व्यतीत किया जाता है, भूमि शयन किया जाता है, सात्विक आहार लिया जाता है, उपवास में केवल सात्विक भोजन जैसे आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल आदि खाया जाता है।

नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा:-

पहला नवरात्र - 6 अप्रैल शनिवार - घट स्थापना व माँ शैलपुत्री पूजा, माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
दूसरा नवरात्र - 7 अप्रैल रविवार - माँ चंद्रघंटा पूजा
तीसरा नवरात्र - 8 अप्रैल सोमवार - माँ कुष्मांडा पूजा
चौथा नवरात्र - 9 अप्रैल मंगलवार - माँ स्कंदमाता पूजा
पाँचवां नवरात्र -10 अप्रैल बुधवार - पंचमी तिथि सरस्वती आहवाहन
छठा नवरात्र - 11 अप्रैल वीरवार - माँ कात्यायनी पूजा
सातवां नवरात्र -12 अप्रैल शनिवार - माँ कालरात्रि पूजा
नवमी -14 अप्रैल रविवार - माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, महानवमी

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