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गोपाष्टमी का महत्व, कथा और पूजा विधि !

22 नवम्बर 2020 (रविवार)

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 09:48 पी एम (21 नवम्बर 2020)

अष्टमी तिथि समाप्त - 10:51 पी एम (22 नवम्बर 2020)

तिथि : 23, कार्तिक, शुक्ल पक्ष, अष्टमी, विक्रम सम्वत

गोपाष्टमी पर्व का महत्व :-

हिन्दू संस्कृति में माना जाता है की सारे देवी और देवता गौ माता के अंदर समाहित रहते है, तो उनकी पूजा करने से सभी का फल मिलता है हिन्दू धर्म में गौ का स्थान माता के बराबर माना जाता है क्युकी जैसे एक माँ का हृदये कोमल होता है वैसे ही एक गौ माता का भी होता है ! जैसे माँ अपने बच्चो को हर स्थिति में सुःख देती है वैसे ही गौ माता भी मनुष्य के जीवन में लाभ प्रदान करती है ! गाय का दूध, गाय का घी, दही, छाछ और मूत्र भी मनुष्य के स्वास्थ के लिए लाभ दायक है ! इसे कर्तव्य माना जाता है की गाय की सुरक्षा और पालन किया जाए ! गोपाष्टमी हमें इस बात का संकेत देती है की पुरातन युग में जब स्वयं श्री कृष्ण ने गौ माता की सेवा की थी, तो हम तो कल्युग के मनुष्य है !

यह त्योहार हमें बताता है की हम सभी अपने पालन के लिए गाय पर निर्भर है ! इसलिए भी वो हमारे लिए पूजनीय है सभी जीव जंतु वातावरण को संतुलित रखने के लिए ज़रूरी है ! इस प्रकार सभी एक दूसरे के ऋणी है और यह उत्सव हमें इसी बात का सन्देश देता है ! शास्त्रों में बताया गया है की गाय उसी तरह पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा ! गौ माता को देवी लक्ष्मी का भी स्वरुप भी कहा गया है !

माँ लक्ष्मी जैसे सुख समृद्धि प्रदान करती है वैसे ही गौ माता भी अपने दूध से स्वस्ति रुपी धन प्रदान करती है ! इस तरह गाय सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय है ! गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष, अष्टमी को गाय की पूजा की जाती है ! शास्त्रों में कहा गया है की गाय समस्त प्राणियों की माता है ! सनातन धर्म के ग्रंथो में कहा गया है की गाय की देह में समस्त देवी - देवताओ का वास होने से यह सर्वदेवमयी है ! भारत में सभी जगह गोपाष्टमी का पर्व बड़े ही उल्ल्हास के साथ मनाया जाता है ! इस दिन गोशालाओ में कुछ दान देना चाहिए और गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए ! इस दिन गाय को नहलाया जाता है तथा मेहंदी और रोली के साथ उनका पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन करवाया जाता है !

गोपाष्टमी कथा :-

जब कृष्ण भगवान् ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा तब वे अपनी मैया यशोदा से कहते हैं की वे अब बड़े हो गए हैं और इसलिए वे बछड़े चराने की जगह गाय को चराने वन में ले जाएगे ! माता ने उन्हें नन्द बाबा के पास आज्ञा लेने भेज दिया भगवान् कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी की वह गाय ही चरायेंगे, इस पर नन्द बाबा बोलते हैं की पंडित द्वारा बताये गए शुभ मुहूर्त पर वे गाय चराने जा सकते हैं ! जब पंडित जी को बुलाया जाता है इसके बाद पंडित जी ने पूरा पंचांग देख लिया और बड़े अचरज में आकर बोले की इस समय के आलावा कोई और मुहूर्त नहीं है अगले वर्ष तक ! नन्द बाबा समझ जाते हैं की भगवान् जब इच्छा करें वही शुभ मुहूर्त है अन्य कोई नहीं !

जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया ! उस दिन माँ यशोदा ने नन्हे बालक श्री कृष्ण जी को बहुत सूंदर तैयार किया मोर मुकुट पहनाया, पैरो में घुंघरू पहनाए और पहनने को पादुका दी लेकिन श्री कृष्ण जी ने पादुकाये नहीं पहनी उन्होंने माँ यशोदा से कहा अगर तुम इन गायो को भी पादुकायें पैरो में बांधोगी तभी में भी पहनूँगा ! यह बात सुनकर मैया भावुक हो जाती है और श्री कृष्ण बिना पैरो में कुछ पहने अपनी गैया को चराने चले जाते है ! इस प्रकार कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती है ! भगवान् श्री कृष्ण के जीवन में गैया का बहुत महत्व है और इन्होने स्वयं गौ माता की सेवा की !

गोपाष्टमी पूजा विधि :-

  • इस दिन प्रातः काल में उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान आदि करते है !
  • प्रातः काल में ही गायो को भी स्नान करवाकर गौ माता के आंगो पर मेहंदी, हल्दी के छापे लगाकर उन्हें सजाया जाता है !
  • इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है !
  • प्रातः काल में ही धुप - दीप, अक्षत, रोली, गुड़, आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है !
  • इस दिन गायो को खूब सजाया जाता है और इसके बाद गाय को चारा डाला जाता है और उसकी परिक्रमा करते है ! परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गाय के साथ चलते है !
  • संध्या के समय गायों के घर लौटने पर उन्हें प्रणाम कर उनके चरणों की धूल को माथे पर लगाते है !
  • ऐसा माना जाता है की गोपाष्टमी के दिन गाय के निचे से निकलने वालो को बड़ा पुण्य मिलता है !