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जानिए गुरु रविदास जी के जीवन परिचय व जयंती के बारे में !

आज हम आपको गुरु रविदास जी के जीवन परिचय व जयंती के बारे बताएगे !

गुर रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास सिरगोवर धन गऊ में हुआ था ! इनकी माता कलसी देवी एवं पिता संतोक दास जी थे जो चमार जाती के थे ! रवि दास जी के जन्म पर सबकी अपनी अपनी राये है कुछ लोगो का मानना है की इनका जन्म 1376 से लेकर 1377 के आस पास हुआ था ! कुछ कहते है 1399 सी.ई. में हुआ था ! कुछ दस्तावेजों के अनुसार रवि दास जी ने 1450 से 1520 के बीच में अपना जीवन धरती में बिताया था इनके जन्म स्थान को श्री गुरु रविदास जन्म स्थान कहा जाता है ! रविदास जी के पिता राजा नगर राज्ये में सरपंच हुआ करते थे इनका जूता बनाने और सुरधारणे का काम हुआ करता था रविदास जी बचपन से ही बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे ! रविदास जी को बचपन से ही ऊंची जाति वालों की हीन भावना का शिकार होना पड़ा था वह लोग हमेशा इस बालक के मन में उसके नीच जाती होने की बात दालते रहते थे रवि दास जी ने समाज को बदल ने के लिए अपनी कलम का सहारा लिया वह अपनी रचनाओं के द्वारा जीवन के बारे में लोगो को समझाते लोगो को शिक्षा देते रहते थे की इंसान को बिना किसी मतभेद के अपने पडोसी से सम्मान प्रेम करना चाहिए !

रवि दास जी की शिक्षा - बचपन में रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में शिक्षा लेने जाया करते थे ! कुछ समय बाद ऊंची जाति वालों ने उनका पाठशाला में आना बंद करवा दिया था ! पंडित शारदा नन्द जिन्हे रविदास जी की प्रतिभा को जान लिया था ! वह समाज की उच्च नीच बातो को नहीं मानते थे उनका मानना था की रविदास भगवान् द्वारा भेजा गया एक बच्चा है जिसके बाद पंडित शारदा नन्द जी ने रविदास जी को अपनी गुप्त पाठशाला में शिक्षा देना शुरू कर दिया ! वह बहुत प्रतिभा शैली और होनहार शिष्ये थे उनके गुरु उन्हें जितना पड़ते थे उससे ज्यादा वह अपनी समझ से शिक्षा ग्रहण कर लेते थे पंडित शारदा नन्द जी रवि दास जी बहुत प्रभित रहते थे उनके आचरण और प्रतिभा को देखकर सोचा करते थे की रविदास एक अच्छा अध्यात्मक गुरु और अच्छा समाज सुधारक बनेगा !

संत रविदास का आगे का जीवन - रविदास जी जैसे जैसे बड़े होते जाते है भगवान् राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती जाती है वह हमेशा राम रघुनाथ, राजा राम चंद्र, कृष्ण गोविन्द हरी आदि शब्द का उपयोग करते थे जिनसे उनके धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था रवि दास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे ! मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोड़ की रानी थी ! वह रविदास की शिक्षा से बहुत प्रभावित थी और उनकी वह एक बड़ी अनुनियाई बन गई थी ! मीरा बाई अपनी रचनाओं मे लिखती है की उन्हें कई बार मृत्यु से उनके गुरु रविदास जी ने बचाया था !

रविदास जी सामाजिक काम - लोगों का कहना है की भगवान् ने धर्म की रक्षा के लिए रविदास जी को धरती पर भेजा था क्योंकी इस समय पाप बहुत बर्ड गया था लोग धर्म के नाम पर जाती रंग भेद करते थे ! रविदास जी ने बहादुरी से सभी भेद भावनाओ का सामना किया और विश्वास एवं जाती की सचाई परिभाषा लोगो को समझाई वह लोगो को समझते थे की इंसान जाती धर्म या भगवान् पर विश्वास के द्वारा ही जाना जाता है बल्कि वह अपने कर्मो के द्वारा पहचाने जाते है रविदास जी ने समझ में कुछ छुआ छूत प्रचलन को भी खत्म करने के लिए बहुत प्रयास किए उस समय नीची जाती वालो को बहुत नाकारा जाता था उनका मंदिर में पूजा करना, स्कूल में पढ़ाई करना और गाँव में दिन के समय निकलना पूरी तरह वर्जित था यहाँ तक की उन्हें गाँव में पक्के माकन की जगह कच्चे झोपड़े में रहने को ही मजबूर किया जाता था ! समाज की ये दूर दशा देखकर रविदास जी ने समाज से छुआछूत और भेदभाव करने की ठानी और समाज के लोगो को सही संदेश देना शुरू किया !

रविदास जी लोगो को संदेश देते थे की भगवान् ने लोगो को बनाया है न की इंसान ने भगवान् को इसका मतलब है हर इंसान भगवान् द्वारा बनाया गया है और सब को धरती में सम्मान अधिकार है ! संत गुरु रविदास जी एक भाईचारे और साही सुरता के बारे में लोगो को विभिन शिक्षाए दिया करते थे ! रविदास जी द्वारा लिखे गए परधर्मिक गाने एवं अन्य रचनाओं को पाँचवे सिख “गुरु अर्जन देव” ने इसे ग्रन्थ में शामिल किया था गुरु रविदास जी की सिक्षाओ के अनुयाइयों को रविदास से और उनके उपदेश के संग्रह से रविदास से पंत कहते है रविदास जी का स्वभाव रविदास जी को उनकी जाती वाले भी आगे बढ़ने से रोकते थे शूद्र लोग रविदास जी को ब्रामण की तरह तिलक लगाने एवंम जनेहु पहनने से रोकते थे ! गुरु रविदास जी इन सभी बात का खंडन करते थे और कहते थे की सभी इंसान को धरती पर एक सम्मान का अधिकार है वो अपनी मर्जी से कुछ भी कर सख्ता है उन्होंने हर वो चीज़ जो नीची जाती के लिए माना थी वो करना शुरू कर दिया जैसे जनेहु पहनना, धोती पहनना , तिलक लगाना ब्राह्मण लोग उनके इस गतिविधियों के सख्त खिलाफ थे उन्होंने वहाँ के राजा से रविदास जी के खिलाफ शिकायत कर दी थी !

रविदास जी सभी ब्राह्मण लोगो को बड़े प्यार से इसका जवाब देते है उन्होंने राजा के सामने कहा की शूद्र के खिलाफ भी लाल खून है दिल है उन्हें बाकियो की तरह सम्मान अधिकार है रविदास जी ने भरी सभा में सबके सामने अपनी छाती को चिर दिया और चार युग सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलयुग की तरह चार युग की तरह क्रमशा सोना, चाँदी, ताम्बा और कपास से जनेहु बना दिया ! राजा सहित वा मौजूद सभी लोग बहुत शर्मसार हुए और इनके पैर छूकर गुरु जी को सम्मानित किया ! राजा को अपनी बचकानी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ उन्होंने गुरु से माफ़ी मांगी संत रविदास जी ने सबको माफ़ कर दिया और कहा जनेहु पहनने से किसी को भगवान् नहीं मिला जाते है उन्होंने कहा की केवल आप सभी लोगो को वास्तविकता और सच्चाई को दिखने के लिए इस गति विधि में शामिल किया गया है उन्होंने जनेहु उत्तार कर राजा को दे दिया और इसके बाद उन्होंने कभी भी जनेहु पहनना और न कभी तिलक लगाया !

रविदास जी के पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों से मदद मांगता है ताकि वह गंगा के तट पर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सके ब्राह्मण इसके खिलाफ थे क्युकी वह गंगा में स्नान किया करते थे और शूद्र का अंतिम संस्कार होने से वह प्रदूषित हो जाती उस समय गुरु जी बहुत दुखी और असहाय महसूस कर रहे थे लेकिन इस घडी में भी उन्होंने अपना सयम बनाए रखा और भगवान् से अपने पिता की आत्मा की शांति की प्राथना की फिर वहाँ पर बहुत बड़ा तूफान आया फिर नदी का पानी विपरित दिशा में बहने लगता है फिर अचनाक एक बड़ी लहर मृत शरीर के पास आई और अपने में सारे अवशेषो का शोषित कर लिया ! कहते है तभी से नदी विपरीत दिशा में बहती है भारत के इतिहास के अनुसार बाबर मुग़ल साम्राज्य का पहला शासक था जिन्होंने 1526 से पानी की लड़ाई जीत कर दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था ! बाबर गुरु रविदास के आद्यात्मिक शक्तियों के बारे मे अच्छे से जानते थे और वो उनसे मिलना चाहते थे फिर बाबर हुमायु के साथ उनसे मिलने जाते है तो वो उनके पेअर चुकार उन्हें सम्मान देते है ! गुरु जी उन्हें आशीर्वाद देने की जगह उसे दण्डित करते है क्युकी उसने बहुत से मासूम लोगो को मारा था गुरु जी बाबर को गहराई से शिक्षा देते है जिससे प्रभावित होकर बाबर रविदास जी की अनुनियाई बन जाता है और सच्चे सामाजिक कार्य करने लगता है !

रविदास जी की मृत्यु - रविदास जी की सच्चाई मानवता भगवान् के प्रति प्रेम सदभावना दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मण उन्हें मरने की योजना बना रहे थे ! रविदास जी के कुछ विरोधियो ने सभा का आयोजन किया उन्होंने गाँव से दूर सभा आयोजित की और उसमे गुरु जी को आमंत्रित किया गुरु जी उन लोगो की पहले ही समझ जाते है गुरु जी वहाँ जा कर सभा का आयोजन करते है गलती से गुरु जी की जगह उन लोगो का साथी भला नाथ मारा जाता है गुरु जी थोड़ी देर बाद जब अपने कक्ष में शंक बजाते है तो सब अचम्बित हो जाते है ! अपने साथी को मारा देख वह बहुत दुखी होते है और दुखी मन से गुरु जी के पास जाते है रविदास जी के अनुनाइयो का मानना है की रविदास जी 120 या 126 की उम्र में त्याग देते है रविदास जयंती मांग महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है ! वाराणसी में इनके जन्म स्थान श्री गुरु रविदास जन्म में विशेष कार्य आयोजित होते है जहा लाखो की संख्या में रविदास जी के भक्त उनके जन्म स्थान पर पहुँचते है ! रविदास जयंती मांनने का उदेश्ये ये ही है की उनकी दी हुई शिक्षा को याद किया जा सके उनके द्वारा दी गई भाईचारे वाली शिक्षा को अपना सके ! वाराणसी में रविदास जी के बहुत से स्मारक बनाये गए है !