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जानिए श्री गणेश (वक्रतुण्ड) अवतार का रहस्य ?

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

भगवान् श्री गणेश इस संसार मैं एक ऐसा अवतार है जो आपके सभी बिगड़े काम बना देते है. विग्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा हर शुभ कार्य से पहले की जाती है ! भगवान् श्री गणेश शुभ फल दाता सोम्यता के प्रतिक जिनके मोदक और लडूओं जैसी मीठी वाणी और मुस्कान अपने भक्तो को भी प्रसन्नता की मिठास से भर देती है ! लेकिन एक बार तीनो लोको में घटी एक भयंकर घटना ने भगवान गणेश को पूरी तरह से क्रोधित कर दिया और उन्हें महाकए वक्रतुण्ड का अवतार लेना पड़ा !

इंद्र राज की भूल से उत्पन हुआ मकरासुर :-

यह उस समय की बात है जब इंद्र राज की एक भूल से मकरासुर नाम का एक असुर उत्पन हो गया इसके बाद मकरासुर ने दैत्य गुरु शुक्र आचार्ये से भगवान् शिव के पंचक श्री मंत्र ॐ नमः शिवाय की दीक्षा प्राप्त की और एक पैर पर खड़े होकर कई वर्षो तक भगवान शिव की तपस्या की मकरासुर की कड़ी तपस्या देख कर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने मकरासुर से वरदान मांगने को कहा ! मकरासुर तो इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहा था की कब महादेव प्रकट हो और कब उनसे वरदान प्राप्त किया जाये उसने भगवान शिव से कहा की वो उसे वरदान दे की ना तो कोई देव न देत्ये और न ही कोई मनुष्य उसका संगहार कर सके वो उसे अभय होने का वरदान प्रदान करे मकरासुर की इच्छा सुनकर भगवान शिव उसे अभय होने का वरदान प्राप्त कर देते है ! वरदान प्राप्त होते ही मकरसुर वापस लोटकर गुरु शुक्र आचर्य के पास आता है और उन्हें अपने वरदान के बारे में बताता है यह सुन कर गुरु शुक्र आचार्ये आती प्रसन्न होते है और उसे देत्ये राज नियुक्त कर देते है !

तीनों लोक पर किया आक्रमण :-

देत्ये राज बनते ही मकरासुर ने पृथ्वी पर आक्रमण कर दिया ! कोई भी राजा मकरासुर के आगे टिक नहीं सका और पूरी पृथ्वी मकरासुर के अधीन हो गई इसके बाद उसने पाताल लोक और स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया सभी देवों को परास्त करने के बाद वो तीनो लोकों का राजा बन बैठा मकरासुर से पराजित हुए सभी देता ब्रम्हा जी और विष्णु जी को लेकर भगवान् शिव की शरण में जाते है लेकि भगवान शिव भी कुछ नहीं कर सकते थे क्युकी उन्होंने खुद ही मकरासुर को अभय होने का वरदान प्रदान किया था इसके बाद सभी देवता परेशान हो जाते है की अब मकरासुर के आतंक को कैसे समाप्त कैसे किया जाये कि तभी एक अनहोनी घटना घटित होती है जिसने सभी देवताओं को हिलाकर रख दिया था !

मकरासुर अपनी शक्ति के नशे मै चूर होकर उसने भगवान शिव के कैलाश पर ही आक्रमण कर दिया जब तक शिव अपने अहंकारी भक्त को समझाते तब तक वो शिव पर प्रहार करना प्राम्भ कर देता है इसके बाद भगवान शिव भी अपने बचाव मे उतारते है और मकरासुर पर वार करना प्राम्भ कर देते है लेकिन जैसे ही भगवान् शिव मकरासुर पर वार करते है वो उनकी शक्तियों को निष्फल कर देता है क्युकी भगवान् शिव ने ही उसे अभय होने का वरदान दिया था और आखिर खर भगवान् शिव अपने दिए हुए वरदान में ही फस जाते है और मकरासुर के पक्ष मे बंद जाते है अब तक देवताओ की आखरी उम्मीद भी समाप्त हो चुकी थी लेकिन तभी भगवान् दत्तात्रेय वह पहुँच जाते है और देवताओ को वक्रतुण्ड की एकाक्षरी मंत्र का उपदेश देते है !

भगवान् श्री गणेश वक्रतुंड अवतार :-

इसके बाद सभी देवता गण एकाक्षरी मंत्र जाप प्रारम्भ कर देते है सभी देवताओं की पूजा से संतुष्ट होकर भगवान श्री गणेश के अवतार वक्रतुण्ड प्रकट होते है और मकरासुर का अहंकार तोरड़ ने और उसके विनाश का उत्तर दाइत्व लेते है ! इसके बाद भगवान् वरकरतुण्ड अपने गणों के साथ मकरासुर के नगरो पर आक्रमण कर देते है और उसके दोनों पुत्रों सुन्दर प्रिये और विषय प्रिये का वध कर देते है अपने दोनों प्रिय पुत्रों की मृत्यु का समाचार जब मकरासुर को मिलता है तब वो गुस्से से तमतमा उठता है और उनकी मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए खुद युद्ध भूमि मे आ जाता है भगवान् वक्रतुण्ड को सामने देख वो उन्हें आप शब्द कहना प्रारम्भ कर देता है ये सुन कर भगवान् वक्रतुण्ड मकरासुर से कहते है की अगर तुम्हे आपने प्राण प्रिये है तो शस्त्र त्याग कर मेरी शरण मे आ जाओ अन्यथा तुम्हारी मृतयु निश्चित है !

भगवान् वक्रतुण्ड का क्रोध देख कर मकरासुर भय से कांपने लगता है और भगवान् शिव का ुस्से दिया हुआ अभय होने का वरदान कमज़ोर होने लगता है और आखिर कार उसकी सारी शक्ति खत्म हो जाती है एहंकार के समाप्त होते ही वो विनय पूर्वक वक्रतुण्ड की शरण मे आकर उनकी स्तुति करने लगता है और उनसे क्षमा मांगता है भगवान् वक्रतुण्ड मकरासुर से कहते है की वो उसे तभी क्षमा करेंगे जब वो स्वर्ग लोक धर्ती लोक और पाताल लोक वापस लौटा देगा और कभी भी किसी को परेशान नहीं करेगा मकरासुर भगवान् वक्रतुण्ड की बात मान लेता है और तीनो लोको को उनके उतरा अधिकारियो को सौप देता है इसके बाद भगवान् वक्तुन्द से अभय दान प्राप्त कर पाताल लोक जाकर शांत जीवन व्यतित करने लगता है