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जब असुर और ग्रह नहीं है तो कौन हैं राहु और केतु? जानिए (Rahu and Ketu)

हमने अपनी पौराणिक कथाओं में सुना है कि जो अमृत समुद्र मंथन से निकला था उसमें असुरों और देवताओं दोनों का हिस्सा था, भगवान विष्णु के मन में विचार आया कि असुर अमृत का दुरूपयोग कर सकते हैं इसलिये भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप बनाकर अमृत देवताओं को पिला दिया और असुरों को ऐसे ही कोई साधारण द्रव्य पिला दिया, परन्तु उन असुरों में एक असुर था स्वरभानु जिसे इस छल का अनुभास हो गया था और वह भी भेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा और अमृत पी गया |

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परन्तु सूर्य देव और चंद्र देव ने उसके इस छल को भांप लिया और विष्णु जी को सावधान किया, तभी विष्णु जी अपने असली रूप में आये और अपने चक्र से उस असुर का सर धड़ से अलग कर दिया, परन्तु तब तक वह अमृत की कुछ बूंदें ग्रहण कर चुका था इसीलिये उसका सर और धड़ अलग होने पर भी वह मरा नहीं, और उसका सर ’राहु’ और धड़ ’केतु’ कहलाया जाने लगा, क्योंकि उसका गला सूर्यदेव और चंद्रदेव के कारण कटा था इसलिये उसने उन दोनों को ग्रहण करने का प्रण लिया, सूर्य और चंद्र से बैर के ही कारण हर माह राहु सूर्य का और केतु चंद्र का ग्रहण करता है।

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क्या राहु और केतु ग्रह हैं ? 

हमारी कुंडली में कई प्रकार के ग्रह और उनके कार्य व प्रभाव जीवन की गति निश्चित करते हैं, प्रमुख ग्रह हैं- सूर्य- यह आत्मा का कारक है, चंद्र- यह मन का कारक है, मंगल- यह साहस और पराक्रम का गुण देता है, बुध- यह बुद्धि तथा वाणी का कारक है, गुरू- यह विद्या का स्वामी है, शुक्र- यह सुख और ऐश्वर्य का स्वामी है, शनि- यह न्याय के स्वामी हैं।

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मनुष्य के जीवन को ये सभी ग्रह नियंत्रित करते हैं फिर ये राहु और केतु क्या हैं ? क्या ये भी किसी ग्रह की श्रेणी में आते हैं ? इसका उत्तर है- नहीं, राहु और केतु ग्रह नहीं हैं ये ग्रह की छाया हैं, इनको पाप ग्रह भी कहा जाता है, जिस समय सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आते हैं तो सूर्य और चंद्र के बीच में पृथ्वी आ जाती है जिस कारण चंद्रमा दिखाई नहीं देता, ऐसी स्थिति आने पर उसे चंद्र ग्रहण कहते हैं, वहीं जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्र आ जाता है तो पृथ्वी पर सूर्य की किरणें नहीं पड़ती और ऐसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं, अर्थात इन पिंडों की छाया एकदूसरे पर पड़ने से ही ग्रहण होते हैं, आम भाषा में यह छाया ही राहु और केतु कहलाती है।

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ज्योतिषी में कैसे काम आते हैं राहु-केतु ?

सूर्य के चारों ओर पृथ्वी परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है, ये दोनों ही परिभ्रमण पथ एक दूसरे को दो बिंदुओं पर भेदते हैं यह दोनों ही बिंदु लंबवत होते हैं, यह बिंदु जब अपनी सीध में आते हैं तब सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होते हैं, सूर्य ग्रहण अमावस्या पर होता है और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा पर होता है, यह महत्वपूर्ण बिंदु हैं इसीलिये ज्योतिष इन्हें राहु और केतु के नाम से जानते हैं, यह प्रमाणित हुआ है कि राहु और केतु की दूरी एक दूसरे से 6 राशि और 180 अंश की है।

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