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शबरी जयंती: धैर्य और भक्ति की साक्षात् मूर्ति (Shabri Jayanti )

हर वर्ष फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की नवमी को शबरी जयंती मनाई जाती है। और इस वर्ष शनिवार, 15 फरवरी 2020 को शबरी जयंती मनाई जाएगी। शबरी भगवान राम की जन्म से भक्त थी तथा भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर को खाकर शबरी के भक्ति को पूर्ण किया था, और सम्पूर्ण जगत को यह सन्देश दिया था कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं। अर्थात जो कोई भी भगवान् की सेवा शुद्ध भावना से करते हैं, भगवान् उनका कल्याण करते हैं। 

शबरी का परिचय :-
शबरी का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और वह 'भील' समुदाय से संबंध रखती थी। इसी कारण उसे 'भीलनी' भी कहा जाता है। शबरी के पिता भील समुदाय के सरदार थे। शबरी जब विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने एक दूसरे भील कुमार से उसका विवाह पक्का किया। उनके वहाँ प्रथा
थी की विवाह के एक दिन पूर्व पशुओं का बलिदान दिया जाता था। अतएव सैकडों  बकरे-भैंसे बलिदान के लिये इकट्ठे किये गये।

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इस पर शबरी ने अपने पिता से पूछा- 'ये सब जानवर क्यों इकट्ठे किये गये हैं?' पिता ने कहा- 'तुम्हारे विवाह के उपलक्ष में इन सब की बलि दी जायेगी।' यह सुनकर बालिका शबरी दुखी हो गयी, क्योकि वह प्रभु भक्त थी और उसके हृदय में करुणा का वास था।  उसने निश्चय किया कि वह ऐसा कोई विवाह नहीं करेगी जिसकी वजह से उन निर्दोष पशुओं का बलिदान दिया जाये।  ऐसा सोच के वह रात्रि के प्रहर में वन के लिए निकल गयी।

ऋषि मतंग का आश्रय :-
वन में वास करते हुए शबरी को शिक्षा प्राप्ति की इच्छा हुई, इसलिए उसने कई ऋषि- मुनियों से शिक्षा के लिए प्रार्थना की। परन्तु शबरी हीन जाति की बालिका थी,  इसलिए सबने उसे दुत्कार दिया। अन्त में मतंग ऋषि ने उस पर कृपा की। महर्षि मतंग ने उसे अपने आश्रम में न केवल रहने के लिए स्थान दिया अपितु उसे शिक्षा भी दी। शबरी भी पूरी श्रद्धा से अपने गुरु तथा आश्रम की देखभाल करती थी। जब महर्षि  का अन्त निकट आया, उनके वियोग की कल्पना मात्र से ही शबरी व्याकुल हो गयी। महर्षि ने उसे निकट बुलाकर समझाया- 'बेटी! धैर्य से कष्ट सहन करती हुई साधना में लगी रहनां। प्रभु राम एक दिन तेरी कुटिया में अवश्य आयेंगे। और तेरा उद्धार करेंगे।' शबरी का मन अप्रत्याशित आनन्द से भर गया और महर्षि ने अपनी देह त्याग दी।

प्रभु राम की प्रतीक्षा :-
गुरुवर की वह वाणी उसे नित्य सुनाई देती कि एक दिन राम तेरी कुटिया में आयंगे। नित्य भगवान के दर्शन की लालसा से वह अपनी कुटिया को साफ़ करती, उनके भोग के लिये फल लाकर रखती। ऐसा करते करते वह वृद्ध हो गयी, किन्तु उसने प्रभु की प्रतीक्षा नहीं छोड़ी, आख़िर  शबरी की प्रतीक्षा पूरी हुई। और श्री राम माता सीता की खोज करते हुए उसकी कुटिया में पहुंचे। राम को देखते ही शबरी की जीवन भर की तपस्या फलीभूत हो गयी। उसने राम और लक्ष्मण का सत्कार किया, उनके चरण धोये और उनको खाने के लिए बेर दिए। इस भय से कि कहीं कोई खट्टा बेर प्रभु को न खिला दे, वो पहले स्वयं बेर चखती और मीठा बेर प्रभु को खाने के लिए देती।  यह देख के लक्ष्मण ने कहा 'भ्राता ये तो जूठे बेर हैं, इन्हे मत खाइये' , तो राम ने उत्तर दिया ' लक्ष्मण ये बेर जूठे नहीं बल्कि सबसे मीठे हैं, क्योकि इनमे प्रेम है।' इस प्रकार भगवान् राम ने प्रेम पूर्वक शबरी के सारे जूठे बेर खा लिए।
इस प्रकार ऋषि मतंग की बात सत्य हो गयी और शबरी की सच्ची सेवा के फलस्वरूप उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

शबरी धाम :-
गुजरात के सापुतारा से कुछ दूर स्थित शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी। शबरी बरसों से इसी स्थान पर राम की प्रतीक्षा कर रही थी। हिल स्टेशन सापुतारा के नजदीक स्थित शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल में तब्दील हो गया है। यहां एक छोटी सी पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है और लोगों का मानना है कि शबरी यहीं रहती थीं।यहां मंदिर के आसपास छोटे-छोटे बेर के पेड़ दिखते हैं। मंदिर में रामायण से जुड़ी और खासतौर पर रामायण के शबरी प्रसंग से जुड़ी तस्वीरें बनी हुई हैं। यहां 'शबरी कुम्भ' आयोजित होता है।

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