साध्वी जया किशोरी जी का जन्म 13 जुलाई 1996 में राजस्थान की मरुधर पावन भूमि के सुजानगढ़ नामक गॉव में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ। दादाजी एवं दादीजी के सानिध्य में रहने और घर में भक्ति का माहौल रहने के कारण बचपन में ही मात्र 6 वर्ष की अल्पआयु में ही उनके हृदय में भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेमभाव जागृत हो गया।साध्वी जी के प्रारम्भिक गुरु राधारानी के अनन्य भक्त बैकुण्ठनाथ जी मंदिर वाले गुरुदेव पं. श्री गोविन्दरामजी मिश्र थे जिन्होंने साध्वी जी का श्रीकृष्ण के प्रति असीम प्रेम भाव को देखा और उनको "किशोरीजी" की उपाधि आशीर्वाद स्वरुप दी।
साध्वी जया किशोरी |
|
जन्म |
13 जुलाई, 1996 |
जन्म स्थान | गाँव सुजानगढ़, राजस्थान |
जीवन चरित्र
बचपन में दादाजी एवं दादीजी के द्वारा भगवान की करुणा, उदारता और भक्त के प्रति अनन्य प्रेम से जुड़ी कहानियां सुनकर उनके मासूम और निश्चल कोमल हृदय में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बढ़ता चला गया। और यही प्रेमभाव, भक्तिभाव मात्र 6 वर्ष की छोटी आयु मे मुखारबिन्द से ऐसा उमड़ा, जिसने भजनों के माध्यम से जन-जन के हृदय को बहुत ही गहराई से छुआ।
इसके बाद मात्र 9 वर्ष की अल्पआयु में ही साध्वी जी ने संस्कृत में लिंगाष्टकम्, शिव-तांडव स्तोत्रम्, रामाष्टकम्, मधुराष्टकम्, श्रीरुद्राष्टकम्, शिवपंचाक्षर स्तोत्रम्, दारिद्रय दहन शिव स्तोत्रम् आदि कई स्तोत्रों को गाकर जन-जन का मन मोह लिया। 10 वर्ष की अल्प आयु में ही हमने अमोघफलदायी सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड गाकर लाखों भक्तों के मन में अपना एक विशेष स्थान बना लिया।
जीवन तत्व और मार्गदर्शन :
बचपन से ही परम पूज्य गोलोकवासी स्वामी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी से अत्यधिक प्रभावित होकर उनकी वाणी को ही साध्वी जी उनको अपना गुरु स्वीकार कर लिया और उनके द्वारा गाये गये "नानी बाई रो मायरो" को अपनी मातृभाषा मारवाड़ी (राजस्थानी) भाषा में तैयार किया और फिर इसे जन-जन के हृदय तक पहुंचाया।
नारायण सेवा ट्रस्ट में किशोरी जी |
साध्वी जी के तात्कालिन गुरु भागवताचार्य ज्योतिषाचार्य गुरुदेव पं. श्री विनोद कुमार जी सहल हैं, जिनसे वह श्रीमद् भागवत ज्ञान महायज्ञ की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।
कथा वाचन :
साध्वी जी की ओर से धर्म के साथ-साथ सेवा का कार्य भी होते रहते है, समाज के पिछड़े दीन-हीन असहाय विकलांग बच्चों को सहारा मिल सके और उनके मन से हीन भावना निकल सकें, इस विचार से उन्होंने अपनी सम्पूर्ण कथा इन बच्चों के निःशुल्क आपरेशन, भोजन व शिक्षा हेतु समर्पित कर दी है।
कथाओं से आने वाली समस्त दान राशि को वह नारायण सेवा ट्रस्ट, उदयपुर राजस्थान को दान करते हैं, जिससे विकलांग-विवाह को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ उन्हें रोजगार और समाज में सर उठाकर जीवन यापन करने का साहस मिलता है। साध्वी जी भ्रूण हत्या को सबसे जघन्य अपराध मानती है और अपनी कथा में सभी लोगों से प्रार्थना करती हैं कि ऐसा जघन्य अपराध न करें। गौ- हत्या का हम सख्ती से विरोध करते हैं। गौ- हत्या हमारे देश और समाज पर कलंक हैं। अपने प्रवचनों में इन सभी बातों पर विशेष जोर देते हुये वह बहुत भावुक हो उठती है।
6 वर्ष की उम्र से भक्ति के सफर की शुरुआत करके आज अपनी कथाओं और प्रवचनों के माध्यम से हजारों दीन-हीन व असहाय विकलांग बच्चों के जीवन को एक नई दिशा दे रही है।
साध्वी जी द्वारा राजस्थानी (मारवाड़ी) भाषा में कथा कहने का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसने वाले राजस्थानी भाइयों को अपनी लुप्त होती मारवाड़ी भाषा को बचाने की प्रेरणा देना है।
उन्होंने एक ओर कथा के माध्यम से परिवारों को बांधने का प्रयास किया है, तो वहीं दूसरी ओर बच्चों में खासतौर पर युवा वर्ग में भगवान के प्रति दृढ़-विश्वास और भक्ति भावना को जागृत किया है।
भक्तो को कथा का रसपान कराती किशोरी जी |
क्योंकि साध्वी जी मानती है कि आज के बच्चों की जिन्दगी मोबाइल, लैपटॉप, आइ-पैड, व्हाट्सऐप , ईमेल और मैसेज तक ही सीमित हो गई है, जिसका परिणाम बच्चों में संस्कारों की कमी के रुप में सामने आ रहा है।
युवा बच्चों द्वारा माता-पिता व बुजुर्गों का सम्मान ना करना, घर आये अतिथि का सत्कार न करना और सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करना समाज के भ्रमित होने का संदेश दे रही है।
आज ये बच्चे ईश्वर के प्रति प्रेम और आस्था-विश्वास को भूलते जा रहे हैं, अपनी गौमाता को एक जानवर से ज्यादा नहीं समझते। इसीलिए अपनी कथाओं व प्रवचन के माध्यम से अत्यंत सरल, सीधी, निश्चल व मधुर वाणी से खुद के अनुभावों के आधार पर ही समाज को समझाने का प्रयास किया हैं।
संदर्भ :
Amreesh Kumar Aarya (वार्ता) 11:31, 29 दिसम्बर 2017 (UTC)Amreesh Kumar Aarya