प्रथम नवदुर्गा: माता शैलपुत्री
माता शैलपुत्री का उपासना मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
माता का स्वरूप
वृषभ–स्थिता माता शैलपुत्री खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, भुशुंडि, कपाल तथा शंख को धारण करने वाली संपूर्ण आभूषणों से विभूषित नीलमणि के समान कांतियुक्त , दस मुख ओर दसचरण वाली है | इन के दाहिने हाथ मे त्रिशूल ओर बाए हाथ मे कमल पुष्प शुशोभित है |
आराधना महत्व
महाकाली की आराधना करने से साधक को कुसंस्कारो , दूर्वासनाओ तथा असुरी व्रतियो के साथ संग्राम कर उन्हे ख़त्म करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है | ये देवी शक्ति, आधार व स्थिरता की प्रतीकहै | इसके अतिरिक्त उपरोक्त मंत्र का नित्य एक माला जाप करने पर सभी मनोरथ पूर्ण होते है | इस देवी की उपासना जीवन मे स्थिरता देती है |