हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सावन मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते हैं लेकिन अलग-अलग स्थानों एंव लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में रक्षा बंधन का पर्व मनाते हैं।
रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि-रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई -बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते है। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एंव दीपजलाकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-ं बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाईयों के माथे पर कुमकुम, रोली एंव अक्षत से तिलक करती हैं। इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैंऔर मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आर्शीवाद एंव उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एंव सुख तथा उन्नति की कामना करती हैं। इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एंव अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है । जिन लोगों की बहनें नही हैं वह आज के दिन किसी मुंह बोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एंव सोने की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया हैं। चांदी एंव सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धाग लपेट लेना चाहिए। वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युदिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्यौहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एंव उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भूत शक्ति होती है। रक्षा बंधन से सम्बन्धित इस प्रकार की अनेकों कथाएं हैं।
रक्षा बंधन की कथा
रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए। शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी को आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया। आधुनिक समय में राजपूत रानी कर्मावती की कहानी काफी प्रचलित हैं। राजपूत रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को शत्रु से बचाया।
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व- भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं। और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बांधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एंव उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता हैं। ईश्वर संसार के रचयिता एंव पालन करने वाले हैं। अतः इन्हें रक्षा सुत्र अवश्य बांधना चाहिए।