ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को अचला एकादशी कहते हैं। इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं। इस व्रत के करने से ब्रह्यहत्या परनिन्दा, भूत यानि जैसे निकृष्ट कर्मो से छुटकारा मिल जाता है और कीर्ति, पुण्य एंव धन- धान्य में अभिवुद्धि होती है।
अचला एकादशी
प्राचीनकाल में महीध्वज नामक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। विधि की विडम्बना देखिये कि उसी का छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा की क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई को अपना वैरी समझता था। उसने एक दिन अवसर पाकर अपने बड़े भाई राजा महीध्वज की हत्या कर दी और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया।
राजा की आत्मा पीपल पर वास करने लगी और आने जाने वालों को सताने लगी। अचानक एक दिन धौम्या ऋषि उधर से निकले। उन्होंने तपोबल से प्रेत के उत्पात का कारण तथा उसके जीवन-वृत्तान्त को समझ लिया। ऋषि ने प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल के वृक्ष से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। अन्त में ऋषि ने प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिये अचला एकादशी व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत करने से राजा दिव्य शरीर धारण कर स्वर्ग लोक को चला गया