संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश की पूजा का विशेष दिन होता है। हिंदू पंचाग के अनुसार ये संकष्टी हर माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन आती है। शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इसी के साथ संकष्टी चतुर्थी को सकट हारा के नाम से भी जाना जाता है। अगर किसी माह संकष्टी चतुर्थी मंगलवार के दिन पड़ती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को दक्षिण भारत के लोग बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन लोग सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत करते हैं। मान्यता है कि चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और उनका व्रत करना बहुत फलदायी होता है। अंगारकी चतुर्थी को संकट हारा चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। उसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय वहां माता और भगवान शिव के अलाना कोई और मौजूद नहीं था, लेकिन खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक व्यक्ति की जरुरत थी। इस विचार के बाद दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी और उससे कहा कि खेल में कौन जीता इसका फैसला तुम करना। खेल के शुरु होते ही माता पार्वती विजय हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उन्हीं की जीत हुई। लेकिन एक बार गलती से बालक ने भगवान शिव का विजयी के रुप में नाम ले लिया। जिसके कारण माता पार्वती क्रोधित हो गई और उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक उनसे क्षमा मांगता है और कहता है कि उससे भूल हो गई उसे माफ कर दें। माता कहती हैं कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हो। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना।
संकष्टी के दिन कन्याएं वहां आती हैं और बालक उनसे व्रत की विधि पूछता और उसके बाद विधिवत व्रत करने से वो भगवान गणेश को प्रसन्न कर लेता है। भगवान गणेश उसे दर्शन देकर उससे इच्छा पूछते हैं तो वो कहता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वो बालक भगवान शिव के पास पहुंच जाता है। लेकिन वहां सिर्फ भगवान शिव होते हैं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से रुठ कर कैलाश छोड़कर चली जाती हैं। भगवान शिव उससे पूछते हैं कि वो यहां कैसे आया तो बालक बताता है कि भगवान गणेश के पूजन से उसे ये वरदान प्राप्त हुआ है। इसके बाद भगवान शिव भी माता पार्वती को मनाने के लिए ये व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन अचानक बदल जाता है और वो वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और संकट दूर होते हैं।