दीपावली दीपक पूजन:
दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है। हृदय में भरे हुए अज्ञान और संसार में फैले हए अंधकार का शमन करने वाला दीपक देवताओं की ज्योर्तिमय शक्ति का प्रतिनिधि है। इसे भगवान का तेजस्वी रूप मान कर पूजा जाना चाहिए। भावना करें कि सबके अंत:करण में सदज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो रहा है। बीच में एक बड़ा घृत दीपक और उसके चारों ओर ग्यारह, इक्कीस, अथवा इससे भी अधिक दीपक, अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करके एक परात में रख कर आगे लिखे मंत्र से ध्यान करें।
दीपावली व्रत कथा :
प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार था। उसकी एक लड़की थी। वह नित्य पीपल देवता की पूजा करती थी। एक दिन लक्ष्मी जी उस साहूकार की लड़की से बोली कि मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ ,इसीलिए तू मेरी सहेली बनना स्वीकार कर लें। लड़की बोली क्षमा कीजिये मैं अपने माता - पिता से पूछकर बताउंगी। इसके बाद वह अपने माता - पिता की आज्ञा प्राप्त कर श्री लक्ष्मी जी की सहेली बन गयी। श्री महालक्ष्मी उससे बड़ा प्रेम करती थी। एक दिन महालक्ष्मी जी उस लड़की को भोजन करने का निमंत्रण दिया। जब लड़की भोजन करने गयी तो लक्ष्मी जी उसे सोने चाँदी के बर्तनों में खाना खिलाया और सोने की चौकी पर उसे बैठाया और बहुमूल्य दुशाला उसे ओढ़ने को दिया।
इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि मैं भी कल तुम्हारे यहाँ भोजन करने आऊँगी। लड़की ने स्वीकार कर लिया और अपने माता - पिता से सब हाल कहकर सुनाया तो सुनकर उसके माता - पिता बहुत प्रसन्न हुए। परन्तु लड़की उदास होकर बैठ गयी। कारण पूछने पर उसे अपने माता - पिता को बताया कि लक्ष्मी जी का बैभव बहुत बड़ा है ,मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूँगी। उसके पिता ने कहा कि बेटी गोबर से पृथ्वी को लीपकर जैसा भी बन पाए उन्हें रुखा - सूखा श्रदा और प्रेम से खिला देना ,यह बात पिता कहने भी न पाया कि सहसा एक चील मंडराती हुई आई उसने उस हार को थाल में रखकर बहुत बढ़िया दुशाले से ढककर रख दिया। तब तक श्री गणेश और महालक्ष्मी जी वहाँ आ गए। लड़की ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा इस पर श्री महालक्ष्मी जी और गणेश जी ने बड़े प्रेम से भोजन किया। लक्ष्मी जी ने और गणेश जी पदार्पण करते ही साहूकार का घर सुख संपत्तियों से भर गया। हे महालक्ष्मी जी जिस प्रकार साहूकार का घर धन - संपत्ति से भर दिया उसी प्रकार सभी के घरों में धन - संपत्ति भरकर सभी को कृतार्थ कर दो।