बसंत पंचमी की कथा :- इस पृथ्वी के आरंभ काल से जुड़ी हुई है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु के कहने पर ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की थी. तभी ब्रह्मा ने मनुष्य और समस्त तत्वों जैसे-- हवा, पानी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु इत्यादि को बनाया था. लेकिन संपूर्ण रचना के बाद भी ब्रह्मा अपनी रचनाओं से संतुष्ट नहीं हुए.
उन्हें अपने रचयिता संसार में कुछ कमी का आभास हो रहा था. इस कमी को पूरा करने के लिए ब्रह्मा ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का. जल छिड़कने के बाद ही वहां पर एक स्त्री रुपी दिव्य शक्ति हाथ में वीणा वादक यंत्र और पुस्तक लिए प्रकट हुई. सृष्टि रचयिता ब्रह्मा ने इस देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया.
जैसे ही देवी ने वीणा बजाया वैसे ही मनुष्य को बोलने के लिए आवाज मिली, पानी के बहने पर कुलबुलाहट शुरू हो गई, हवा में सरसराहट उत्पन्न हो गई और पशु-पक्षी अपने स्वरों में चहकने लगे. तभी ब्रह्मा ने इस देवी को सरस्वती, शारदा और भागीरथी नाम से संबोधित किया. वह देवी आज के युग में सरस्वती नाम से पूजी जाती है. सरस्वती को बुद्धिमता की देवी भी माना जाता है.
इसीलिए हम माघ के महीने में शुक्ल पंचमी को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाते हैं और इसी दिन को हम ऋषि पंचमी के नाम से भी जानते हैं. ऋग्वेद में भी सरस्वती के बारे में वर्णन मिलता है. ऋग्वेद में जो उल्लेख मिलता है, उसके अनुसार मां सरस्वती बुद्धि प्रदाता है. उनकी सुख समृद्धि और वैभव अद्भुत निराली है. ऋग्वेद के अनुसार श्रीकृष्ण ने ऋषि पंचमी के दिन सरस्वती मां पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन सरस्वती मां की पूजा कलयुग में भी होगी.
वरदान के अनुसार तभी से सरस्वती मां की पूजा संपूर्ण भारत में 'Basant Panchami' के दिन होती आ रही है. इस दिन स्त्रियां पीले रंग की कपड़े पहनकर सरस्वती मां की आराधना करती है. बच्चे पतंग उड़ाते हैं. लेकिन शास्त्रों के अनुसार पतग का इस त्योहार के साथ कोई विशेष संबंध नहीं माना जाता. पतंग उड़ाने की रिवाज चीन से शुरू हुई और यह कोरिया जापान से होते हुए भारत तक आ पहुंची.