निर्जला एकादशी
जेठ सुदी एकादशी ( ग्यारस) को निर्जला एकादशी होती है। एकादशी के दिन सबको निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए। जल भी नहीं पीना चाहिए। यदि बिना खाये नहीं रहा जाये, तो फलाहार लेकर व्रत करें। एकादशी के दिन सब मटके में जल भरकर उसक ढक्कन से ढक दें और ढक्कन में चीनी, दक्षिणा, फल आदि रख दें। जिस ब्राह्यण को एकादशी के दिन शरबत दें। मेहंदी लगाकर, नथ पहनकर, ओढ़नी ओढ़कर सबको एकादशी के दिन बायना निकालना चाहिए। एक मिट्टी के मटके में जलभर कर ढक्कन में चीनी, रूपया रखें। बयाने के साथ आम रखकर और करवे पर रोली से सतिया बनाकर ढक्कर ने ढक दो, फिर हाथ फेरकर सासूजी के पैर छूकर दे दो।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा
एक समय की बात है, भीमसेन ने व्यासजी से कहा-भगवान! युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रोपदी सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं तथा मुझसे भी यह कार्य करने को कहते हैं। मैं कहता हूं कि भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं दान देकर तथा वासुदेव भगवान् की अर्चना करके उन्हें प्रसन्न कर लूंगा। बिना व्रत किये जिस तरह से हो सके, मुझे एकादशी व्रत का फल बताइये, मै बिना काया-क्लेश के ही फल चाहता हूँ इस पर वेदव्यास बोले - भीम सेन! यदि तुम्हें स्र्वग लोक का प्रिय है तथा नरक से सुरक्षित रहना चाहते हो, तो दोनों एकादशियों का व्रत रखना होगा। भीमसेन बोले- हे देव! एक समय के भोजन करने से तो मेरा काम न चल सकेगा। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि निरन्तर प्रज्वलित रहती है। पर्याप्त भोजन करने पर भी मेरी भूख शान्त नहीं होती है। हे ऋषिवर! आप कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बताइये। जिसके करने मात्र से मेरा कल्याण हो सके।
व्यासजी बोले- हे भद्र! ज्येष्ठ की एकादशी को निर्जल व्रत कीजिये। स्नान, आचमन में जल ग्रहण कर सकते हैं। अन्न बिल्कुल न ग्रहण कीजिये।अन्नाहार लेने से व्रत खण्डित हो जाता है। तुम भी जीवनपर्यन्त इस व्रत का पालन करो। इससे तुम्हारे पूर्वकृत एकादशियों के अन्न खाने का पाप समूल विनष्ट हो जायेगा। इस दिन ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए एंव गौ दान करनी चाहिएं।
व्यासजी की आज्ञा अनुसार भीमसेन ने बड़े साहस के साथ निर्जला का यह व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रातः होते- होते संज्ञाहीन हो गये ।तब पाण्डवों ने गंगाजल, तुलसी, चरणामृत प्रसाद देकर उनकी मूच्र्छा दूर की। तभी से भीमसेन पापमुक्त हो गये।