एक समय की बात है एक नगर में धर्मपाल नामक नगर सेठ था, वह अत्यधिक धनवान था। भगवान की कृपा से उसका व्यापार सम्पूर्ण नगर में फैला हुआ था। सभी सुख सुविधा होते हुए भी वह सुखी नहीं था, क्योकि उसकी कोई संतान नहीं थी। उसे हमेशा चिंता लगी रहती थी की उसके मरने पर कौन उसे अग्नि देगा और कौन उसके नाम को तथा व्यापार को आगे बढ़ाएगा। वह अपनी पत्नी के साथ सभी तीर्थ, सभी ज्योतिषों के तथा सभी वैद्यों के पास गया था, किन्तु किसी भी उपचार से उसे संतान की प्राप्ति नहीं हुई। उसकी पत्नी भी बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थी, और अपने पति को चिंतित देख वह भी दुखी थी।
एक दिन उसके द्वार पर एक सन्यासिन भिक्षा मांगने आई। वह दिखने में अत्यंत तेजस्वी थी, सेठ की पत्नी ने उसे भिक्षा दी। वह सन्यासिन उसके चेहरे को देखकर समझ गयी की वह दुखी है, उसने उसके दुःख का कारण पूछा। तो सेठानी ने बताया की उसकी कोई संतान नहीं है इसी कारण वह दुखी है। तब सन्यासिन ने उसे मंगला गौरी व्रत के माहत्म्य को बतलाया। और इस व्रत को करने की पूर्ण विधि बताकर निष्ठापूर्वक व्रत को करने को कहा। सेठानी को यह सुनकर अत्यंत ख़ुशी हुई और उसी समय से वह व्रत की तैयारियों में लग गयी। आने वाले मंगलवार को उसने विधिपूर्वक व्रत किया और फिर हर व्रत को पूर्ण निष्ठां से करती गयी। कुछ महीनों में ही वह गर्भवती हो गयी और फिर नौ माह बाद उसे एक सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ।
एक दिन सेठ ने बालक की कुंडली पंडित जी को दिखाई, किन्तु कुंडली देखते ही पंडित जी गंभीर स्वर में बोले कि यह बालक अल्पायु है। 16 वर्ष में इसकी मृत्यु हो जायगी। यह सुनकर सेठ परेशान हो उठा किन्तु इसे भगवान की लीला समझ सब कुछ उन पर ही छोड़ दिया। समय आने पर उन्होंने बालक की एक सुयोग्य कन्या से शादी करा दी। वह कन्या बचपन से ही मंगला गौरी का व्रत किया करती थी, इस प्रकार सेठ के पुत्र का मृत्युयोग कट गया। और कन्या के व्रत के प्रभाव से उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।