एक बार भोलेनाथ और माता गौरी नर्मदा नदी के तट पर बिहार कर रहे थे। तभी माँ पार्वती ने भगवान शंकर से चौपड खेलने की इच्छा जताई। भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये। परन्तु प्रश्न आया की इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?
तभी भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाया, उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी और कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम खेल के अंत में तय करना कि हम में से कौन विजयी हुआ।
इस के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया। खेल तीन बार खेला गया और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव की भक्ति के कारण उन्हें ही विजयी घोषित कर दिया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से क्षमा प्रार्थना की और कहा अज्ञानतावश ऐसा पाप हो गया। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आती हैं, उनके कहे अनुसार तुम गणेश का व्रत करो, ऐसा करने से तुम श्राप मुक्त हो जाओगे।
एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि जानने के बाद उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए। और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा कि, हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के पास कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और उनके दर्शन कर सकूँ।
श ने बालक को यह वरदान दिया और अन्तर्धान हो गए। बालक इसके बाद चलते हुए कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। महादेव उस बालक को देख चकित हो गए और उसके ठीक होने का उपाय पुछा, उसने व्रत के बारे में सब कुछ बता दिया। संयोग से उस दिन पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गईं थीं और कैलाश छोड़ कर चली गयीं थीं। देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वो स्वयं समाप्त हो गई।
पार्वती जी के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने 'गणेश व्रत' का इतिहास उनसे कह दिया।
यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर 'ब्रह्म-ऋषि' होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। इस प्रकार श्री गणेशजी चतुर्थी व्रत को मनोकामना व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से वो सबकी मनोकामना पूरी करते है। इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।