भारत भूमि संतों की महान भूमि रही है। इसमें ऐसे कई संतों, ऋषियों और गुरुओं का जन्म हुआ है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों को भक्ति तथा मोक्ष का मार्ग दिखाने में समर्पित किया है। ऐसे ही महान गुरुओं में एक नाम है श्री पुण्डरीक महाराज जी का। इनका जन्म 20 जुलाई 1988 को वृन्दावन में श्री श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी जी के यहां हुआ था।
जिस उम्र में बच्चे केवल खेल और खिलौनों में व्यस्त रहते हैं उस उम्र में महाराज जी ने अपने प्रवचनों की गंभीरता से दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। 1995 में, महज 7 वर्ष की उम्र में महाराज जी ने पहली बार भक्तों को भागवत गीता का ज्ञान दिया। इनकी शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से हुई है।
इन्होने 21 साल की उम्र में अपने वंश का प्रभार संभाला, भागवताचार्य और वेदांत प्रचारक श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी "माधव गौरेश्वर वैष्णव पीठ" के गुणोत्कृष्ट आचार्य हैं। वह अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर ही चल रहे हैं और श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश को विभिन्न वैष्णव शास्त्रों के व्याख्यान द्वारा दुनिया भर में प्रचारित कर रहे हैं, ताकि लोग जीवन के वास्तविक अर्थ को जानकर लाभ उठा सकें।
वह केवल कथा का प्रचार नहीं करते बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारते हैं। वह श्रेष्ठ "हरी लीला" के दिव्य वर्णन से श्रोतागणों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उन्होंने श्रीमद् भगवत गीता, महाभारत, श्रीमद् भगवतम, श्री रामायण और श्री चैतन्य चरितमित्र जैसे विभिन्न ग्रंथों पर अपने करिश्माई और ऊर्जावान प्रवचनों के साथ दुनिया भर में हजारों लोगों को उत्साहित किया है। उनकी अनूठी काव्य शैली ने श्रोताओं को आध्यात्मिक क्षेत्र में रूचि लेने के लिए उत्साहित किया है।
श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ने युवाओं को प्रबुद्ध करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। कृष्ण चेतना को बढ़ावा देने के लिए 'अंतर्राष्ट्रीय गोपाल क्लब' उनमें से एक है। उन्हें जालंधर में “राधा वृन्देश जु” मंदिर की कल्पना का श्रेय भी जाता है। श्री चैतन्य महाप्रभुजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के अपने प्रयास में, उन्होंने अमृतसर में मंदिर की स्थापना की, जिसमे कृष्ण, राम और चैतन्य महाप्रभु का विग्रह स्थापित है।
भारत भूमि संतों की महान भूमि रही है। इसमें ऐसे कई संतों, ऋषियों और गुरुओं का जन्म हुआ है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों को भक्ति तथा मोक्ष का मार्ग दिखाने में समर्पित किया है। ऐसे ही महान गुरुओं में एक नाम है श्री पुण्डरीक महाराज जी का। इनका जन्म 20 जुलाई 1988 को वृन्दावन में श्री श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी जी के यहां हुआ था।
जिस उम्र में बच्चे केवल खेल और खिलौनों में व्यस्त रहते हैं उस उम्र में महाराज जी ने अपने प्रवचनों की गंभीरता से दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। 1995 में, महज 7 वर्ष की उम्र में महाराज जी ने पहली बार भक्तों को भागवत गीता का ज्ञान दिया। इनकी शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से हुई है।
इन्होने 21 साल की उम्र में अपने वंश का प्रभार संभाला, भागवताचार्य और वेदांत प्रचारक श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी "माधव गौरेश्वर वैष्णव पीठ" के गुणोत्कृष्ट आचार्य हैं। वह अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर ही चल रहे हैं और श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश को विभिन्न वैष्णव शास्त्रों के व्याख्यान द्वारा दुनिया भर में प्रचारित कर रहे हैं, ताकि लोग जीवन के वास्तविक अर्थ को जानकर लाभ उठा सकें।
वह केवल कथा का प्रचार नहीं करते बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारते हैं। वह श्रेष्ठ "हरी लीला" के दिव्य वर्णन से श्रोतागणों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उन्होंने श्रीमद् भगवत गीता, महाभारत, श्रीमद् भगवतम, श्री रामायण और श्री चैतन्य चरितमित्र जैसे विभिन्न ग्रंथों पर अपने करिश्माई और ऊर्जावान प्रवचनों के साथ दुनिया भर में हजारों लोगों को उत्साहित किया है। उनकी अनूठी काव्य शैली ने श्रोताओं को आध्यात्मिक क्षेत्र में रूचि लेने के लिए उत्साहित किया है।
श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ने युवाओं को प्रबुद्ध करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। कृष्ण चेतना को बढ़ावा देने के लिए 'अंतर्राष्ट्रीय गोपाल क्लब' उनमें से एक है। उन्हें जालंधर में “राधा वृन्देश जु” मंदिर की कल्पना का श्रेय भी जाता है। श्री चैतन्य महाप्रभुजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के अपने प्रयास में, उन्होंने अमृतसर में मंदिर की स्थापना की, जिसमे कृष्ण, राम और चैतन्य महाप्रभु का विग्रह स्थापित है।