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यहां लाठियों से पिटते हैं पुरुष :लठमार होली ! (Men are beaten by sticks here: Lathmar Holi! )

भारतीय संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही बहुत महत्व रहा है। हमारे देश और हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर सभी त्योहारों में समाज के लिए मानवीय गुणों की स्थापना की कोशिशें की जाती हैं। लोगों में इन त्योहारों से प्रेम, सम्मान और सद्भावना का विकास होता है।​ होली भी भारतीय समाज का एक प्रमुख त्योहार है, जिसकी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं।

मथुरा में विशेष है होली :-

पूरे भारत में होली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन मथुरा में जिस तरह होली मनाई जाती है उसका कोई मुकाबला नहीं। किसी ने सच ही कहा है कि, जनाब अगर होली के असली रंगो को देखना है तो मथुरा आ जाइये। मथुरा, जिसे भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के नाम से भी लोग जानते हैं, यहां की होली इतनी प्रसिद्ध है कि लोग दूर विदेशों से भी खीचें चले आते हैं। 

रंगों का यह त्योहार पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी या धुलेंडी कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। 

क्यों है मथुरा की होली इतनी लोकप्रिय?

भले ही पूरे भारत में होली के दिन ही रंग से खेला जाये लेकिन मथुरा में होली एक हफ्ते पहले ही शुरू हो जाती है। कहा जाता है कि, श्री कृष्ण सांवले थे और वह राधा के गोरे रूप को लेकर उनसे चिढ़ते थे, इसलिए वो अक्सर राधा के ऊपर रंग फेंका करते थे। भगवान श्री कृष्ण राधा को अपने दोस्तों के साथ बरसाने सिर्फ रंग लगाने जाते थे, जिसके बाद गुस्से में राधा और उनकी सखियाँ सभी लड़को की डंडे से पिटाई करती थी। जिसके बाद इस होली को लठमार होली का नाम दे दिया गया। मथुरा और उसके आस पास के स्थानों में जानिए कैसे मनाते हैं होली

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बरसाना की लठमार होली :-

ब्रज के बरसाना गाँव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। बरसाना में खेली जाने वाली लठमार होली कृष्ण के कार्यों की पुनरावृत्ति जैसी ही है, जिस प्रकार कृष्ण जब बरसाना में गोपियों को रंग लगाने जाते थे तो सभी गोपियाँ मोटे मोटे लट्ठ लिए तैयार रहती थी सभी गोपो और कृष्णा की पिटाई करने के लिए। ब्रज की होली का एक अलग ही अंदाज़ है, इसमें एक अलग ही मस्ती भरी होती है क्योकि यह होली को राधा और कृष्ण के प्रेम के रूप में मनाया जाता है।​ जैसे ही लोग नाचते, मस्ती में झूमते हुए गाँव पहुंचते हैं, औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उनकी धुलाई करना शुरू कर देती हैं। इस हमले से पुरुष स्वयं को बचाते फिरते हैं। हालाँकि डरने वाली कोई बात नहीं है, क्योकि ये सब हंसी ठिठोली में ही होता है। किसी को चोट नहीं पहुँचती। वातावरण में हंसी और ख़ुशी का रंग भर जाता है। आस पास खड़े लोग बीच बीच में रंगो और फूलों की बरसात करते रहते हैं।​

नन्दगाँव की होली :-

यहाँ होली में नंदगाँव के पुरुष (कृष्ण का गाँव), और बरसाने की महिलाएं (राधा का गाँव) ही मुख्यतः भाग लेतीं हैं। नंदगाँव के मतवालों की टोलियां जब पिचकारी हाथों में लिए बरसाना पहुचतीं हैं, तो उन पर बरसाने की गोपियाँ यानी महिलाएं खूब डंडे बरसाती हैं। पुरुष इन लाठियों से बचकर महिलाओं को रंग लगाने का प्रयास करते हैं।  ​

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मथुरा :-

भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ और उनका लालन पालन वृन्दाबन में हुआ था। यहां होली के चालीस दिन पहले से ही होली की शुरुआत कर दी जाती है। मथुरा में बसंत पंचमी के दिन से ही होली शुरू हो जाती है। इस होली के साथ ही मथुरा के मंदिरों में रसिया गान भी शुरू हो जाता है । ढोल नगाड़े की थाप पर होली के रसियाओं के गीत का केंद्र कान्हा होते हैं।

वृन्दावन :-

वृन्दावन के श्री कृष्ण जन्मस्थान और बांके बिहारी मंदिर में होली का भव्य आयोजन होता है जिसे देखने पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं। यहां एकादशी के दूसरे दिन से ही कृष्ण और राधा से जुडे सभी मंदिरों में होली का आयोजन प्रारम्भ हो जाता है। एकादशी के दूसरे दिन लठमार और फूलों की होली खेली जाती है। फूलों की होली में ढेर सारे फूल एकत्रित कर एक दूसरे पर फेंके जाते है। साथ ही राधे- राधे की गूंज के बीच आसमान से होली पर बरसते पुष्पों का नजारा द्वापर युग का स्मरण करा देता है।

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