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क्यों लगाया जाता है लड्डू गोपाल को 56 भोग ? (Why '56 Bhog' is Offered to Lord Krishna?)

भगवान कृष्ण की पूजा लोग बहुत श्रद्धा भाव से करते हैं। सर्दियों में इन्हें कंबल और गर्म बिस्तर पर सुलाया जाता है। उष्मा प्रदान करने वाले भोजन का भोग लगाया जाता है। उनको लगाया जाने वाला विश्वप्रसिद्ध भोग यानी छप्पन भोग का भी अपना अलग महत्व है। बाल गोपाल को भोग में ५६ प्रकार के व्यंजन परोसे  जाते हैं और इसी को छप्पन भोग कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के राजस्थानी, गुजराती तथा उत्तर भारत के अनेकों व्यंजन शामिल होते हैं। क्यों कृष्ण जी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है, आइये जानते हैं इसकी कथा-​

गोवर्धन पर्वत से जुड़ी कथा :- 

बाल कृष्ण को उनकी माता यशोदा अत्यंत लाड करती थी, हर समय उनके भोजन का ख्याल रखती थी। वह उनको अष्ट प्रहार भोजन कराती थी अर्थात बालकृष्ण 8 बार भोजन करते थे। किन्तु जब कृष्ण जी ने इंद्र की पूजा बंद करवा कर गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रारम्भ करी तब इंद्र ने क्रोधित होकर ब्रिज में वर्षा से प्रलय कर दिया। किन्तु माधव ने अपनी छोटी ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सारा बृजमण्डल उसके नीचे सुरक्षित आ हो गया। गोपाल ने पुरे सात दिनों तक बिना भोजन और जल ग्रहण किये पर्वत उठाकर रखा था, सात दिनों के बाद जब वर्षा रुकी तब सारे बृजवासी सुरक्षित बाहर आ गए। सात दिन से भूखे अपने लाल को देख कर मैया यशोदा व्याकुल हो गयी और सभी गोपियाँ भी अपने लला को भोजन कराना चाहती थीं। इसलिए मैया यशोदा ने सभी गोपियों के संग सात दिनों के आठ प्रहारों के हिसाब से भोजन तैयार किया। अर्थात 7X8=56 व्यंजन बाल गोपाल के लिए बनाये गए जिन्हे खाकर कान्हा ने अपनी भूख तृप्त की।​

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56 सखियों संग तृप्ति :-

कुछ अन्य मतों के अनुसार, माना जाता है की श्री कृष्ण राधारानी और अन्य गोपियों के साथ गौलोक में रहते हैं, जहाँ वे नित रास रचाते हैं तथा एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। दिव्य कमल में तीन परतें हैं, जिनमे उनकी गोपियाँ अलग अलग संख्याओं में वास करतीं हैं।

पहली परत में 8, दूसरी परत में 16 तथा तीसरी परत में 32 पंखुड़ियां होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में मुरली मनोहर विराजते हैं इस तरह कुल 56 पंखुड़ियों में उतनी ही संख्या में गोपियाँ विराजती हैं। और 56 भोग से कृष्ण गोपियों सहित तृप्त होते हैं।

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गोपिकाओं ने भेंट किए 56 भोग :- 

श्रीमद्भागवत कथा के अनुसार, कुछ गपिकाओं ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए एक माह तक यमुना के तीर पर माँ कात्यायिनी की पूजा अर्चना की थी तथा स्वयं भोर स्नान किया था। माँ कात्यायिनी ने प्रसन्न होकर उन्हें उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया था। और श्री कृष्ण ने उन्हें विवाह की स्वीकृति दे दी। व्रत के उद्यापन तथा मनोकामना सिद्धि के उपलक्ष्य में उन्होंने 56 भोग की व्यवस्था की थी और श्री कृष्ण को अर्पित की थी।​

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