हिन्दू धर्म की अनेकों पौराणिक कथाओं में हमने कई महापुरुषों, ऋषियों, असुरों और श्रापों के बारे में पढ़ा है। ऐसी ही एक पौराणिक कथा में देवराज इंद्र को महर्षि गौतम द्वारा मिले एक भयानक श्राप का वर्णन भी है। इन्द्र के अधिकतर चित्रों में उनके शरीर पर असंख्य आंखें बनी हुई दिखाई देती है। वास्तव में वो आंखें गौतम ऋषि के श्राप का ही परिणाम है।
क्यों हमारे पुराणों में इन्द्रियों को नियंत्रित करना आवश्यक बताया गया है, इसके पीछे कारण है इन्द्रियों के अधीन होकर कार्य करने वाले पाप की ओर अग्रसर होते हैं। केवल इन्द्रियों को तृप्त करने की चाहत में मनुष्य सही और गलत में भेद नहीं जान पाता जो उसे उसके विनाश की ओर ले जाता है। इंद्र को मिला श्राप भी एक ऐसी ही इंद्री को तृप्ति करने का फल है।
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इंद्र हुए अहिल्या पर मोहित :-
देवराज इंद्र का स्वाभाव बहुत विलासी था। स्वर्गलोक में सदैव अप्सराओं से घिरे रहने के बाद भी उनको तृप्ति नहीं मिलती थी। एक दिन वे धरती का आकाशमार्ग से विचरण कर रहे थे, तभी उनकी दृष्टि गौतम ऋषि के आश्रम में पड़ी। वह वहां का शांत और अद्भुत वातावरण देखने लगे, इसी मध्य कुटिया से निकल कर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या वहां पर आई और उनपे नज़र पड़ते ही इंद्र उन पर मुग्ध हो गए। देवी अहिल्या अत्यंत रूपवान थी, उनकी सुंदरता के आगे अप्सराएं भी नहीं टिक पातीं। इंद्र उन्हें देखते ही उन पर आसक्त हो गए और उनकी काम भावना जाग्रत हो गयी। स्वर्ग लौटने के बाद भी उनके मस्तिष्क में देवी अहिल्या के ही विचार घूम रहे थे। वह किसी भी प्रकार एक बार उन्हें पाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने एक षड्यंत्र रच डाला। गौतम ऋषि प्रत्येक प्रातःकाल में नदी पर स्नान करने जाते थे, और इंद्र इसी मौके का फायदा उठाना चाहता था।
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इंद्र का छल :-
इंद्र आधी रात्रि में ही जाकर कुटिया के बाहर भोर की प्रतीक्षा करने लगे। किन्तु भोर तक की प्रतीक्षा वे कर नहीं पाए, उन पर ऐसी कामेच्छा जाग्रत हुई की उन्होंने अपनी माया से वहां पर भोर का वातावरण निर्मित कर दिया। ऐसा वातावरण देख मुर्गा बांग देने लगा और ऋषि गौतम भोर का संकेत पाकर उठ गए। उठते ही वे नदी पर स्नान करने चले गए और उनके जाते ही इंद्र कुटिया में आ गए और आते ही अहिल्या से प्रणय निवेदन करने लगे।
उधर ऋषि गौतम नदी में प्रवेश करते ही देखते हैं की वहां का वातावरण अभी भी रात्रि का ही है। नदी भी सोइ हुई है और सूर्य की लालिमा भी आकाश में नहीं फैली। उन्हें किसी अनहोनी का आभास हो गया। वह तुरंत नदी से निकले और अपनी कुटिया की तरफ दौड़े। जैसे ही वे कुटिया पहुंचे उन्होंने देखा की कोई पर पुरुष उनके भेष में उनकी पत्नी के साथ रति क्रियाये कर रहा था।
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गौतम ऋषि का श्राप :-
अहिल्या ने जैसे ही अपने पति को द्वार पर खड़ा देखा तो वे समझ गयी की उनके साथ छल किया गया है। उन्हें ऐसी अवस्था में देख ऋषि क्रोध से भर गए, अहिल्या भी दुःख और भय के सागर में डूब गयी। वह ऋषि के पैरों में गिर कर अनजाने में हुए अपराध की क्षमा मांगने लगी। परन्तु ऋषि क्रोधाग्नि में जल रहे थे, उन्होंने अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया।
इंद्र अपने मूल स्वरूप में आ गए, उन्हें देख क्रोध में ऋषि ने कहा, 'मुर्ख तूने अपनी कामेच्छा में मेरी स्त्री का स्त्रीत्व भंग किया। तूने देवों में श्रेष्ठ होकर इतने बड़े पाप को अंजाम दिया। एक योनि पाने की इच्छा इतनी बढ़ गयी तुझमे की अपनी माता समान स्त्री का तूने भोग किया। यदि स्त्री योनि पाने की इतनी ही लालसा है तो मई तुझे श्राप देता हूँ की अभी तेरे सारे शरीर में एक हज़ार स्त्री योनि प्रकट हो जाएँ।' उसी समय श्राप के प्रभाव से इंद्र के शरीर पर एक हज़ार योनियां उभर आयीं।
अपने सम्पूर्ण शरीर में योनियां देख इंद्र आत्मग्लानि से भर उठे। पश्चाताप करते हुए हाथ जोड़कर वह गौतम ऋषि से इस श्राप से मुक्ति की कामना करने लगे। ऋषि का क्रोध जब शांत हुआ तब उन्होंने थोड़ी दया दिखाते हुए उन योनियों को एक हज़ार आँखों में बदल जाने का श्राप दिया। इंद्र के किये ऐसे ही पापों के कारण उनकी पूजा न के बराबर होती है।
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