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क्यों होती है बाबा महाकाल की भस्म से आरती? (What is the Purpose of Bhasm Aarti at Mahakal)

इस पृथ्वी पर अग्नि एक ऐसी चीज़ मानी गयी है जो खुद तो शुद्ध है ही, साथ ही इसमें समाने वाली हर चीज़ को ये शुद्ध कर देती है। माता सीता की भी जब अग्नि परीक्षा हुई थी तो इसी भाव से हुई थी कि यदि वे अशुद्ध हैं तो जल कर भस्म हो जायेंगी अन्यथा शुद्धता से बाहर निकल आएँगी। अग्नि हर अशुद्धि का सेवन कर उसे शुद्ध कर देती है, और इसी शुद्धता का रूप है उस अग्नि में जल कर बची हुई भस्म।  जी हाँ, भस्म को अत्यंत शुद्ध माना गया है, पुराने समय में बर्तन भी भस्म के प्रयोग से धोये जाते थे। और आज भी जब उस राख अथवा भस्म का तिलक किया जाता है तो वो मनुष्य की आत्मा और मस्तिष्क को शुद्ध कर देता है।

महाकाल की भस्मार्ती :-

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर की भस्मार्ती विश्व भर में प्रसिद्ध है, जो की भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। सभी की आस्था का केंद्र यह मंदिर अपनी भस्म आरती के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। क्यों चढ़ाई जाती है भस्म बाबा महाकाल को, आइये जानते हैं-

शिव जी सदैव ही अपने तन में भस्म रमाये रहते हैं, उन्हें ये भस्म बहुत प्रिय है। उनके भस्म रमाने के कई कारण बताये जाते हैं जैसे कुछ लोग कहते है कि भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती की भस्म अपने तन में रमाई है। माता सती अपने पिता के यज्ञ में शिवजी के अपमान से दुखी होकर अग्नि में कूद गयीं थीं, कहा जाता है माता सती को यज्ञ कुंड से उठाकर उन्होंने उस हवन की भस्म को अपने तन में रमा लिया।

शिव हैं विनाशक :-

शिव सृष्टि के विध्वंसक हैं। ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण करते हैं, श्री हरी विष्णु जगत पालनहार हैं, किन्तु जब सृष्टि में पाप निरंकुश हो जाता है धर्म का हर जगह ह्रास होता है तब शिव अपने तीसरे नेत्र से सृष्टि का विनाश कर देते हैं। शिवजी का अपने तन पर भस्म रमाना दर्शाता है की तन नश्वर है, जिस शरीर की सुरक्षा के लिए हम नित नविन साधन जुटाते हैं और उसकी रक्षा के लिए पाप करने से भी पीछे नहीं हटते वह शरीर एक दिन अग्नि में जल कर भस्म ही होना है। अंत में हम भी सिवाय भस्म के कुछ नहीं।  ​

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ये भस्म श्रृंगार है बाबा महाकाल का :-

चूँकि भस्म शिवजी को अत्यंत प्रिय है इसलिए उज्जैन में भस्म द्वारा ही महाकाल की आराधना की जाती है। भस्म के द्वारा इंसान शिव के निकट चला जाता है, उनसे जुड़ा रहता है। पूजा में उपस्थित मुख्य पुजारी जी बताते हैं की यह भस्म आरती शिव को उनकी योग निद्रा से जगाने का एक तरीका है। इस आरती का मुख्य नियम है की इसे एक ही वस्त्र में किया जाट है, अतः महिलाओं को इस आरती को देखने की अनुमति नहीं है। सभी पुजारी और वहां उपस्थित पुरुष एक धोती में होते हैं तथा यदि वहां महिलाएं उपस्थित हैं तो वह घूँघट में रहतीं हैं। शिव के ऊपर चढ़ाई गयी भस्म को लगाने से शरीर रोग मुक्त हो जाता है।​

नागा साधु लगाते हैं भस्म :-

कुम्भ के शाही स्नान में नागा साधुओ की अलग ही धूम दिखती है। सभी नागा साधु पुरे तन पर भस्म रमाये, हाथों में त्रिशूल, डमरू, तलवार, नरकंकाल आदि लिए भयंकर रूप में नज़र आते हैं।​ उनके तन पर कपडे भी नहीं होते, किन्तु भस्म ही उनकी सारी ज़रूरतें पूरी कर देतीं हैं। यह भस्म उनके शरीर को कीटाणुओं से सुरक्षित रखती है तथा रोम कूपों को ढँक कर उनसे ठण्ड और गर्मी को दूर रखती है। छोटे छोटे कीट, मच्छर आदि भी इस भस्म से दूर ही रहते हैं।​

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श्मशान की भस्म से आरती :-

कुछ वर्षों पूर्व भगवान महाकाल की भस्म आरती श्मशान की मानव भस्म से की जाती थी किन्तु समय  के साथ यह प्रथा समाप्त कर दी गयी, और अब इस आरती  में गाय के गोबर के कंडे की भस्म से आरती की जाती है। तथा पुराणों में वर्णित शुद्ध भस्म बनाने की विधि से अर्थात पीपल, शमी, बड़ और बेर की लकड़ियों की भस्म से भी महाकाल की आरती की जाती है।​

 

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