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जानें नवरात्रि में कलश स्थापना की उचित विधि !

हिन्दुओं का पावन पर्व नवरात्री शुरू होने वाला है, जिसमे माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की नौ दिनों तक पूजा होती है। किन्तु क्या आप जानते हैं किसी भी पूजा में कलश स्थापना का बहुत महत्व है, क्योकि कलश स्थापना विशेष मंत्रो तथा विधियों से की जाती है। जिसके प्रभाव से कलश में सभी नक्षत्रों, ग्रहों और तीर्थों का वास हो जाता है। कलश स्थापना से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है तथा हमें उस पूजा का शुभ लाभ मिलता है। नवरात्री में भी प्रतिपदा के दिन ही देवताओं की पूजा से पहले कलश की स्थापना की जाती है जिससे देवी माँ प्रसन्न होकर भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है। ​

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नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त :-

घट स्थापना तिथि व मुहूर्त - 06:09 से 10:19 (06 अप्रैल 2019) (शनिवार)
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – दोपहर 02:20 (05 अप्रैल 2019)
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 03:23 (06 अप्रैल 2019)​

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री :-

मिट्टी का पात्र और जौ के दाने, साफ़ व छनि हुई मिट्टी(जिसमे पत्थर नहीं हो) ,शुद्ध जल से भरा हुआ (मिट्टी, सोना, चांदी, तांबा या पीतल का) कलश, मोली, अशोक या आम के पंच पल्ल्व (5 पत्ते),  साबुत चावल, एक पानी वाला नारियल, पूजा वाली सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, लाल कपड़ा या चुनरी, मिठाई, फूलो की माला

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कलश स्थापना की विधि

पूजा स्थल को स्वच्छ करें :-

कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से साफ़ किया जाना चाहिए। सफाई करने के बाद गंगा जल छिड़क कर इसे शुद्ध करें। फिर इसे मिट्टी अथवा गोबर से लीप लें। घर के मंदिर में अथवा घर की पूर्व दिशा में लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करना चाहिए। गणेश जी की भी मूर्ति को महालक्ष्मी की मूर्ति के बाएं तरफ विराजित करें।​

कलश स्थापित करें :-

कलश स्थापना के लिए सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें, इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाकर फिर एक जौ की परत बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की और उसके बाद एक परत जौ की बिछाएं तत्पश्चात उसको जल से अच्छी तरह से गीला कर उस पर कलश विधिपूर्वक स्थापित करें (लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग बिलकुल भी न करे)। कलश के ऊपर रोली से अथवा स्वस्तिक बनाएं। इसके उपरांत कलश में थोड़ा गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मौली, चंदन, अक्षत, हल्दी, सिक्का, पुष्पादि डालें। अब ‘ॐ वरुणाय नमः’ मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम के पांच पल्लव डालें। यदि आम के पत्ते न मिले तो बरगद, गूलर पीपल, अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रख सकते हैं, क्योकि ये भी पवित्र माने जाते हैं और इनमे भी भगवान का वास होता है।​

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सावधानी पूर्वक रखें नारियल की दिशा :-

जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्चा नारियल कलश पर रखें। कलश के कंठ पर मोली अवश्य ही बाँध दें। नारियल का मुँह (जिस ओर से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है) सदैव भक्त की तरफ ही होना चाहिए। इसके पश्चात् सभी देवी देवताओं का कलश में आवाहन करें। “हे माँ दुर्गा और सभी पूज्य देवी देवता आप सभी नवरात्र के इन नौ दिनों के लिए हमारे यहाँ पर पधारें।” इसके पश्चात् दीप, धूप, अगरबत्ती जलाकर माँ एवं कलश का पूजन करें। फिर माँ को फूल, माला, लौंग इलायची, नैवेद्य,पंचमेवा, इत्र, शहद, फल मिठाई आदि भी अवश्य अर्पित करें।​

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नवरात्र के दौरान यदि हो सके तो कलश के सामने तिल के तेल का अखंड दीप भी जलाएं। दीपक की स्थापना करते समय ध्यान रहे की दीपक के नीचे “चावल” अथवा “सप्तधान्य”रखकर उसके ऊपर दीपक को स्थापित करें। दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है तथा दीपक के नीचे “सप्तधान्य” रखने से समस्त प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है। ​

नवमी के दिन उठायें कलश :-

नवरात्रे की अष्टमी या नवमी के दिन दस साल से कम उम्र की नौ कन्याओं और एक लड़के को भोजन करा कर उन्हें दक्षिणा देकर उन कंजकों से उगे हुए जौ के बीच स्थापित कलश को अपने स्थान से विस्थापित करा देना चाहिए, उसके बाद कुछ जौं को जड़ सहित उखाड़कर घर की तिजोरी या धन स्थान पर रखना चाहिए इससे घर में स्थाई सुख समृद्धि का वास होता है ।

कलश के पानी को पूरे घर में छिडक देना चाहिए, इससे घर से अशुभ शक्तियां समाप्त होती है। नारियल को तोड़कर माता दुर्गा के प्रसाद स्वरुप घर के सदस्यों के बीच में बाँट देना चाहिए। मिट्टी का बर्तन जिसमें जौ उगाई गयी थी उसे बची हुई जौ के साथ संध्या से पहले किसी नदी में विसर्जित कर देना चाहिए।

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