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आखिर कर्ज में क्यों डूबे हैं दुनिया के सबसे अमीर भगवान

तिरुपति बालाजी न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्द है, कई लोगों ने इसके चमत्कारों को खुद अनुभूत किया है। किन्तु क्या आप जानते हैं इस मंदिर का एक ऐसा राज जो भगवान वेंकटेश्वर, तिरुपति बालाजी और माँ लक्ष्मी से जुड़ा हुआ है। बालाजी दुनिया के दूसरे सबसे अमीर भगवान हैं क्योकि तिरुपति बालाजी मंदिर की कुल संपत्ति 1 लाख 30 हज़ार करोड़ की है, फिर भी बालाजी क़र्ज़ में डूबे हुए हैं। ऐसा क्या हुआ की जिनकी शरण में सम्पूर्ण विश्व है वह स्वयं क़र्ज़ में चले गए, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान वेंकटेश्वर भगवान विष्णु का ही रूप हैं, उनकी पत्नी पद्मावती देवी लक्ष्मी का रूप हैं। देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से नाराज़ होकर पृथ्वी पर आ गयीं थी और उन्हें मनाने विष्णु जी भी पीछे पीछे पृथ्वी पर आ गए। और यहीं पर वो कर्ज़दार हो गए कुबेर जी के, आइये जानते है पूर्ण कथा विस्तार से-

हुई त्रिदेवों की परीक्षा :-

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बात उस काल की है जब ऋषि मुनि पृथ्वी से स्वर्ग और किसी भी देवता के लोक में आराम से आ जा सकते थे। ऐसे ही काल में एक बार सभी ऋषि मुनियों ने सृष्टि के कल्याण हेतु एक यज्ञ शुरू करने की सोची। किन्तु यज्ञ में पुरोहित त्रिदेवों में से किसे बनाया जाए यह प्रश्न था, तब भृगु ऋषि ने तीनों देवों की परीक्षा लेने की सोची। सबसे पहले ऋषि ब्रह्मा जी के पास पहुचें, वह वीणा की धुन में लीन थे इसलिए उन्होंने भृगु ऋषि की तरफ ध्यान नहीं दिया। इस से ऋषि क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप दे दिया की कोई भी मंदिर में उनकी पूजा नहीं करेगा। इसके बाद ऋषि कैलाश पहुचें, वहां उन्हें शिव गणों ने रोक लिया क्योकि शिव पार्वती के साथ एकांत में थे। ऋषि वहां भी शिव से क्रोधित हो गए, और उन्हें श्राप दिया की विश्व में केवल उनके लिंग की पूजा होगी।

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अंत में पहले से ही क्रोधित भृगु ऋषि बैकुंठ धाम पहुचें, जहाँ श्री हरी विष्णु अपनी शेष शय्या पर सोये हुए थे और माता लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी। भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को आवाज़ दी, किन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने विष्णु जी के सीने में एक ज़ोरदार लात मार दी, उनकी लात पड़ते ही श्री विष्णु उठे और उन्होंने ऋषि के पैर पकड़ते हुए पूछा कि कहीं आपको पीड़ा तो नहीं हुई। उनका वातसल्य देखकर ऋषि प्रसन्न हो गए, किन्तु उनके इस व्यव्हार से माता लक्ष्मी क्रोधित हो गयीं। उन्होंने विष्णु जी से पूछा की उन्होंने ऋषि को दंड क्यों नहीं दिया, विष्णु जी ने ऋषियों का स्थान अपने से भी उच्च बताया और कहा की वे उन्हें दंड नहीं दे सकते।

अपमान से हुई माता लक्ष्मी क्रोधित :-

माता लक्ष्मी ने कहा आपके ह्रदय में मेरा भी वास है, और उन्होंने आपके ह्रदय पर ही लात मारी। इससे आपके साथ साथ मेरा भी अपमान हुआ, यह कहकर माता लक्ष्मी वैकुण्ठ लोक से अंतर्धान हो गयीं और पृथ्वी पर एक राजा के घर उसकी कन्या के रूप में जन्म ले लिया।

राजा की वह कन्या पद्मावती नाम से विख्यात हुई, पद्मावती चूँकि देवी लक्ष्मी ही थीं, इसलिए वह अत्यंत सुन्दर थीं और उनके आने से राजा का पूर्ण राज्य अत्यंत समृद्ध और सुखी हो गया था। होता भी क्यों नहीं, स्वयं लक्ष्मी उस राज्य में रह रहीं थीं। माँ लक्ष्मी को खोजते हुए भगवान विष्णु जी ने श्रीनिवास नाम से पृथ्वी में जन्म लिया।

भगवान विष्णु का देवी लक्ष्मी से पुनर्मिलन:-

श्रीनिवास ने माता लक्ष्मी को ढूंढने की बहुत चेष्टा की किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ और उन्होंने वन में ही एक आश्रम में शरण ले ली। एक दिन वह एक जंगली हाथी का पीछा करते हुए किसी उपवन में पहुंच गए, वहां बहुत सी स्त्रियां उन्हें घेर कर खड़ी हो गयीं। उन्होंने कहा, ये उपवन केवल राजकुमारी के लिए है, किसी पुरुष का यहां आना निषेध है। तुम कौन हो और यहां क्यों आये हो? श्रीनिवास कुछ बोलते उस से पूर्व ही उनकी नज़र राजकुमारी पद्मावती पर पड़ी, और उन्होंने उन्हें माता लक्ष्मी के रूप में जान लिया।

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वहां से निकलने के बाद वह आश्रम वापस आये और गुरु माता को सारी बात बताई। और गुरु माता से कहा यदि आप मुझे अपना पुत्र मानती हैं तो मेरा विवाह राजकुमारी से करवा दीजिये। उनकी बात मान कर गुरुमाँ राजा के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर गयीं। राजा ने गुरु बृहस्पति से उस विवाह के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा पद्मावती का जन्म ही इस विवाह के लिए हुआ है, इसलिए तुम निश्चिन्त होकर यह विवाह कर दो। उनकी बात सुनने के बाद राजा प्रसन्न हुआ और उसने विवाह के लिए हामी भर दी।

धन की पड़ी आवश्यकता :-

उधर गुरु माँ विवाह के लिए चिंतित हो उठी, क्योकि पद्मावती एक राजकुमारी थीं और श्रीनिवास के पास कुछ भी नहीं था। राजा की राजकुमारी के साथ एक भव्य विवाह के लिए भगवान ने कुबेर जी से धन उधार लेने की सोची। तब उन्होंने ब्रह्मा और विष्णु को साक्षी बनाकर धन के देवता कुबेर से बहुत सारा धन उधार लिया। कुबेर ने पूछा आप इतना धन किस प्रकार लौटायेंगे तब उन्होंने उत्तर दिया की कलयुग के समाप्त होने तक मैं सारा क़र्ज़ ब्याज सहित चुका दूंगा। और फिर उन्होंने राजकुमारी पद्मावती के साथ राजा के समान ही वैभवपूर्ण विवाह किया।

कहा जाता है यह क़र्ज़ बालाजी अपने भक्तों के दिए हुए चढ़ावे से ही चुकाते हैं, इसीलिए भक्त उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा धन, आभूषण आदि चढ़ाते हैं। किन्तु केवल भक्त ही भगवान् को नहीं देते, बल्कि जो भक्त जितना भगवान को दान देते हैं उस से दोगुना माता लक्ष्मी उनको लौटा देती है। माता लक्ष्मी उन भक्तों से अत्यंत प्रसन्न होतीं हैं जो भगवान में श्रद्धा रख कर उनको दान देते हैं। ऐसे अनेकों भक्त हैं जिन्होंने तिरुपति में दान देकर उस से अधिक धन सम्पत्ति प्राप्त की है।

 

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