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अपरा एकादशी : मिलेगी प्रेत योनि से मुक्ति इस व्रत के पुण्य से !

धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी का व्रत रखने से समस्त पापों का नाश हो जाता है, भगवान व्रती को प्रसन्न होकर अनंत पुण्य देते हैं, ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत रखकर विष्णु जी की पूजा की जाती है, इसे अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है, अपरा एकादशी का फल अपार पुण्य देता है, इस व्रत को करने से लोगों को पापों से मुक्ति मिलती है और लोग भवसागर से तर जाते हैं।

एकादशी मुहूर्तः-

अपरा एकादशी, 30 मई 2019, बृहस्पतिवार
तिथि, 11 ज्येष्ठ, कृष्ण पक्ष, एकादशी, विक्रम संवत 
एकादशी तिथि प्रारम्भ: बुधवार 29 मई 2019, 15ः21 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: बृहस्पतिवार 30 मई 2019, 16ः38 बजे तक

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अपरा एकादशी का महत्वः-

एकादशी व्रत का संबंध केवल पाप मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति से नहीं है, एकादशी व्रत भौतिक सुख और धन देने वाली भी मानी जाती है, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन व्रत रखकर विष्णु जी की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है, इसी वजह से इस एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है।

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अपरा एकादशी का व्रत करने से उन पापों से भी मुक्ति मिल जाती है जिनसे व्यक्ति प्रेत योनि में जा सकता है, पद्मपुराण में बताया गया है कि इस एकादशी के व्रत से इंसान को वर्तमान जीवन में चली आ रही आर्थिक परेशानियों से राहत मिलती है, अगले जन्म में व्यक्ति को धनवान कुल में जन्म मिलता है और उसे अपार धन की प्राप्ति होती है, शास्त्रों में बताया गया है कि परनिंदा, झूठ, ठगी, छल ऐसे पाप हैं जिनके कारण व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है, एकादशी के व्रत से इन पापों के प्रभाव में कमी आती है और व्यक्ति नर्क की यातना भोगने से बच जाता है।

व्रत की विधिः-

धार्मिक पुराणों में एकादशी के व्रत के विषय में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए, एकादशी के दिन सुबह उठकर मन से सभी विकारों को निकाल दें और स्नान करके विष्णु जी की पूजा करें, पूजा में तुलसी पत्ता, श्रीखण्ड, चंदन, गंगाजल एंव मौसमी फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए, व्रत रखने वाले को पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल-कपट से बचना चाहिए।

किसी कारण अगर कोई व्रत नहीं रख पाता तो उन्हें एकादशी के दिन भोजन में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए, और झूठ व परनिंदा से बचना चाहिए, जो भी व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करता है उस पर विष्णु जी की विशेष कृपा होती है।

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व्रत कथाः-

महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था, राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था, एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया, उस राजा की अकाल मृत्यु हुई थी जिस कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी, उस मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी, एक दिन एक ऋषि उस रास्ते से गुजरे, उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।

ऋषि मुनि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया, राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया, एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।

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