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पाञ्चजन्य शंख: जानिए कैसे हुई कृष्ण के इस शंख की उत्पत्ति?

हिन्दू धर्म में आज भी पूजा में अंत में शंख बजाने का विधान है। क्या है शंख का महत्व, कैसे हुई शंख की उत्पत्ति? ऐसे ही कुछ प्रश्नों का उत्तर जानेंगे इस लेख में -
शंख की ध्वनि को विजय, शांति, उल्लास, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। शंख के नाद से घर की नकारात्मक ऊर्जा ख़तम हो जाती है और सकारात्मकता आती है। कहते हैं शंख नाद करने वाले व्यक्ति को सांस की तकलीफ भी नहीं रहती। ऐसे ही कई फायदे है जो शंख और शंख नाद से जुड़े हैं। शंख के कई प्रकार होते हैं जैसे वामावृत्ति, मध्यावृत्ति तथा दक्षिणावृत्ति शंख। 
कई युद्धों में शंख नाद के द्वारा ही उसके शुरू होने और अंत होने की घोषणा की जाती थी। वेद व्यास जी द्वारा रचित महाभारत में भी शंख का वर्णन मिलता है। सभी योद्धाओं के पास उनके अपने शंख होते थे, जिनके नाम भी होते थे (पौराणिक काल में योद्धाओं के अस्त्र, शस्त्र और घोड़े आदि उनके विशिष्ट नामों से जाने जाते थे)। ​

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श्री कृष्ण के पास था पांचजन्य शंख, अर्जुन के पास देवदत्त इसी प्रकार युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय, भीष्म का पौंड्रिक तथा सहदेव के शंख का नाम मणिपुष्पक था। सभी उपर्युक्त शंखो की शक्ति अलग अलग थी। 

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पांचजन्य शंख की उत्पत्ति :-
श्री कृष्ण का यह शंख बड़ा ही विशिष्ट शंख है, यह दुर्लभ है। कहते हैं इस शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। समुद्र मंथन में उत्पन्न रत्नों में छठा रत्न यही शंख था। और उसके पश्चात् भगवान विष्णु के पास माता लक्ष्मी तथा यह शंख सुशोभित हुए।  किन्तु महाभारत में भी इस शंख की उपस्थिति का वर्णन है। ​

किस प्रकार प्राप्त हुआ कृष्ण को पांचजन्य :-
पौराणिक कथा के अनुसार, कृष्ण और बलराम शिक्षा ग्रहण करने के लिए महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहे थे। जहाँ उन्होंने वेद, पुराण तथा उपनिषद आदि का ज्ञान प्राप्त किया। और जब शिक्षा पूर्ण हुई तब उन्होंने गुरुदेव से दक्षिणा मांगने के लिए प्रार्थना की। महर्षि सांदीपनि को ज्ञात था कि कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं, इसलिए उन्होंने अपने पुत्र पुनर्दत्त, जिसकी समुद्र में डूब जाने के कारण मृत्यु हो चुकी थी, को लौटाने की दक्षिणा मांगी। गुरु की आज्ञा लेकर श्री कृष्ण बलराम सहित समुद्र तट पर पहुंचे और समुद्र देवता से गुरु पुत्र को लौटने की प्रार्थना की। किन्तु समुद्र देव से कोई उत्तर नहीं मिला। तब कृष्ण ने क्रोधित होकर सम्पूर्ण समुद्र को सुखाने की चेतावनी दी, और इस भय से सागर देवता प्रकट हुए। उन्होंने कृष्ण के आगे हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया, और बताया कि महर्षि का पुत्र सागर में नहीं है। किन्तु साथ ही उन्होंने आशंका उतपन्न की कि सागर तल में एक असुर, जिसका नाम पंचजन था, रहता है। पंचजन शंखासुर नाम से प्रसिद्द था और वह मनुष्य को अपना भोजन बनाकर खा लेता था। सागर देव ने कहा हो सकता है की उसी ने गुरु पुत्र को अपना निवाला बना लिया हो। यह सुन कृष्ण और बलराम सागर के तल में उतर गए, और शंखासुर की खोज की। उन्होंने उस से गुरुपुत्र के विषय में पूछा, किन्तु उसने बताने से मना कर दिया और कृष्ण को भी मारने के लिए आगे बढ़ा। किन्तु श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया। उसके मरने पर उन्होंने उसका पेट चीर दिया, किन्तु उन्हें वहां कोई बालक नहीं मिला। वहा पर उन्हें एक शंख मिला जिसे कृष्ण ने ले लिया और यमलोक की तरफ प्रस्थान किया। यमलोक पहुंच कर यमदूतों द्वारा उन्हें रोका गया तो कृष्ण ने शंखनाद किया। वह शंखनाद इतना भयानक था की सम्पूर्ण यमलोक कम्पित हो गया। तब यमराज उनके सामने उपस्थित हुए और प्रभु की आज्ञा मान कर उन्होंने गुरुपुत्र को वापस कर दिया। ​

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गुरु को दी दक्षिणा :-
गुरुपुत्र पुनर्दत्त तथा उस शंख को लेकर श्री कृष्ण गुरु सांदीपनि के आश्रम पहुंचे और उन्हें भेंट दी। अपने पुत्र को पा कर गुरु अत्यंत प्रसन्न हुए, उन्होंने उस शंख को देखकर कहा ये पवित्र पांचजन्य शंख है। और उसे श्री कृष्ण को ही भेंट कर दिया। इस प्रकार श्री कृष्ण को उनका शंख 'पांचजन्य' प्राप्त हुआ। ​

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क्यों है पांचजन्य विशेष :-
आखिर क्यों इस शंख को इतना विशिष्ट बताया गया है? कहते हैं की इस शंख के नाद करते ही दुश्मनो की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि हज़ारों सिंह गर्जन से कहीं अधिक थी। इसकी आकृति पांच उँगलियों की भांति उभरी हुई होती है। इस से मिलते जुलते शंख आज भी लोग मिलने का दावा करते हैं किन्तु वे सब इस शंख की तरह चमत्कारिक व शक्तिशाली नहीं होते। 

 

(स्रोत - पाञ्चजन्य शंख का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे​)

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