पुत्रदा एकादशी मुहूर्त :-
30 जुलाई 2020 (बृहस्पतिवार)
एकादशी तिथि प्रारम्भ = 01:16 बजे (30 जुलाई 2020)
एकादशी तिथि समाप्त = 11:39 बजे (30 जुलाई 2020)
पारण समय = 05:42 से 08:24
कृष्ण जी युधिठिर जी से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी के महत्व की चर्चा करते हुए कहते हैं, की इस एकादशी के करने से मनुष्य को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी का महत्व :-
श्रावण मास में प्रत्येक दिन अत्यंत शुभ होता है, और इसी प्रकार इस मास में आने वाली एकादशी भी अत्यंत पावन है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस व्रत का नियमपूर्वक पालन करने से व्रती को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तथा वाजपेयी यज्ञ का फल भी मिलता है। अर्थात व्रती के पाप कटते हैं और स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त होता है।
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इस माह में मनुष्य का मन चंचल हो जाता है तथा कामयुक्त भी, जो की पाप है। उस दृष्टि से भी इस माह में व्रत आदि के द्वारा मन को मर्यादा में रखने में सहायता मिलती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि :-
पुत्रदा एकादशी का व्रत करने के लिए व्रती को दशमी के दिन से ही नियमों का पालन करना शुरू कर देना चाहिए। दशमी के दिन एक समय ही भोजन ग्रहण करें, जो कि सात्विक ही होना चाहिए अर्थात उसमे प्याज, लहसुन और मांस आदि नहीं होना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाएँ और नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान आदि करें। स्नान के लिए किसी पवित्र नदी का प्रयोग उत्तम है किन्तु यदि आस पास नदी न हो तो आप घर पर ही स्नान कर लें और यदि संभव हो तो नहाने के जल में गंगाजल मिला लें। हरी का ध्यान और जप करते हुए स्नान करें। स्नान के पश्चात् पूजा की तयारी करें।
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किस प्रकार करें व्रत में पूजा? :-
पूजा के लिए सर्वप्रथम पुष्प, आम्र पत्र, बिल्व पत्र आदि तोड़ लें। उसके बाद जहाँ पूजा करनी है उस स्थान की सफाई अच्छे से करें। फिर भूमि पर एक तख़्त अथवा चौक लगाएं, जिस पर शुद्ध लाल कपडा बिछाएं। अब इसके ऊपर भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी तथा गणेश जी की मूर्ति अथवा चित्र लगाएं। अब एक तिल के तेल का दीपक जलाएं और एक घी का दीपक तथा साथ में धूप भी जलाएं। इसके पश्चात् एक कलश की स्थापना करें, जिसपर पांच आम्रपत्र रखें तथा जल भरकर एक सिक्का भी डालें। कलश के चारों ओर एक रक्षा धागा तीन बार घुमा कर बाँध लें और फिर उसमे एक नारियल रख दें। कलश को तथा भगवानों को कुमकुम तथा अक्षत से तिलक करें। और फिर प्रभु की आरती उतारें, इस दिन की व्रत कथा पड़ें और चाहें तो विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें।
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