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रक्षाबंधन: कैसे शुरू हुआ रेशम की डोरी बांधने का पावन पर्व!

रक्षा बंधन  

15 अगस्त 2019 (गुरुवार)

रक्षा बंधन अनुष्ठान का मुहूर्त = प्रातः काल 05:55 से सांय काल 05:59 तक

अपराह्न के समय रक्षा बंधन मुहूर्त = दोपहर 01:44 से सांय काल 04:20 तक

रक्षा बंधन का महत्व :-

राखी का त्यौहार हिन्दू और जैन धर्मों के लोग मुख्यतः मनाते हैं, वैसे आजकल अन्य धर्म के लोग भी इस त्यौहार को मनाने लगे हैं क्योकि यह भाई बहिनों का त्यौहार है जिसमे वे परस्पर एक दूसरे की रक्षा की कामना करते हैं। यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। भले ही यह उत्सव केवल भाई बहिनों तक सिमित रह गया हो किन्तु एक समय में यह किसी के भी बीच मनाया जा सकता था। अर्थात कोई शिष्य अपने गुरु को, कोई पुत्री अपने पिता को और कोई पत्नी अपने पति को ये रक्षा सूत्र बाँध सकती थी। यह त्यौहार परस्पर रक्षा की कामना और उनकी लम्बी उम्र के लिए रक्षासूत्र बांधने का है, इसलिए कोई भी मनुष्य जो किसी के लिए मंगलकामना करते हैं ये रक्षा सूत्र उसे बाँध सकते हैं।

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पौराणिक कथाये :-

रक्षाबंधन कब से शुरू हुआ इसकी कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है किन्तु रक्षा बंधन मानाने से जुडी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमे से दो प्रमुख है, पहली कथा जुडी है भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी से। एक बार दानवीर असुर राज बलि ने अपने 100 यज्ञ पूरे किये और दो लोकों के स्वामी बन गए। यज्ञ पूर्ण होने के लिए अंत में उन्हें ब्राह्मणों को दान देना था, ऐसे में भगवान विष्णु वामन अवतार धरकर वहां आ गए और उन्होंने बलि से तीन पग भूमि मांगी। बलि ने भी उनको तीन पग भूमि नाप लेने को कहा, इसके बाद प्रभु ने अपना रूप विराट किया और दो पग में सम्पूर्ण पृथ्वी और स्वर्ग नाप लिए अब बलि के पास देने के लिए कुछ न बचा तो उसने अपना मस्तक आगे बढ़ा दिया और कहा प्रभु आप अपना तीसरा पग मेरे शीश पर रख लीजिये। ऐसा करते ही वह पाताल लोक में पहुंच गया, विष्णु जी उसकी दानवीरता से अति प्रसन्न हुए और उसे अमरता का वरदान दे दिया और उस से उसकी इच्छा पूछी। उसने कहा प्रभु मैं चाहता हूँ आप मेरे साथ पाताल लोक में ही वास करें। प्रभु को उसके साथ पाताल लोक जाना पड़ा और इससे देवी लक्ष्मी परेशान​ हो गयी। एक दिन वह पाताल लोक गयीं और बलि को रक्षा सूत्र बाँध कर भाई बना लिया, बलि ने उनसे पुछा कि उन्हें क्या उपहार चाहिए तो माता लक्ष्मी ने उनके पति को वचन मुक्त करने के लिए कहा। और इस प्रकार उनकी राखी का मान रखते हुए उन्होंने विष्णु जी को वचन मुक्त कर दिया।

एक अन्य मान्य कथा के अनुसार, एक बार देवलोक में देवताओं और असुरों के बीच महासंग्राम हो गया। जिसमे देवता परास्त हो रहे थे, तब देवराज इंद्र की पत्नी इन्द्राणी गुरु बृहस्पति के पास गयीं और उनसे देवताओं की जीत के लिए उपाय पुछा। गुरु बृहस्पति ने उन्हें एक धागा अभिमंत्रित करके दिया और कहा इसे इंद्र की कलाई में बांधने से उनकी रक्षा होगी। इन्द्राणी ने वह रक्षा सूत्र इंद्रदेव की भुजा पर बाँध दिया, जिसके प्रभाव से वे अत्यंत तेजस्वी हो गए और वह युद्ध भी जीत गए।

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महाभारत में भी है वर्णन  :-

रक्षासूत्र बांधने का वर्णन महाभारत में भी मिलता है, हम सभी जानते हैं की कृष्ण द्रौपदी को अपनी सखी मानते थे। एक दिन शिशुपाल ने एक यज्ञ के दौरान कृष्ण और द्रौपदी का अपमान कर दिया, जिससे कृष्ण ने क्रोधित हो अपने चक्र से उसका गला काट दिया। चूँकि शिशुपाल उनकी बुआ का ही पुत्र था इसलिए कृष्ण को उसकी मृत्यु का दुःख भी था, और इस दुःख में जब चक्र वापस उनके पास आया तो उनकी उंगली कट गयी। द्रौपदी ने उनकी ऊँगली से रक्त बहता हुआ देखा तो उन्होंने जल्दी से उस पर अपनी साड़ी का एक सिरा फाड़ कर उनके हाथ पर बाँध दिया। कृष्ण ने तभी उनको वचन दिया की जीवन में जब कभी भी द्रौपदी को उनकी ज़रुरत होगी तब वे उनकी सहायता के लिए आ जायँगे। जब द्युत सभा में द्रौपदी का अपमान हो रहा था कृष्ण जी ने अपने वचन के अनुसार उनका चीर बढ़ा दिया और उनके सम्मान की रक्षा की।

 

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