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कजरी तीज: क्यों है कजरी तीज विशेष? जानिए कजरी व्रत के लाभ!

अभी कुछ समय पहले हमने हरियाली तीज का आनंद लिया था, और अब आने वाली है कजरी तीज। हर तीज त्यौहार का अपना ही अलग महत्व है और अलग अलग जगह पर लोग इसे अपनी तरह से उत्साह के साथ मनाते हैं। हमारे समाज में 4 प्रकार की तीज मुख्यतः मनाई जाती हैं-

अखा तीज, हरियाली तीज, कजली अथवा कजरी तीज तथा हरतालिका तीज

कजरी तीज की तिथि :-

हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में कजरी तीज आती है। सामान्यतः यह रक्षाबंधन के तीन दिन बाद तथा जन्माष्टमी के पांच दिन पहले पड़ती है। इस वर्ष कजरी तीज 18 अगस्त 2019 को मनाई जायगी। 

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कजरी तीज का महत्व :-

तीज का त्यौहार विवाहित स्त्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कहा जाता है, पति पत्नी के संबंधों को बेहतर और मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत अत्यंत फलदायी होता है। यह व्रत भी पत्नी अपने सुहाग की दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य के लिए रखती है। तथा कुंवारी कन्यायें यह व्रत अच्छा वर पाने के लिए करतीं हैं।

क्या है कजरी तीज की पौराणिक कथा :-

एक पौराणिक कथा के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था, जो राजा दादूरै के क्षेत्र में पड़ता था। इस वन में राजा अपनी रानी के साथ विहार करने आया करते थे, और यह वन उनके प्रेम का गवाह था। लोग इस वन के नाम पर कजरी गीत गाया करते थे, धीरे धीरे यह गीत दूर-दूर तक फैलने लगा। कुछ समय पश्चात् राजा की मृत्यु हो गयी, और रानी उसकी चिता में सती हो गयी। उन दोनों के अमर प्रेम के कारण वहां के लोग कजरी के गाने पति-पत्नी के प्रेम के प्रतीक के रूप में गाने लगे।

इसके अलावा माता पार्वती और शिव जी की कथा भी तीज मनाने का मुख्य कारण है। जिसके अनुसार माता पार्वती ने शिव जी को प्राप्त करने हेतु 108 वर्ष तक कड़ी तपस्या की थी, और शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने प्रसन्न होकर पार्वती जी को यह वरदान भी दिया की इस दिन जो भी स्त्री व्रत रखेगीऔर इस कथा को सुनेगी और सुनाएगी, उसे सौभाग्वती होने का आशीर्वाद प्राप्त होगा।  

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कजली तीज मनाने का तरीका :–

कजरी तीज के दिन घर में झूला डाला जाता है, और सभी स्त्रियां इसमें झूलती हैं। इस दिन स्त्रियां एकत्रित होकर पूरा दिन कजरी तीज के गीत गातीं हैं और नाचती हैं।

इस दिन गेहूं, चना, चावल आदि के सत्तू में घी मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं।

यह व्रत चंद्रोदय के बाद उनकी पूजा करके तोड़ा जाता है, और बने हुए पकवान खाये जाते हैं। 

आते की सात रोटियां बनाकर, गुड़ और चने के साथ गाय को खिलाई जाती है और इसके बाद ही व्रत का पारण कर भोजन ग्रहण किया जाता है।

 

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