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जन्माष्टमी: जानिए किस प्रकार करें श्री कृष्ण का पूजन!

"यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम!!"

यह कथन है भगवान श्री कृष्ण का, जो कहते हैं जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब वे धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।

इसी अधर्म को मिटाने के लिए उन्होंने अवतार लिया था श्री कृष्ण का, उनके इसी अवतार के जन्म के उत्सव को कहते हैं ‘कृष्ण जन्माष्टमी’। कान्हा, श्री हरी विष्णु के सभी सोलह अवतारों में सबसे अधिक प्रसिद्द और सबसे अधिक पूजे जाने वाले अवतार हैं। कृष्णा का अवतार पूर्ण अवतार माना जाता है, जो की सोलह कलाओं से युक्त है। मोहन का प्रेम, सादगी, मुस्कान, निति, ज्ञान आदि उनको अन्य अवतारों से भिन्न बनाते हैं।

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इसलिए उनका जन्मोत्सव भी अत्यंत विशेष होता है, इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं तथा रात्रि जागरण कर कृष्ण भजन कीर्तन करते हैं। किन्तु इस दिन व्रत करने के लिए कुछ सावधानियां रखना आवश्यक है, यह व्रत पूर्ण नियम के साथ ही किया जाना चाहिए। तो आइये जानते हैं यह व्रत किस प्रकार किया जाये-

1.) जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व ही व्यक्ति को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

2.) उपवास वाले दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व ही उठकर स्नान आदि कर लेना चाहिए।

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3.) स्नान के बाद भगवान् कृष्ण का ध्यान करें तथा व्रत का संकल्प लें।

4.) भगवान के प्रसाद में इस दिन मुख्यतः उनका प्रिय माखन मिश्री ही बनाया जाता है, तथा इसी का भोग लगता है। इसके अलावा मीठी पंजीरी भी इस दिन बनाई जाती है, जो की धनिया, अजवाइन, नारियल आदि के मिश्रण से बनाई जाती है।

5.) यह व्रत कृष्ण जी के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इसलिए इस दिन कृष्ण के बाल रूप की पूजा विशेष होती है। अतः पूजन ग्रह में बाल कृष्ण की स्थापना करें। 

6.) बाल कृष्ण को पंचामृत स्नान करा कर शुद्ध वस्त्र पहनाएं, तथा उनका पूर्ण श्रृंगार करें। इसके पश्चात उन्हें पालने में बिठायें और झूला झुलाएं।

7.)  भगवान कृष्ण का जल, पुष्प, धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करें और कृष्ण जन्म कथा का पाठ करें।

8.) चूँकि कान्हा का जन्म रात्रि के समय हुआ था, इसलिए इस दिन रात्रि जागरण का अत्यंत महत्व है। इस दिन रात्रि जागरण कर के कान्हा के भजन तथा कीर्तन करने चाहिए।

 

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