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पूर्णिमा श्राद्ध: आखिर क्यों देवताओं से पहले प्रसन्न करना चाहिए पितरों को?

हिंदू धर्म में अनेकों त्यौहार और संस्कार किये जाते हैं, हमारी परंपरा ने बड़ों को सम्मान देना और आपस में प्रेम करना ही सिखाया है। हिन्दू धर्म में एक बालक के जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक संस्कार किये जाते हैं, किन्तु मृत्यु के बाद भी श्राद्ध ऐसे संस्कार हैं जो उनकी शांति के लिए किये जाने आवश्यक हैं। श्राद्ध भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और आश्विन मास की अमावस्या को पूर्ण होते हैं। इस प्रकार पूर्वजों की तृप्ति के लिए यह सोलह दिन निश्चित किये गए हैं। श्राद्ध का अर्थ है पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, संतान कभी भी अपने माता पिता का ऋण नहीं चुका सकता किन्तु श्राद्ध ही वह मार्ग है जिसके द्वारा हम अपने पितरों को संतुष्ट करते हैं। कहा जाता है कि जब तक पितरों का तर्पण नहीं दिया जाता, तब तक उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और वे इसी मृत्युलोक में भटकते रहते हैं।

मान्यता है कि जो लोग अपने पितरों का तर्पण नहीं कराते उन्हें पितृदोष झेलना पड़ सकता है। और यदि किसी को पहले ही पितृ दोष लग चुका है तो वह भी इससे श्राद्ध द्वारा मुक्ति पा सकता है।

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क्यों है पितृ पक्ष का महत्व :-

मनुष्य देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान दक्षिणा, तीर्थ भ्रमण, ब्राह्मण भोजन आदि जैसे पुण्य काम करता रहता है, फिर भी देवता प्रसन्न नहीं होते, इसका कारण क्या हो सकता है? इसका कारण या तो श्रद्धा में कमी है या फिर पितरों की अप्रसन्नता है। जी हाँ! अपने पितरों को संतुष्ट रखना अत्यंत आवश्यक है, क्योकि उनके प्रसन्न हुए बिना भगवान प्रसन्न नहीं होते। ज्योतिषी भी कहते हैं कि यदि मनुष्य को कठिन परिश्रम के बाद भी सफलता नहीं मिल रही हो तो उसका कारण पितृ दोष हो सकता है। किसी भी बड़ी पूजा में यजमान को सर्वप्रथम अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए उसके बाद देवताओं की, ऐसा हमारे ग्रंथों में लिखा है।

कौन करता है श्राद्ध? :-

शास्त्रों के अनुसार, हर कोई श्राद्ध नहीं कर सकता, इसके लिए कुछ नियम हैं जिन्हे जानना आवश्यक है-

* पितरों और पूर्वजों का श्राद्ध करने का सर्वप्रथम अधिकार उसके ज्येष्ठ पुत्र का होता है। यदि बड़ा पुत्र श्राद्ध न कर पाए तब ऐसी स्थिति में छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है।

* यदि सभी पुत्र अलग अलग परिवार में रहते हैं तब सभी पुत्रों को अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए।

* यदि किसी का कोई पुत्र न हो तब उसकी विधवा स्त्री उसका श्राद्ध करवा सकती है।

* पति अपनी दिवंगत पत्नी का श्राद्ध करवा सकता है।

* पौत्र अपने दादा दादी और नाना नानी का श्राद्ध भी कर सकता है।

* यदि पौत्र भी न हो, पड़पौत्र और उनकी भी अनुपस्थिति में भाई-भतीजे अथवा उनके पुत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।

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पितृ पक्ष में निषेध कार्य :-

पितृ पक्ष के सोलह दिन कुछ कार्य हैं जो की निषेध किये गए हैं, इन कार्यों के करने से पूर्वजों को कष्ट की प्राप्ति होती है, और उन्हें कष्ट हुआ तो वे आपके कार्यों में बढ़ा उत्पन्न करेंगे। इसलिए श्राद्ध पक्ष में  इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

* इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

* मांस-मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

* श्राद्धों के समय दाढ़ी, बाल तथा नाख़ून आदि नहीं काटने चाहिए।

* पितृ पक्ष के दौरान चना, मसूर, सरसों का साग, जीरा, मूली, लौकी, बैगन, खीरा, काला नमक आदि नहीं खाना चाहिए।

* ब्राह्मणो को लोहे के आसान में बैठाकर भोजन न कराएं, और न केले के पत्ते पर भोजन कराएं।

* श्राद्ध पक्ष में मांगलिक कार्य जैसे सगाई, शादी और गृह प्रवेश आदि नहीं करना चाहिए।

* इन दिनों बासी खाने से भी दूर रहना चाहिए।

 

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