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इंदिरा एकादशी:जानिए कैसे मिलती है इस व्रत से पितरों को मुक्ति?

इंदिरा एकादशी पूजा मूहुर्त :-

व्रत तिथि - 5 अक्तूबर 2018 (शुक्रवार)

एकादशी तिथि आरंभ - 21:49 बजे (4 अक्तूबर 2018)

एकादशी तिथि समाप्त - 19:17 बजे (5 अक्तूबर 2018)

पारण का समय - 06:20 से 08:39 बजे (6 अक्तूबर 2018)

एकादशी व्रत हिन्दुओं के लिए श्रेष्ठ व्रत है, जो वर्ष में 24 बार अर्थात प्रत्येक माह में 2 बार आते हैं। और मलमास या अधिकमास में इनकी संख्या बढ़ कर 26 हो जाती है। इंदिरा एकादशी भी अत्यंत महत्वपूर्ण एकादशी है क्योकि यह पितृपक्ष में आती है, इसलिए इसे श्राद्ध एकादशी भी कहते हैं।

इंदिरा एकादशी का महत्व :-

इंदिरा एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, इस दिन पितरों को श्राद्ध भी अर्पण किया जाता है। मान्यता है की इस दिन एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के पितरों को मुक्ति मिल जाती है। सभी एकादशियाँ व्यक्ति को जगत के बंधनों से मुक्त करतीं है, उन्हें मोक्ष प्रदान करतीं हैं तथा उनकी विपत्तियां हरतीं हैं, किन्तु केवल यह एकादशी ऐसी एकादशी है जिसके द्वारा हमारे पितृ मोक्ष को प्राप्त होते हैं तथा हम पितरों के ऋण से। यदि पूर्वजों से जाने अनजाने कोई पाप हुआ हो तो इस व्रत का पुण्य उन्हें अर्पण किया जा सकता है।

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इंदिरा एकादशी व्रत विधि :-

इस व्रत में अपने खान पान पर विशेष ध्यान दें, क्योकि यह पक्ष पितरों का पक्ष है इसलिए इसमें किसी भी दिन प्याज लहसुन आदि भी भोजन में शामिल नहीं करना चाहिए। दशमी के दिन स्नान कर एक समय भोजन ग्रहण करें तथा इस दिन भूमि पर ही विश्राम करें। एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण से श्राद्ध क्रिया करवाएं और इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान् विष्णु की विधिवत पूजा करें। इस दिन ब्राह्मण को सात्विक भोजन अवश्य करवाएं। प्रत्येक एकादशी पर दान पुण्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है इसलिए इस दिन गरीबों को दान अवश्य दें। प्रातःकाल की पूजा के बाद भी दिनभर व्रती को भगवान का ही ध्यान करना चाहिए तथा किसी भी तरह का क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि नहीं करना चाहिए।  इसके बाद संध्या पूजन करके फलाहार ग्रहण करना चाहिए।

व्रत कथा:-          

एक राज्य में इन्द्रसेन नामक राजा था, उसके राज्य में हर प्रकार से सुख था। वह अत्यंत धर्मी था और कोई न कोई कर्मकांड करता ही रहता था। उसके राज्य में प्रजा भी अनेकों धर्म कर्म करती थी, एक दिन राज्य में नारद जी पधारे। राजा ने उनका उचित आदर सत्कार किया, जिस से नारद जी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा से पूछा राज्य में सब कुशल मंगल है? इस पर राजा ने कहा, "हाँ मुनिवर! आपकी कृपा से सब कुशल है।" तब नारद जी ने हैरानी से कहा, फिर आपके पिता यमलोक में इतने कष्ट में क्यों हैं?" यह सुनकर राजा व्यथित हो गया, उसने नारद जी से प्रार्थना की कि वे ही उनको संतुष्ट करने का कोई उपाय बताएं।

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नारद जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि राजा के पिता से एक बार एकादशी का व्रत खंडित हो गया था, इसलिए  वे मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए। उन्होंने राजा को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा, जिसके फलस्वरूप पितरों को मुक्ति मिलती है।  राजा ने इस व्रत के बारे में सुना और विधिपूर्वक पितृपक्ष की एकादशी को व्रत किया। इस व्रत के पुण्य से राजा के पिता को यमलोक से मुक्ति मिल गयी और वे सदा के लिए बैकुंठ चले गए।

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