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देवउठनी एकादशी: क्यों होते हैं इस शुभ बेला के बाद मंगल कार्य आरम्भ?

देवउठनी एकादशी मुहूर्त :-

19 नवंबर 2018 (सोमवार)

पारण समय = 06:48 से 08:58 (20 नवंबर 2018)

एकादशी तिथि प्रारम्भ = 01:34 (18 नवंबर 2018)

एकादशी तिथि समाप्त = 02:30 (19 नवंबर 2018)

तिथि: 26, कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी

देवउठनी एकादशी :-

देवउठनी एकादशी के चार माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और फिर इस समय अर्थात पूरे चार माह बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे अपनी योगनिद्रा से उठते हैं। इसलिए यह एकादशी अत्यंत शुभ मानी जाती है और इस के बाद वो सभी मंगल कार्य भी शुरू हो जाते हैं जो देवशयनी एकादशी के बाद बंद थे। यह एकादशी भी बाकि एकादशियों की भांति पापमुक्त करने वाली है। इसलिए भक्त एकादशी का व्रत करके अपने सभी पापों से मुक्त होते चले जाते हैं और बैकुंठ में अपना स्थान सुनिश्चित करते हैं। इस एकादशी से मिलने वाला पुण्य राजसूय यज्ञ से मिलने वाले पुण्य से भी अधिक बताया जाता है।

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इस दिन से चार माह पूर्व जब विष्णु भगवान क्षीरसागर में सो जाते हैं तब शादी, मुंडन, नामकरण, गृहप्रवेश आदि जैसे शुभ कार्य नहीं किये जाते और ये सभी मंगल कार्य देवउठनी एकादशी के साथ ही शुरू हो जाते हैं। 

क्या हैं देवउठनी एकादशी व्रत के नियम? :-

देवउठनी एकादशी का व्रत अत्यंत पावन होता है, क्योकि यह समय श्री हरी विष्णु के जागरण का होता है अतः सभी नकारात्मक शक्तियां प्रभावहीन हो जाती हैं और मनुष्य ऐसे सकारात्मक वातावरण में व्रत रख कर निर्मल हो जाता है। आइये जानते हैं कि किस प्रकार व्रत रखकर हम भगवान विष्णु को प्रसन्न कर सकते हैं-

- एकादशी का व्रत सामान्यतः निर्जला ही रखा जाता है, किन्तु यदि निर्जला नहीं रख पाते तो केवल जलीय तत्वों पर उपवास रखना चाहिए।

- एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित होता है, इसलिए चाहे आपका व्रत हो या न हो चावल को इस दिन न खाएं।

- वृद्ध, बच्चे तथा रोगी मनुष्य इस व्रत को केवल एक ही बेला तक रखें और अन्य समर्थ व्रती द्वादशी के दिन ही व्रत खोलें।

- एकादशी के व्रत के नियमों का पालन दशमी के दिन से ही प्रारम्भ कर देना चाहिए, अर्थात दशमी के दिन से ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और अन्य गरिष्ठ भोजनों का त्याग करना चाहिए।

- इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का उपरांत दिन भर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" का जाप करना चाहिए।

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भगवान को जगाने के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए -

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव। 

कैसे किया जाता है देवउठनी एकादशी का व्रत? :-

एकादशी की पूजा के लिए गन्ने का अथवा केले के पेड़ का मंडप बनाया जाता है, जिसके बीच में एक चौक की स्थापना की जाती है। चौक पर शुद्ध लाल, सफेद अथवा पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की जाती है। श्री हरी को फल, नारियल, मिठाई तथा गन्ना आदि चढ़ाया जाता है और घी का दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु के चरण स्पर्श कर के उन्हें जगाया जाता है तथा व्रत कथा भी सुनाई जाती है। इस दिन के बाद से ही सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं, इसलिए इस दिन दान पुण्य से कार्य आरम्भ करने चाहिए। 

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