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नरक चतुर्दशी: इस प्रकार मिलती है नरक की यातनाओं से मुक्ति!

नरक चतुर्दशी:-

नरक चतुर्दशी मुहूर्त = 14 नवम्बर 2020 (शनिवार)

अभ्यंग स्नान मुहूर्त = 05:23 से 06:43 (1 घंटा 20 मिनट )

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ = 05:59 (13 नवम्बर 2020)

चतुर्दशी तिथि समाप्त = 02:17 (14 नवम्बर 2020)

तिथि : 14, कार्तिक, कृष्ण पक्ष,  चतुर्दशी, विक्रम सम्वत

नरक चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी अथवा नरक चौदस या नर्का पूजा के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। यह दिवाली से एक दिन पहले ही पड़ता है, इसलिए कहा जाता है की दिवाली एक दिन का पर्व नहीं बल्कि त्योहारों का समूह है। जिसमे सर्वप्रथम दिन गोवत्स द्वादशी, उसके पश्चात् धनतेरस और फिर दिवाली। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा मनाई जाती है जिसके बाद भाई दूज का त्यौहार आता है। दिवाली की ही भांति मनाये जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहते हैं। 

एक मान्यता के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को प्रातःकाल तेल लगाकर चिचड़ी की पत्तियां मिलाया हुआ जल लेकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को नरक नहीं जाना पड़ता अर्थात नरक के दुखों से मनुष्य की मुक्ति हो जाती है। इस दिन दीप दान का भी अत्यंत महत्व है

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नरक चतुर्दशी की पूजन विधि :-

इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए, और फिर नित्यकर्म से निपट कर स्नान करना चाहिए। इस दिन स्नान करने के लिए तिल का तेल अथवा चिचड़ी का तेल शरीर पर लगाएं और तत्पश्चात पानी से स्नान कर लें। स्नान के पश्चात् सूर्यदेव को शुद्ध जल अर्पित करें और फिर अपने पूजा कक्ष को स्वच्छ करें। इस दिन भगवान कृष्ण की उपासना का विशेष महत्व है, कहा जाता है इस दिन कान्हा ने नरकासुर का वध कर के 16000 स्त्रियों का कल्याण किया था। श्री कृष्ण की प्रतिमा को चन्दन का लेप लगाकर स्नान कराएं और तत्पश्चात विधि विधान से धूप, दीप, पुष्प आदि से उनका पूजन करें। रात्रि के समय घर की देहली के पास और सम्पूर्ण घर में दीप जलाएं और फिर यमराज का भी पूजन करें। यमराज की पूजा से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता तथा नरक की यातनाओं से भी मुक्ति मिलती है, इस दिन हनुमान जी के पूजन का भी विशेष महत्व है।

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नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा :-

एक समय एक प्रतापी राजा हुआ करते थे, उनका नाम था रंतिदेव। रंतिदेव अत्यंत ही शांत स्वाभाव के राजा थे, उन्होंने कभी भूल से भी किसी का कोई अहित नहीं किया था। उनके राज्य में दान-पुण्य आदि के काम चलते ही रहते थे। राजा रंतिदेव के राज्य में प्रत्येक व्यक्ति सुखी और संतुष्ट था। कुछ समय पश्चात् राजा की मृत्यु का समय निकट आ गया और उन्हें लेने भयानक यमदूत उनके पास आये। यमदूतों को देखकर वे समझ गए की उन्हें नरक जाना पड़ेगा, किन्तु उन्होंने कभी कोई पाप नहीं किया तो उन्हें क्यों नरक जाना पड़ रहा है। यह सब सोचकर राजा यमदूतों से पूछने लगा की जब कोई पाप किया ही नहीं तब आप लोग मुझे लेने क्यों आये हैं। राजा की बात सुन कर यमदूतों ने कहा की महाराज आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौटा था, इसीलिए आपको पाप लगा है और इसीलिए आपको नरक भी जाना पड़ेगा। तब रंतिदेव ने यमदूतों के आगे हाथ जोड़े की उन्हें उनकी गलती सुधारने का एक मौका दें और उन्हें कुछ समय दें। यमदूतों ने राजा को उसके पुण्यों के कारण एक वर्ष का समय दे दिया। इसके बाद राजा अपने गुरु के पास पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई, गुरु ने उन्हें सलाह दी कि वे एक हज़ार ब्राह्मणों को भोज कराएं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। रंतिदेव ने एक हज़ार ब्राह्मणों के लिए भोज का आयोजन किया और सबकी सेवा की, सभी ब्राह्मणों ने प्रसन्न होकर राजा को आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई। वह दिन था कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस का जिस कारण इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी भी कहा जाने लगा।

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