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गोपाष्टमी: इस दिन गौ-माता के पूजन से होगी सौभाग्य में वृद्धि!

गोपाष्टमी तिथि व मुहूर्त :-
गोपाष्टमी - 04 नवम्बर 2019 (सोमवार)
गोपाष्टमी तिथि प्रारंभ - 02:56 (04 नवम्बर 2019)
गोपाष्टमी तिथि समाप्त - 04:57 (05 नवम्बर 2019)
गोपाष्टमी भारतीय हिन्दू संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। इस पर्व को पूर्ण निष्ठां एवं विधि विधान से ब्रज में किया जाता है। गौ माता की रक्षा हेतु स्वयं भगवान विष्णु पृथ्वी पर कृष्ण रूप में अवतरित हुए थे। गायों से अपार प्रेम और उनकी रक्षा के लिए तत्परता के कारण ही श्री कृष्ण को गोविन्द भी कहा जाता है। 

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कृष्ण अवतार का एक विशेष उद्देश्य गायों की महत्ता विश्व को बताना भी था, सनातन धर्म में गाय को माँ का स्थान प्राप्त है। क्योकि गाय भी माता की तरह मनुष्य से निश्छल प्रेम करती है और प्रत्येक स्थिति में उसे सुख प्रदान करती है।  

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कैसे करें पूजन?:-
गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। इस दिन गौ पूजा का आयोजन किया जाता है। गौ पूजन में गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है, इस पूजा में घर के सभी सदस्यों को भाग लेना चाहिए। गोपाष्टमी के पावन पर्व पर लोग उसके आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व को समझ कर उसके संवर्धन और रक्षण का संकल्प करते हैं। 
गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा के लिए विशेष नियम बनाये गए हैं, इस दिन प्रातःकाल स्वयं स्नान कर के गौ माता को स्नान कराना चाहिए। इसके बाद उन्हें वस्त्रादि से सुसज्जित करके तिलक लगाना चाहिए तथा गंध पुष्प आदि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात् गाय को चराने के लिए ले जाना चाहिए, गाय को भोजन कराने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।   

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गोपाष्टमी की पौराणिक कथा :-
गोपाष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नन्हे कृष्ण अपनी माता यशोदा से कहते हैं की वे अब बड़े हो गए हैं और इसलिए वे बछड़ों के साथ साथ गायों को भी चराने वन में ले जायँगे। माता उनसे कहती हैं की वे नन्द बाबा से अनुमति ले लें। 
बालक कृष्ण दौड़े दौड़े नन्द बाबा के पास जाते हैं और उनसे गाय चराने की अनुमति मांगते हैं, इस पर नन्द बाबा बोलते हैं की पुरोहित द्वारा बताये गए शुभ मुहूर्त पर वे गाय चराने जा सकते हैं। जब पुरोहित को बुलाया जाता है तब वे बताते हैं की कल के अलावा वर्ष भर कोई शुभ मुहूर्त नहीं है। नन्द बाबा समझ जाते हैं की भगवान जब इच्छा करें वही शुभ मुहूर्त है अन्य कोई नहीं। इसलिए वे उन्हें अनुमति दे देते हैं। 

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कहा जाता है जब कन्हैया पहली बार गय्या चराने गए तब माता ने उन्हें खूब सजाया और अंत में उन्हें चरण पादुकाएं दीं। किन्तु कृष्ण ने कहा जब गौ माता नंगे पाँव जा रही हैं तब वे कैसे पादुकाएं धारण कर सकते हैं। और वे नंगे पैर ही गाय चराने निकल गए, इसी दिन को आज तक गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशालाओं में गायों की पूजा की जाती है, जिसके लिए गुड़, लड्डू, केला, पुष्प हार तथा गंगाजल इत्यादि वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। गाय को तिलक लगाकर हरी घास तथा चारा एवं गुड़ आदि खिलाया जाता है। गौ माता में सभी देवी देवताओं, वसुओं आदि का वास माना जाता है। इस पर्व पर कई जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है।

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