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मोक्षदा एकादशी: मोक्ष प्रदायनी है यह एकादशी!

मोक्षदा एकादशी की तिथि व मुहूर्त:-

एकादशी तिथि – 08 दिसम्बर 2019 (रविवार)

एकादशी तिथि आरंभ – 06:34 बजे (07 दिसम्बर 2019)

एकादशी तिथि समाप्त – 8:29बजे (08 दिसम्बर 2019)

पारण का समय – 07:02 से 09:07 बजे तक (09 दिसम्बर 2019)

तिथि: 26, मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, एकादशी, विक्रम सम्वत

एकादशी उपवास सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ व्रत माने गये हैं क्योकि कोई भी व्रत मोक्ष प्राप्ति के लिए इतना प्रभशाली नहीं है जितना की एकादशी का। साधु संत मोक्ष पाने के लिए जीवन भर कठिन जप-तप, पूजा पाठ आदि करते हैं और बैरागी जीवन व्यतीत करते हैं। किन्तु ग्रहस्त मनुष्य वासनाओं में लिप्त रहता है और मोह-माया से बंधा रहता है ऐसे में शास्त्रों में कुछ ऐसे व्रत और उपवास बताये गए हैं जिससे मनुष्य ग्रहस्त जीवन का सुख उठाते हुए भी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

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मोक्षदा एकादशी का महत्व:-

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मनुष्य से अपने जीवन में अनगिनत पाप हो जाते हैं, कुछ पाप तो उन्हें ज्ञात होते हैं किन्तु कुछ पाप ऐसे भी होते हैं जो उनसे भूल से हो जाते हैं या जिनके विषय में वे कुछ जानते नहीं। ऐसे ही पापकर्मों का प्रायश्चित करने हेतु एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। जो मनुष्य को हर प्रकार के पाप से मुक्त करता है।

वैसे तो प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व है किन्तु मोक्षदा एकादशी उन सभी में एक अग्रणी एकादशी है। जैसा की इसके नाम से ही ज्ञात होता है यह व्रत मनुष्य को मोक्ष प्रदान करता है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ता है। यह एकादशी इसलिए भी विशेष है क्योकि इस दिन श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की धरा से अर्जुन के माध्यम से संसार को गीता का ज्ञान दिया था। अर्थात इस दिन को गीता जयंती के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

मोक्षदा एकादशी पूजन विधि:-

मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु एवं भगवान कृष्ण दोनों ही का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान श्री हरी का धूप-दीप, पुष्प, तुलसी पत्र, पंचामृत, बतासे आदि से पूजन करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्ण तरीके से उपवास करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा पढ़नी चाहिए तथा भगवत गीता का पाठ भी करना चाहिए। इस व्रत में अन्न का त्याग करना आवश्यक होता है इसलिए केवल फलाहार भोजन ही खाएं। व्रत का पारण एकादशी के दूसरे दिन सूर्योदय के पश्चात किया जाना चाहिए।

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मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा :-

एक समय की बात है, गोकुल में वैखानस नाम के राजा राज्य किया करते थे। राजा अत्यंत धार्मिक स्वाभाव के थे, उनकी प्रजा भी खुशहाल थी। एक दिन राजा अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे, तभी उन्हें एक स्वप्न दिखा जिसमे उनके स्वर्गीय पिता नरक की यातनाएं झेल रहे थे। राजा की निद्रा भंग हो गयी और वे हर समय व्याकुल रहने लगे। उन्हें इस हाल में देख उनकी पत्नी ने उन्हें ऋषि मुनियों की शरण में जाने का सुझाव दिया। पत्नी की बात मान वह एक आश्रम की ओर चल दिए। वहां उनकी भेंट पर्वत मुनि से हुई, मुनि ने राजा के मन का हाल जान दिव्यदृष्टि से सब कुछ देख लिए। और फिर राजा को बताया की उनके पिता सचमुच में नरक के कष्ट झेल रहे हैं। राजा ने कारण पूछा तो ऋषि ने कहा उन्होंने पूर्वजन्म में पाप किया था। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में आकर अपनी पहली पत्नी को सम्मान नहीं दिया, इसी पाप के कारण उन्हें नरक में यातनाएं मिल रही हैं।  फिर राजा ने उनकी मुक्ति का उपाय पुछा तो इस पर मुनि बोले की मार्गशीर्ष की शुक्ल एकादशी पर व्रत कर के उसका पुण्य अपने पिता को दे दो, इससे उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी।

राजा ने ऐसा ही किया, विधि पूर्वक व्रत कर के उसका पुण्य अपने पिता को दे दिया। इस से उनका पाप क्षय हो गया और वह नरक की यातनाओं से मुक्त हो गए।  इस के बाद राजा को एक बार फिर स्वप्ना आया जिसमे उन्होंने ने देखा उनके पिता स्वर्ग लोक में सुख से हैं। उन्होंने स्वप्न में ही पिता को प्रणाम किया, उनके पिता ने उनसे कहा की तुमने सही अर्थों में पुत्र होने का कर्तव्य निभाया है। तुम्हारे कारण आज मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हुई है, तुम्हारा कल्याण हो। अपने पिता को सुखी देख राजा भी सुखी हो गया।

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