Article

कैसे करती है सभी कामनाओं को सफल 'सफला एकादशी'?

सफला एकादशी व्रत मुहूर्त :-

1 जनवरी 2019 (मंगलवार)

एकादशी तिथि प्रारम्भ - 01:16 AM (1 जनवरी 2019)

एकादशी तिथि समाप्त - 01:28 AM (2 जनवरी 2019)

सफला एकादशी पारण समय - 07:39 AM से 09:20 AM (2 जनवरी 2019)

तिथि: 11, पौष, कृष्ण पक्ष, एकादशी, विक्रम सम्वत

पौष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। एकादशी के व्रत मनुष्य अपने पाप धोने एवं जीवन चक्र से मुक्ति प्राप्त कर बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त करने के लिए करता है। एकादशी के व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किये जाते हैं।

सफला एकादशी व्रत का महत्व:-

पौष माह में आने वाली सफला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सहस्त्रों वर्ष तक की गयी तपस्या के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पिछले जन्मो के पाप भी क्षीण हो जाते हैं, उसका मन पवित्र होता है तथा बुद्धि धर्म में स्थिर होती है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से मनुष्य की सभी मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होतीं हैं।इस वर्ष यह व्रत 01 जनवरी 2019, दिन मंगलवार, को है।

यह भी पढ़े -:   कैसे तोड़ा श्री कृष्ण ने गरुड़, सुदर्शन एवं सत्यभामा का घमंड?

 

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करे

सफला एकादशी व्रत की पूजन विधि:-

इस व्रत के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार है-

श्री हरी विष्णु की प्रतिमा, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, धूप, दीप, घी, पंचामृत, तुलसी दल, चंदन, रोली, अक्षत आदि।

इस व्रत को करने के लिए व्रती को दशमी की तिथि, अर्थात एकादशी से एक दिन पूर्व, से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ही करें तथा भूमि पर विश्राम करें। एकादशी की प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निपट कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को साफ़ करें तथा श्री विष्णु की प्रतिमा की स्थापना कर उसके आगे व्रत का संकल्प लें। तत्पश्चात धूप-दीप अर्पित कर पुष्प तथा फल चढ़ाएं। अब सफला एकादशी की व्रत कथा सुने एवं सुनाएँ, कथा पूर्ण होने के बाद विष्णु जी की आरती करें व प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करें। रात्रि में जागरण कर भजन कीर्तन करें व द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करा कर दान दक्षिणा दें और फिर स्वयं भी भोजन ग्रहण करें।

 

यह भी पढ़े -:    कुम्भ(2019): क्या है 'कुम्भ स्नान' का पौराणिक महत्व?

 

सफला एकादशी की व्रत कथा:-

एक समय एक राजा था, उसका नाम था महिष्मान। उसके चार पुत्र थे, सबसे बड़ा पुत्र, जिसका नाम लुम्पक था, अत्यंत पापी था। वह सदा बुरे कर्मों में ही लिप्त रहता तथा वेश्यागमन जैसे कार्यों में पिता की सम्पत्ति को भी लुटाता था।   वह किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्यों में रूचि नहीं लेता था तथा ब्राह्मणों को भी सताया करता था। जब सारी ही प्रजा राजकुमार से दुखी हो गयी तब राजा ने उसे राज्य से निकल दिया। राज्य से बहिष्कृत होकर वह सोचने लगा कि कहा जाऊँ, और क्या करूँ?

जब कोई रास्ता न मिला तो उसने चोरी करने का निश्चय किया। उसने राज्य के निकट ही वन को अपना घर बना लिया। दिन भर वह वन में रहता तथा रात्रि में राज्य में चोरी करता। चोरी करते हुए वह कई बार सिपाहियों द्वारा पकड़ा जाता किन्तु वह राजा के भय से उसे छोड़ देते।

जिस वन में राजकुमार रहता था, वहां एक विशाल पीपल का वृक्ष था। इस वृक्ष की लोग पूजा किया करते थे, लुम्पक उसी वृक्ष के नीचे रहता था। कुछ समय बीत जाने पर उसके वस्त्र फट गए और वह वस्त्रहीन हो गया। एक बार शीत के कारण वह रात्रि में सो नहीं पाया,  उसके हाथ पैर अकड़ गए।

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें।

ठण्ड के कारण वह मूर्छित हो गया, और दूसरे दिन सूर्योदय के बाद गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई। वह भोजन की खोज में निकला किन्तु शरीर दुर्बल होने के कारण वह चोरी करने में असमर्थ था और न ही किसी जानवर को मरने की उसकी क्षमता था। अतः वह गिरे हुए फल उठा लाया और पीपल के वृक्ष के नीचे रखकर बोला, हे भगवन! अब ये फल आपको ही अर्पण कर दिए हैं, आप ही तृप्त हो जाइये। उस रात्रि उसे भूख और दुःख के कारण उसे निद्रा नहीं आई।

 

यह भी पढ़े -: विवाह पंचमी: जानिए किसने उठाया था श्री राम से पहले शिव धनुष?

उस दिन एकादशी थी, दिन भर भूखे रहने के कारण उसका उपवास हो गया और निद्रा  न आने के कारण उसका जागरण भी हो गया। उस से भगवान् प्रसन्न हो गए और उसके पाप को क्षमा कर उन्होंने उसको एक अतिसुन्दर घोडा, जो अनेक प्रकार की वस्तुओं से सज्ज था, उसे दिया। और उसे कहा तेरे द्वारा अनजाने में हुए इस व्रत से मैं प्रसन्न हूँ, इसलिए अब तू अपने पिता के पास जा और धर्मपूर्वक राज्य कर। यह सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण कर अपने पिता के पास गया। राजा ने अपने पुत्र को इस दिव्य अवतार में देखा तो अत्यंत प्रसन्न हुए। राजकुमार सारी बात राजा को बताई, तब राजा ने अपना राज्य राजकुमार को सौप दिया और तपस्या के लिए जंगल की ओर चले गए।

अब लुम्पक ने पूर्ण धर्म से राज्य किया, उसका सम्पूर्ण कुटुम्भ नारायण का भक्त हो गया। वृद्ध होने पर उसने अपना राज्य भार अपने पुत्र को सौंपा और वन में तप करने चला गया। और उसे अंत में बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई, इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य श्रद्धा भाव से भगवान की भक्ति करता है, ईश्वर उस पर सदैव ही कृपा करते हैं।

संबंधित लेख :​​​