Article

बसंत पंचमी: जानें क्यों मनाया जाता है बसंत पंचमी का त्यौहार?

वसंत पंचमी मुहूर्त :-

10 फरवरी 2019 (रविवार)

वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का मुहूर्त = 07:06 से 12:41

अवधी = 5 घंटे 34 मिनट

पंचमी तिथि प्रारम्भ = 12:25 (09 फरवरी 2019)

पंचमी तिथि समाप्त = 14:08 (10 फरवरी 2019)

तिथि: 20, माघ शुक्ल पक्ष, पंचमी, विक्रम सम्वत

वसंत पंचमी, जिसे श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है, एक हिन्दू त्यौहार है। वसंत पंचमी देवी सरस्वती के दिन है, इसलिए इस दिन माँ सरस्वती की पूजा बड़ी धूम धाम से की जाती है। यह पर्व भारत सहित नेपाल, पश्चिमी बांग्लादेश आदि जगह मनाया जाता है। इस दिन लोग पीले रंग को अत्यंत महत्व देते हैं, पूजा के लिए पीले फूल तथा वस्त्र भी पीले धारण करते हैं।

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करे

भारतीय परंपरा के अनुसार एक वर्ष को छह मौसमों में विभाजित किया जाता है, जिनमे से एक वसंत ऋतू है। यह ऋतू लोगों का सबसे पसंदीदा मौसम है। इस समय फूलों पर बौर आ जाती है, खेतों में सरसों खिलने लगता है, जौं तथा गेहूं की बालियां भी चमकने लगती हैं। इस ऋतू में पशु पक्षी भी मदमस्त हो जाते हैं, फूलों पर तितलियाँ मंडराने लगतीं हैं। 

बसंत पचमी का इतिहास:-

बसंत ऋतु का स्वागत माघ माह की पंचमी तिथि को किया जाता है, इस दिन देवी सरस्वती के साथ साथ भगवान विष्णु और कामदेव की भी पूजा होती है। 

बसंत पंचमी से सम्बंधित पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना करने पर भी ब्रह्मा जी को संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई। क्योकि वह पूर्ण नहीं थी, उस समय वाणी की रचना नहीं हुई थी, हर तरफ केवल मौन था। तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से थोड़ा जल पृथ्वी पर छिड़का। कमंडल से धरती पर कुछ बुँदे पड़ने से देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ, उनकी चार भुजाएं थी जिनमे एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में माला, तीसरे हाथ में पुस्तक तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में था।

उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रणाम कर वीणा बजाना प्रारम्भ किया, वीणा में से निकले सुर पृथ्वी पर जन्मी वस्तुओं में समाने लगे और इस प्रकार प्रत्येक वस्तु तथा प्राणियों में वाणी का सम्मिलन हुआ। अब ब्रह्मा जी को भी अपनी रचना पूर्ण लगने लगी, क्योकि पक्षियों में चहचहाहट, नदियों में कल-कल का स्वर, शिशु में रुदन तथा प्रसन्नता का स्वर आ गया था। देवी ने पृथ्वी वासियों को स्वर के साथ साथ बुद्धि तथा विद्या का भी दान दिया।

यह भी पढ़े :- गुरु गोबिंद सिंह जयंती: क्यों कहा गया है गुरु गोबिंद सिंह जी को "पूर्ण पुरुष"?

माँ सरस्वती को भगवती, शारदा, वीणावादिनी तथा वाग्देवी आदि नामों से जाना जाता है। इन्ही से संगीत की भी उत्त्पत्ति हुई है और संगीत से नृत्य की, इसलिए कई कलाकार देवी सरस्वती की प्रतिमा आगे रख कर ही अपनी कला का अभ्यास करते हैं। बसंत पंचमी को इनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऋग्वेद में माँ सरस्वती का वर्णन किया गया है -

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात, देवी सरस्वती परम चेतना हैं, यही हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें।

कैसे मनाई जाती है बसंत पंचमी? :-

बसंत पंचमी के पर्व में मुख्यतः देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन माँ की प्रतिमा की स्थापना कर उन्हें कमल के पुष्प अर्पित करने चाहिए। इस दिन घर के वाद्य यंत्रों एवं पुस्तकों की भी पूजा करने की परम्परा है। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहने जाते हैं। यह पर्व किसानों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योकि इस समय खेतों में फसलें लहलहाने लगतीं हैं। इस दिन दान-पुण्य का भी अत्यंत महत्व है, इस दिन सबसे अच्छा दान शिक्षा का दान माना जाता है। आप शिक्षा में काम आने वाली वस्तुओं का भी दान कर सकते हैं जैसे- किताबें, पेन, पेंसिल आदि। पश्चिमी बंगाल में इस दिन ख़ास उत्सव का आयोजन होता है, कई जगह बड़े बड़े आयोजन किये जाते हैं।

​​संबंधित लेख :​​​